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कुम्हार का परिवार
एक गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाता, और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन उसकी बीवी बोली कि अब यह मिट्टी के खिलौने और बर्तन बनाना बंद करो और शहर जाकर कोई नौकरी कर लो, क्योंकि इसे बनाने से हमारा गुजारा नही होता, काम करोगे तो महीने के अंत में कुछ धन आएगा। कुम्हार को भी अब ऐसा ही लगने लगा था, पर उसको मिट्टी के खिलौने बनाने का बहुत शौक था, लेकिन हालात से मजबूर था, और वो शहर जाकर नौकरी करने लगा,
देवयानी वर्मा
1 day ago2 min read


घंटीधारी ऊंट
एक बार की बात हैं कि एक गांव में एक जुलाहा रहता था। वह बहुत गरीब था। उसकी शादी बचपन में ही हो गई ती। बीवी आने के बाद घर का खर्चा बढना था। यही चिन्ता उसे खाए जाती। फिर गांव में अकाल भी पडा। लोग कंगाल हो गए। जुलाहे की आय एकदम खत्म हो गई। उसके पास शहर जाने के सिवा और कोई चारा न रहा।
रमाशंकर त्रिपाठी
1 day ago3 min read


कृष्णा बाई
एक गांव में कृष्णा बाई नाम की बुढ़िया रहती थी। वह भगवान श्रीकृष्ण की परमभक्त थी। वह एक झोपड़ी में रहती थी। कृष्णा बाई का वास्तविक नाम सुखिया था पर कृष्ण भक्ति के कारण इनका नाम गांव वालों ने कृष्णा बाई रख दिया।
घर-घर में झाड़ू पोछा बर्तन और खाना बनाना ही इनका काम था। कृष्णा बाई रोज फूलों का माला बनाकर दोनों समय श्री कृष्ण जी को पहनाती थी और घण्टों कान्हा से बात करती थी। गांव के लोग यहीं सोचते थे कि बुढ़िया पागल है।
अशोक गुप्ता
3 days ago2 min read


मेरी बुद्धि
पुराने समय में एक राजा का फलों का बहुत बड़ा बाग था। बाग में अलग-अलग तरह के फल लगे थे। बाग का माली रोज राजा के लिए ताजे फल टोकरी में लेकर जाता था।
एक दिन बाग में नारियल, अमरूद और अंगूर पक गए। सेवक सोचने लगा कि आज कौन सा फल राजा के लिए लेकर जाना चाहिए। बहुत सोचने के बाद उसने अंगूर तोड़े और टोकरी में भर लिए। टोकरी लेकर वह राजा के पास पहुंच गया।
अशोक कुमार गर्ग
3 days ago2 min read


मां या पत्नी
शादी की उम्र हो रही थी और मेरे लिए लड़कियां देखी जा रही थीं। मैं मन ही मन काफी खुश था कि चलो कोई तो ऐसा होगा जिसे मैं अपना हमसफर बोलूंगा, जिसके साथ जब मन करे प्यार करूंगा। मेरी अच्छी खासी नौकरी थी, घर में बूढ़ी मां और पापा थे, और इतनी कमाई थी कि अपने पत्नी का खर्चा उठा सकूं। ये सारी बातें सोच-सोचकर खुश होता था। मां की उम्र भी हो गई थी, तो एक प्वाइंट ये भी लोगों को बताता कि मुझे शादी की कोई जल्दी नहीं, ये तो मां हैं जिनकी उम्र निकल रही है, उनके लिए शादी करनी है।
केशव कालरा
4 days ago6 min read


असली सुंदरता
सुजाता चार भाई बहनों मे तीसरे नंबर की संतान थी। उससे बड़े दो भाई थे फिर वह और एक और बहन थी। सुजाता देखने में सुंदर नहीं थी। चारों संतानो में सुजाता को कोई घर मे पसंद नहीं करता था। सब यही कहते कि "इतनी काली कलूटी से कौन विवाह करेगा?" यहाँ तक की स्कूल मे भी उसके काले रंग के कारण कोई उसका मित्र नहीं था। पर सुजाता को कभी किसी से कोई शिकायत नहीं हुई। वह अपनी पढ़ाई मे ही व्यस्त रहती थी। घर मे केवल दादी थीं जो उसका लाड़ करती थी, अन्यथा सब उससे कतराते रहते थे। शादी ब्याह मे भी कभी उसे स
शालिनी वर्मा
4 days ago4 min read
साहित्यिक विरासत को संरक्षित करने में रचनाकुंज की भूमिका
भारत की समृद्ध साहित्यिक परंपरा सदियों से हमारी संस्कृति, भावनाओं और विचारों का अभिव्यक्त माध्यम रही है। आज के डिजिटल युग में, जहां तेजी से बदलाव हो रहे हैं, साहित्य की इस विरासत को संरक्षित रखना और नई पीढ़ी के लेखकों को प्रोत्साहित करना आवश्यक हो गया है। इस संदर्भ में रचनाकुंज ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह मंच न केवल हिंदी साहित्य की समृद्ध कहानियों, कविताओं और उपन्यासों को संरक्षित करता है, बल्कि समकालीन प्रतिभाशाली लेखकों और कवियों को भी अपनी रचनाओं को साझा करने का
Rachnakunj .
5 days ago3 min read


प्रेम या आकर्षण
प्रांजुल अवस्थी मेहंदी का कार्यक्रम चल रहा था। शिखा के दोनो हाथों में उसके साजन का नाम लिखने के साथ - साथ सभी सखियां उसे, उसके होने वाले पति का नाम ले लेकर उसे छेड़ रही थीं। घर में सब रिश्तेदार रस्म रिवाजों में व्यस्त थे। तभी शिखा की मम्मी उसके पास आई और उसके सर पर प्यार से हाथ रखा। आंखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान लेकर पूछा,"तू खुश तो है न बेटा.." "हां मम्मा...." बस इतना ही बोल पाई शिखा बेटी के माथे को चूमकर शिखा की मां भी अपने कामों में लग गई। शिखा अपने मम्मी-पापा की इ
प्रांजुल अवस्थी
6 days ago8 min read


दो बेटियों का पिता
तनु आर्या कभी-कभी ज़िंदगी हमें वहाँ रुला देती है, जहाँ हम सबसे कम उम्मीद करते हैं। लेकिन उसी जगह कोई ऐसी मुस्कान मिल जाती है, जो हमारे अंदर का इंसान जगा देती है। भगवान सीधे नहीं आते, वो छोटे-छोटे रूपों में हमें राह दिखाते हैं। कई बार वो रूप हमें स्टेशन की भीड़ में भी मिल जाता है। यह कहानी है लखनऊ के मशहूर उद्योगपति अभिषेक सूद की। उम्र पचास के करीब, करोड़ों की संपत्ति, आलीशान बंगला, गाड़ियाँ, शोहरत - सब कुछ था उसके पास। लेकिन अकेलापन उसकी सबसे बड़ी दौलत बन चुका था। पाँच साल प
तनु आर्या
6 days ago5 min read


Exploring the Cultural Significance of Rachnakunj in Modern India
Rachnakunj stands as a unique cultural landmark in India, blending tradition with contemporary relevance. It reflects the evolving identity of Indian society while preserving its rich heritage. Understanding Rachnakunj offers insight into how cultural spaces adapt and thrive in a rapidly changing world. Rachnakunj entrance highlighting traditional Indian architecture The Origins of Rachnakunj Rachnakunj began as a modest initiative to create a space where Indian art, literatu
Rachnakunj .
6 days ago3 min read


मोची की कहानी
संगीता जैन किसी शहर में एक मोची रहा करता था। उसके घर के पास ही उसकी एक छोटी-सी दुकान थी। उस दुकान में वह मोची जूते बनाने का काम करता था। तैयार जूतों को बेचकर जो भी पैसे मोची के हाथ लगते उन्हीं से वह अपने परिवार का पेट पालता था। हालांकि, मोची अपना काम बड़ी मेहनत और लगन से करता था, लेकिन धीरे-धीरे उसके जूते खरीदने वालों की संख्या कम होने लगी। ऐसे में उसे कम दाम पर अपने तैयार जूतों को बेचना पड़ता था। इसका नतीजा यह हुआ कि समय के साथ उसका सारा जमा पैसा भी खत्म हो चला। नौबत यह आ गई
संगीता जैन
Dec 84 min read


किताबी ज्ञान
आशा तिवारी राज्य सरकार द्वारा संचालित कोरोना वार्ड में भर्ती एक टीचर सीलिंग फैन को देखते हुए, पढ़ने के लिए किताब उठाने ही वाली थी, तभी उनके फोन की घंटी बजी। वह एक बिना नाम वाला नंबर था। आमतौर पर वह ऐसे कॉल से बचती थी पर अस्पताल में अकेले और कुछ करने के लिए नहीं था इसलिए उन्होंने इस फ़ोन कॉल को जवाब देने का फैसला किया। स्पष्ट स्वर में एक पुरुष ने अपना परिचय दिया, "नमस्ते मैडम, मैं सत्येंद्र गोपाल कृष्ण दुबई से बात कर रहा हूँ। क्या मैं सुश्री सीमा कनकंबरन से बात कर रहा हूँ?"
आशा तिवारी
Dec 85 min read


नीलकंठ
गुलशन नंदा असावधानी से पर्दा उठाकर ज्यों ही आनंद ने कमरे में प्रवेश किया, वह सहसा रुक गया। सामने सोफे पर हरी साड़ी में सुसज्जित एक लड़की बैठी कोई पत्रिका देखने में तल्लीन थी। आनंद को देखते ही वह चौंककर उठ खड़ी हुई। 'आप!' सकुवाते स्वर में उसने पूछा, 'जी, मैं रायसाहब घर पर हैं क्या?' 'जी नहीं, अभी ऑफिस से नहीं लौटे।' 'और मालकिन। आनंद ने पायदान पर जूते साफ करते हुए पूछा। 'जरा मार्किट तक गई हैं। 'घर में और कोई नहीं?' 'संध्या है, उनकी बेटी! अभी आती है।' वह साड़ी का पल्लू ठी
गुलशन नंदा
Dec 71 min read


मालकिन मैं या तुम
गीता तिवारी शादी की उम्र हो रही थी और मेरे लिए लड़कियां देखी जा रही थीं। मैं मन ही मन काफी खुश था कि चलो कोई तो ऐसा होगा जिसे मैं अपना हमसफर बोलूंगा, जिसके साथ जब मन करे प्यार करूंगा। मेरी अच्छी खासी नौकरी थी, घर में बूढ़ी मां और पापा थे, और इतनी कमाई थी कि अपने पत्नी का खर्चा उठा सकूं। ये सारी बातें सोच-सोचकर खुश होता था। मां की उम्र भी हो गई थी, तो एक प्वाइंट ये भी लोगों को बताता कि मुझे शादी की कोई जल्दी नहीं, ये तो मां हैं जिनकी उम्र निकल रही है, उनके लिए शादी करनी है। ल
गीता तिवारी
Dec 66 min read


रामू का चमत्कार
श्रीपाल शर्मा कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर ले आती है, जहाँ ना पैसा काम आता है, ना ताकत, ना ओहदा। बस एक उम्मीद बचती है, जो अक्सर किसी अनजाने चेहरे से मिल जाती है। कहते हैं, भगवान जब मदद भेजता है, तो वह अक्सर ऐसी शक्ल में आता है, जिसे हम नजरअंदाज कर देते हैं। यह कहानी है दिल्ली के मशहूर अरबपति विक्रम मल्होत्रा की। उसकी पत्नी मीरा आईसीयू में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी। सारे नामी डॉक्टर जवाब दे चुके थे। लाखों रुपए, बड़ी टीम, आधुनिक मशीनें - सब कुछ था। लेकिन किसी के पास
श्रीपाल शर्मा
Dec 63 min read


विश्वास की मूर्ति
शिव शंकर सुजीत मार्केट में चलते चलते अचानक से दौड़ने लगता है और दौड़ते हुए जाकर एक महिला के आगे रूक जाता है। और दौड़ने की वजह से हाफ रहा होता है। महिला - बड़े आश्चर्य से देखते हुए बोली, अरे सुजीत तुम, मुझे तो यकीन ही नही हो रहा है कि, इतने दिनों बाद आज हम दोनों फिर से मिले हैं। सुजीत ने हांफते हुए कहा कि, मैं बड़ी देर से तुम्हें देख रहा था लेकिन ठीक से पहचान नहीं पा रहा था इसलिए बोल नहीं पाया लेकिन जब देखा कि तुम अब चली जाओगी तो मुझे दौड़ना पड़ा, तुम्हारा परिचय पूछने के लिए
शिव शंकर
Dec 54 min read


रसीद का आखिरी नाम
रेखा जौहरी दिल्ली की गलियों में सुबह की हल्की रोशनी फैली थी। सड़क किनारे रसीद का छोले कुलचे वाला ठेला था, जिस पर टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखा था – “रसीद का छोले कुलचे”। रसीद के पास अपनी मां का दिया ताबीज, बाप की पुरानी साइकिल और ठेले का जंग लगा चम्मच ही उसकी पूरी दुनिया थी। रसीद कम बोलता था, लेकिन उसकी आँखों में अनगिनत कहानियाँ छिपी थीं। गली के बच्चे उसे ‘रसीद भाई’ कहते, कभी वो उन्हें मुफ्त में कुलचे देता, कभी कहानी सुनाता। हर रोज दोपहर को एक बूढ़ा आदमी वहाँ से गुजरता, साफ
रेखा जौहरी
Dec 53 min read


मेरा फ़र्ज
अरुण कुमार गुप्ता पिताजी के जाने के बाद आज पहली दफ़ा हम दोनों भाईयों में जम कर बहसबाजी हुई। फ़ोन पर ही उसे मैंने उसे खूब खरी-खरी सुना दी। पुश्तैनी घर छोड़कर मैं कुछ किलोमीटर दूर इस सोसायटी में रहने आ गया था। उन तंग गलियों में रहना मुझे और मेरे बच्चों को कतई नहीं भाता था। हम दोनों मियां-बीबी की अच्छी खासी तनख्वाह के बूते हमने ये बढ़िया से फ्लैट ले लिया। सीधे-साधे से हमारे पिताजी ने कोई वसीयत तो की नहीं पर उस पुश्तैनी घर पर मेरा भी तो बराबर का हक बनता है। छोटा भाई मना नहीं करता,
अरुण कुमार गुप्ता
Dec 42 min read


बंद मुट्ठी
रजनीकांत द्विवेदी एक बार की बात है, एक राजा ने घोषणा की कि वह कुछ दिनों के लिए पूजा करने के लिए अपने राज्य के मंदिर में जाएगा। जैसे ही मंदिर के पुजारी को यह खबर मिली, उसने राजा की यात्रा के लिए सब कुछ सही करने के लिए मंदिर को सजाने और रंगने का काम शुरू कर दिया। इन खर्चों को पूरा करने के लिए पुजारी ने 6,000 रुपये का कर्ज लिया। जिस दिन राजा मंदिर पहुंचे, उन्होंने दर्शन, पूजा और अर्चना की। समारोह के बाद, उन्होंने आरती की थाली में दान (दक्षिणा) के रूप में चार रुपये रखे और फिर
रजनीकांत द्विवेदी
Dec 42 min read


एकता की ताकत
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव जंगली भैंसों का एक झुण्ड जंगल में घूम रहा था। तभी एक बछड़े ने पुछा... पिता जी, क्या इस जंगल में ऐसी कोई चीज है जिससे डरने की ज़रुरत है? बस शेरों से सावधान रहना.. भैंसा बोला। हाँ, मैंने भी सुना है कि शेर बड़े खतरनाक होते हैं...। अगर कभी मुझे शेर दिखा तो मैं जितना हो सके उतनी तेजी से दौड़ता हुआ भाग जाऊँगा... बछड़ा बोला। नहीं.. इससे बुरा तो तुम कुछ कर ही नहीं सकते.. भैंसा बोला। बछड़े को ये बात कुछ अजीब लगी..वह बोला। क्यों? वे खतरनाक होते हैं... मुझे मार स
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव
Nov 262 min read


मीठे बोल
रीता सिंह नव विवाहित जोड़ा किराए का मकान देखने के लिए शर्मा जी के घर पहुंचा। दोनों मियां बीवी खुश हो गए चलो कुछ रौनक होगी कितना सुंदर जोड़ा है हम इन्हें घर जरूर देंगे। "आंटी अंकल हमें दो रुम किचन का मकान चाहिए.. क्या हम मकान देख सकते हैं? घुटनों के दर्द से बेहाल सीमा जी उठते हुए बोली "हां हां बेटा क्यों नहीं देख लो। बाजू में ही छोटा पोर्शन किराए के लिए बनवाया था आर्थिक सहायता भी होगी तनिक रौनक भी लगी रहेगी। मकान बहुत पसंद आया जोड़े को "अंकल हम लोग कल इतवार को ही शिफ्ट कर
रीता सिंह
Nov 262 min read


माँ की पीड़ा
राजीव कुमार एक ठंडी शाम थी। हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान में घने बादल छाए हुए थे। छत पर अकेली बैठी सुलोचना बुत बनी हुई थी, उसकी आँखें कहीं दूर टिकी थीं। बारिश कब से शुरू हो चुकी थी, पर उसे इसका कोई अहसास नहीं था। उसका बदन थर-थर काँप रहा था, मगर मानो वो खुद को महसूस ही नहीं कर रही थी। ठंडी हवाएँ उसे कंपा रही थीं, लेकिन वह अपने विचारों में गुम थी। अचानक उसे अपने नाम की पुकार सुनाई दी। "कहाँ हो सुलोचना? पूरा घर छान मारा, और तुम यहाँ छत पर भीग रही हो! जल्दी नीचे चलो, कपड़े ब
राजीव कुमार
Nov 252 min read


समय और धैर्य
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था, ”जो चाहोगे सो पाओगे", "जो चाहोगे सो पाओगे" बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नही देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे। एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे”, और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया। उसने साधु से पूछा ”महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मैं जो चाहता
डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव
Nov 252 min read


गलत मार्ग का अंजाम
रत्न सावरकर किसी ग्राम में किसान दम्पती रहा करते थे। किसान तो वृद्ध था पर उसकी पत्नी युवती थी। अपने पति से संतुष्ट न रहने के कारण किसान की पत्नी सदा पर-पुरुष की टोह में रहती थी, इस कारण एक क्षण भी घर में नहीं ठहरती थी। एक दिन किसी ठग ने उसको घर से निकलते हुए देख लिया। उसने उसका पीछा किया और जब देखा कि वह एकान्त में पहुँच गई तो उसके सम्मुख जाकर उसने कहा, “देखो, मेरी पत्नी का देहान्त हो चुका है। मैं तुम पर अनुरक्त हूं। मेरे साथ चलो।” वह बोली, “यदि ऐसी ही बात है तो मेरे पति क
रत्न सावरकर
Nov 242 min read