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अनहोनी

चिन्मय देशपाण्डे

आलोक साहब अपनी सुंदर, सुघड़, विदुषी पत्नी के साथ ऑफिस की सालाना पार्टी में जैसे ही पधारे कइयों के सीने पर सांप लोट गए।
आलोक साहब हाल ही में सीनियर डायरेक्टर बने थे और हाई नेटवर्थ क्लाइंट के प्रोजेक्ट्स संभालते, वरिष्ठ लोग उनके कामों से खुश थे और जूनियर भी क्योंकि वह बेहतरीन मैनेजर थे। मातहतों से काम करवाना जानते थे।
आलोक साहब खुद भी टेक्निकल थे। तेरह साल पहले बतौर ट्रेनी इंजिनियर उन्होंने कम्पनी में ज्वाइन किया था और उनकी तरक्की से जलने वालों की कमी नहीं थी।
आलोक साहब की पत्नी माधुरी जी भी खानदानी थीं। चंदीले रंग की साड़ी और हीरो के हार में वह कहर ढा रहीं थीं।
पार्टी हुई और लोग घर जाने को हुए, आलोक साहब की टीम की सदस्या संजना कुछ परेशान सी खड़ी थी, दरअसल उसे जिसके साथ जाना था वह पहले ही निकल गया था।
संजना को परेशान देख कर आलोक जी ने उसे लिफ्ट ऑफर की।
संजना पंजाब से थी मगर पढ़ाई लिखाई पिताजी की नौकरी के चलते बंगलौर में हुई थी।
आलोक जी भी बंगलौर से ही थे और पत्नी नॉर्थ कर्नाटक से।
संजना ने आलोक जी की लिफ्ट स्वीकार कर ली और बैक सीट पर जा कर बैठ गई, इधर माधुरी जी का चेहरा बतला रहा था, कि कुछ गडबड है।
आलोक और माधुरी अपनी कन्नड़ में शुरू हो गए, संजना जो पहले अपना फोन चला कर गाना सुन रही थी उसने ध्यान दिया कि यह तो पति-पत्नी आपस में लड़ रहे हैं।
"यह वही लड़की है न, जिसके साथ रात-रात भर फोन में लगे रहते हो?"
"वह मेरी कुलीग है, काम के सिलसिले में बात करनी होती है।"
"शर्म नहीं आती बीवी के सामने उसे लिफ्ट देते हुए?"
"वह अकेली है, मैनेजर होने के नाते मुझे उसकी सुरक्षा की चिंता होती है।"
"मुझे तो तुम ओला यूबर से जहां तहां भेज देते हो इसकी शोफर गिरी करते हो।"
"…"
"जवाब दो, क्या लगती है वह तुम्हारी?"
"कुछ नहीं"
"झूठ है यह" कहते-कहते माधुरी जी की आवाज तेज हो गई और उनका चेहरा तमतमा गया।
पिछली सीट पर बैठी संजना चौंक गई ।
आलोक जी उसे देख कर मुस्कुराए और अंग्रेजी में कहा "कुछ नहीं, मैडम को मेरा पार्टियों में पीना पसंद नहीं।"
"और भर लो लड़कियां अपनी टीम में और सारी रात उन्हीं से बतियाते रहो फोन पर"
"तुम गलत समझ रही हो, यह लड़कियां ट्रेंड प्रफेशनल हैं और नाराज क्लाइंट्स को बेहतर तरीके से हैंडल करतीं हैं।"
"तुम मैनेजर हो या दलाल हो उनके?"
तेज़ आवाज़ के साथ आलोक साहब ने गाड़ी का ब्रेक दबा दिया।
आलोक साहब का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था और उनकी तेज़ सांसे चल रही थी। अपने चरित्र पर लांछन लगाना उन्हें पसंद नहीं आया। वह गाड़ी की पिछली सीट पर पहुँचे और संजना से कहा मेट्रो स्टेशन आ गया, यहां से अब आप आगे जा सकती हैं।
संजना ने धन्यवाद कहा और अपनी राह चली गई।
पति पत्नी में घर लौटते वक्त गाड़ी में जम कर तू तू मैं मैं हुई, गाड़ी जब फ्लाई ओवर से गुजर रही थी तो माधुरी ने तेज रफ्तार चलती गाड़ी से कूदने की कोशिश की, इधर आलोक ने बीवी को रोकने के लिए बांए हाथ से पकड़ना चाहा और इस बीच स्टियरिंग पूरा बांए घूम गया, गाड़ी फ्लाई ओवर के किनारों से जोरों से टकरा कर उलट गई और पति पत्नी सैंकड़ों फीट नीचे आ गिरे।
उनकी निष्प्राण देह कई घंटे कार के मलबे में कुचली हुई यथावत पड़ी रही। सुबह हुई और जब राहगीरों ने देखा तो पुलिस और एंबुलेंस को सूचित किया तब कहीं जा कर पति पत्नी की देह को मोर्चरी ले जाया गया।
इधर घर में हाहाकार मच गया। घरवालों को मालूम तो था कि पति पत्नी के बीच खटपट चल रही है आलोक जी के घर वालों और माधुरी जी के घरवाले एक दुसरे को दोषी ठहराने लगे।
बात यहां तक पंहुच गई कि माधुरी जी के छोटे भाई साहब आलोक के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगे, इधर आलोक की माता जी माधुरी को कोसने लगीं "इस सुंदर सी दिखने वाली चुड़ैल ने जाने क्या जादू कर दिया मेरे होनहार बेटे पर जो इसकी सुनता था।"
बेटी दामाद के यूं अकस्मात गुजरने का दुःख माधुरी के मां पिता को भी था किंतु दुःख से चुप थे।
इधर आलोक के पिता चुपचाप आंसू बहा रहे थे जवान होनहार बेटे बहु यूं इस तरह दुनिया से चले जाएंगे उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था।
कितने अभागे थे कि पोते पोती का मुंह तक न देख पाए।
ऑफिस में खबर पंहुची तो जितने मुंह उतनी बातें।
"अरे कल ही तो आलोक साहब सबसे इतने हंस कर मिले थे क्या पता था ऐसा हो जाएगा।"
"वाकई दोनो की जोड़ी मेड फॉर ईच अदर थी। साथ में दोनो कितने जंचते थे।"
"इनको शादी के बाद बच्चा नहीं हुआ तो पति पत्नी टेंस थे।"
"आलोक लंगोट का ढीला था।"
"ऐसी सुंदर बीवी जिसकी होगी उसकी मौत यूं ही बेमौत होगी।"
संजना ने मौन तोड़ते हुए कहा कि कल रात जब उसे मेट्रो स्टेशन पर दोनो पति पत्नी ने उसे ड्रॉप किया तो उसने सुना दोनो आपस में किसी बात को ले कर झगड़ रहे थे, वहीं से कुछ दूरी पर यह दुर्घटना हुई।
लोगों ने कहा अरे किस्मत बुलंद है तुम्हारी जो बच गईं।
लेकिन पति पत्नी को मानना पड़ेगा कि एक दूसरे को इतना चाहते थे कि लड़े साथ में और मौत हुई भी साथ में।
इधर आलोक और माधुरी की आत्मा अपना सिर पकड़ कर बैठे थे कि यह अनहोनी क्यों और कैसे हो गई।

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