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- भाव
श्रीमती सिन्हा विश्वास हमारी ये..गऊ-गंवई सी सीधी सादी। अभी नए-नए ब्याह के लाए हैं ना इसी से शहरी चाल-चालाकी नहीं समझती। मैं सुबह से शाम तक डयूटी पर और वो घर में निपट अकेली। ऊब जाती होगी तभी तो रोज़ मेरी स्कूटर की आवाज़ सुनकर भाग के आ जाती बाहर। कभी पल्लू कभी चुन्नी की ओट से झांकती इनकी आंखों की वो गजब चमक देखने के लिए मैं सामने के मोड़ से ही हॉर्न बजाना शुरू कर देता। पड़ोस की बिंदो ताई टोक भी चुकी इस खातिर, मगर मैं बुरा नहीं मानता। मेरे पीछे उनकी शीला बहू से बीच-बीच में बोल-बतियाकर ये अपना मन लगाए रहती है ना इसीलिए। सोचता हूं कभी-कभार थोड़ा घुमा-टहला दूं। चूड़ी, बिंदी, काजल ही खरीदवा दूं खुश रहेगी। नई नौकरी जेब तंग..इससे ज्यादा खर्चे की सोचता भी नहीं मगर जब भी पूछो इनका वही ना-नुकुर! हिला देती अपना सिर दाएं-बाएं..बावली! लेकिन आज खुदी तैयार, ‛ए जी बाज़ार ले चलिए।’
- अकेली लड़की
सूरजभान पिछले शनिवार की रात थी, करीब 11:30 बज रहे थे। मैं ऑफिस से निकला और पार्किंग से अपनी बाइक लेकर अपने घर की ओर जा रहा था। जाड़े का मौसम था, सड़कें बिल्कुल सुनसान थीं। मैं तेजी से अपने घर की तरफ जा रहा था परंतु कुछ दूर जाने के बाद मैंने देखा कि एक सुन्दर लड़की सड़क के किनारे खड़ी है और मदद के लिए हाथ दे रही है। मैंने तुरंत बाइक रोकी, लेकिन मेरे रुकने से एक रिक्शा जो उसी तरफ आ रहा था, वह आगे बढ़ गया। मैंने कहा, "जी कहिए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?" लड़की ने ऊँचे स्वर में बोली, "मैंने ऑटो को हाथ दिया था, और आपके रुकने की वजह से वह चला गया। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो आया था।" उनकी यह बात सुनकर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। इतनी रात को एक अकेली महिला को मेरे कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। मैंने उनसे अपनी गलती के लिए उनसे माफी मांगी और पूछा कि अगर आप बुरा न माने तो "मैं आपको छोड़ देता हूँ" लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया। मैंने फिर कहा, देखिए रात बहुत हो चुकी है, सड़कें सुनसान हैं। आपको अकेला छोड़ना सही नहीं है। मैं आपको छोड़ देता हूं "लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं थी। मैंने मन में सोचा, "क्या करूं? यहां रुकना बेकार है। लेकिन अगर इसे कुछ हो गया, तो मैं खुद को कभी भी माफ नहीं कर पाऊंगा।" मैंने उनसे कहा, "आप ऑटो का इंतजार करें। मैं यहीं दूर खड़ा रहूंगा। अगर मदद की जरूरत हो, तो मुझे बता दीजिए।" इतना कहने के बाद मैं कुछ दूरी पर खडा था। करीब आधा घंटा बीत गया। ठंड बढ़ती जा रही थी, और कोई ऑटो नहीं आया। मैंने फिर से उनसे लिफ्ट के लिए पूछा, लेकिन उन्होंने फिर से मना कर दिया। उनकी हिचकिचाहट देखकर मैंने सोचा कि उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा है। मैंने पर्स से अपना आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस निकालते हुए कहा, "देखिए, यह मेरा पहचान पत्र है। इसे आप अपने पास रख सकती हैं। मैं आपको सीधे आपके घर तक छोड़ दूंगा। मेरे लिए आप मेरी बहन जैसी हैं।" मेरे इन शब्दों ने शायद उन्हें कुछ राहत दी। उन्होंने थोड़ी मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, लेकिन मैं सिर्फ वहाँ तक चलूँगी, जहां तक मुझे सुरक्षित लगे।" वह मेरी बाइक पर बैठ गई और हम चल पड़े। रास्ते में उन्होंने कुछ नहीं कहा। करीब 40 किलोमीटर चलने के बाद उन्होंने अचानक कहा, "बस, यहीं रोक दीजिए।" वह उतरकर एक गली की ओर दौड़ पड़ी और चंद पलों में मेरी आंखों से ओझल हो गई। मन को तसल्ली हुई कि वह सुरक्षित घर पहुंच गई। और मैं घर की ओर निकला जब मैं घर पहुंचा, तो रात के तीन बज चुके थे। पापा गुस्से में थे, मम्मी और बहन भी जाग रही थी। मैंने बिना कुछ बताए सीधे अपने कमरे की ओर चल दिया और फिर सुबह 11 बजे बहन ने आकर मुझे जगाया, "भैया, नीचे कोई लड़की आई है। मैंने देखा एक ल़डकी है साथ में उसके मम्मी-पापा भी हैं। क्या कुछ गड़बड़ कर दी क्या मैंने ?" आधे सोते हुए मैं नीचे गया। वहां वही लड़की खड़ी थी, जिनकी मैंने कल रात में मदद की थी। उनके साथ उनके माता-पिता भी थे। लड़की मुस्कुराई और बोली, "भैया, आपने मेरी इतनी मदद की, लेकिन मैं आपको धन्यवाद भी नहीं कह सकी। यह रहा आपका आधार कार्ड और पर्स। आप जैसे लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं।" फिर उन्होंने मुझे thank you बोला उसके माता-पिता ने भी मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए और अपने घर आने का निमंत्रण देकर चले गए। उनके जाते ही पापा ने मुझे सीने से लगा लिया और कहा, "मुझे गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो। लेकिन रात को यह बात बता दी होती, तो बेवजह चिंता नहीं होती। "मैंने कहा, "पापा, आपकी चिंता हमेशा मेरी भलाई के लिए ही होती है।"पापा, मम्मी और बहन ने मुझे फिर गले लगा लिया। उस दिन पापा की एक बात ने मेरी सोच बदल दी "अकेली लड़की मौका नहीं, जिम्मेदारी होती है।" ******
- तीसरी गलती
ललिता सिंह टूर पर जाने के लिए समीरा ने सारी तैयारी कर ली थी। उसने दो बैग में सारा सामान भर लिया। बेटी को पैकिंग करते देख नीला ने पूछा, "इस बार कुछ ज्यादा सामान नहीं ले जा रही हो?" "हां मां, ज्यादा तो है," गंभीर स्वर में समीरा ने कहा। अपने जुड़वां भाई अतुल, भाभी रेखा को बाय कहकर, उदास आंखों से मां को देखती हुई समीरा निकल गई। 10 मिनट बाद ही समीरा ने नीला को फोन किया, "मां, एक पत्र लिखकर आपकी अलमारी में रख आई हूं। जब समय मिले, पढ़ लेना।" इतना कहकर उसने फोन काट दिया।
- प्रेम पदचाप
डॉ. जहान सिंह ‘जहान’ सुशीरो जापान का एक सुंदर खुशहाल गांव, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। भले लोगों की बस्ती। धान की खेती और फलों के बाग, जीवकोपार्जन का मुख्य साधन। आईको एक खूबसूरत भोली भाली लड़की, जिसे सारा गांव प्यार करता था। माता-पिता गरीब किसान खेतों में काम करते थे। स्कूल के बाद आईको उनके काम में हाथ बटाती थी। एक दिन वो माँ बाप को खेतों पर खाना देने जा रही थी। रास्ते में गांव के एक मनचले लड़के ने उसके साथ जबरदस्ती की। मजबूर आईको रोती गिड़गिड़ाती रही, विनती करती रही पर अपने को बचा न सकी। लौटकर उसने सब बात बताई। गरीब माँ बाप रोते हुए गांव के मुखिया के पास गए। मुखिया ने उन्हें सांत्वना दी। पंचायत ने उस नीच लड़के को गांव से निकाल दिया। धीरे-धीरे उन लोगों का जीवन पुनः सामान्य हो गया। एक दिन गांव का मुखिया अपने खेत देखने निकला। उसने देखा कि आईको अकेली खेत में काम कर रही थी। उसके माँ-बाप दूर जंगल में लकड़ी लेने गए हुए थे। मुखिया भेड़ की खाल में भेड़िया था। उसकी नीयत खराब हो गई। उसने भी लड़की के साथ मुँह काला किया। आइको बेसहारा रोती चिल्लाते घर पहुंची माँ बाप के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह गरीब मुखिया का सामना कैसे करेंगे? फिर भी साहस बटोरकर उन्होंने पंचायत बुलायी। मुखिया ने वक्त की नजाकत देखकर उससे विवाह करने की घोषणा कर दी। न्याय हो गया 14 साल की मासूम को 50 साल के बुड्ढे को बांध दिया गया। इतना बेमेल विवाह वो बेजान जिंदगी गुजार रही थी। वक्त गुजरता गया। द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हो गया। जापान तबाह हो गया। लोग इधर उधर भागने लगे। मुखिया मर गया था आइको पर दुखों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। अब वो अपना नया जन्म मान कर भाग निकली। विदेश जा रहे एक पानी के जहाज पर बैठ गयी। नहीं मालूम कहाँ जा रही है? यूरोप के किसी पोर्ट पर जलपोत रुका। लोग उतरकर जाने लगे। वो भी उतर कर चलदी। एक नौजवान अकेली लड़की, भाषा की परेशानी, भूखी प्यासी लाचार गलियों में भटकती हुई एक छोटे से मकान के बाहर टीन सेट में खड़ी हो गयी। पानी बरस रहा था। रात हो गई थी, कहाँ जाये। मजबूर आइको ने दरवाजा खटखटा दिया। हैनरी ने दरवाजा खोला। परेशान हो गया। विश्व युद्ध का समय, अनजान एक जवान लड़की को वो भी हावभाव से जापानी। वो सोच नहीं पा रहा था, क्या करें? सर्दी से कांप रही थी, रोने की सिसकियां उसे और बेचैन कर रही थी। हैनरी एक अच्छा इंसान था। दयावश उसने आइको को घर के अंदर आने की इजाजत दे दी। कॉफी पिलाई, थर थर काँपती आईको कुछ स्थिर हुई। हैनरी पुराने कबाड़ का एक स्टोर उसी घर में चलाता था। अकेला रहता था। आइको थोड़ी देर बाद कमरे में पड़ी बेतरतीब चीजों को सलीके से लगाकर रसोई की तरफ चली गई। हैनरी चिंतित था वो क्या करे और उसे गौर से बस देखता जा रहा था। इतनी खूबसूरती, एक साथ गोरा बदन, मांसल पिंडलीयां, पूरा भरा पूरा सीना, कोमल होठ, और सुनहरे बाल। आइको चाय बनाकर ले आयी और इसारों से समझाने की कोशिश करने लगी कि मैं यहाँ आप पर बोझ नहीं बनूँगी। आपके साथ स्टोर में सहायता करूँगी। हैनरी बोझिल मन से उसे गेट पर छोड़ने जा रहा था। बरसात इतनी तेज और रात अंधेरी कहाँ जाएगी? इस विचार ने उसके कदम पीछे खींच लिए। हैनरी ने उसे रात रुकने की इजाजत दे दी। आइको के आंखो में आंसू और धन्यवाद कहते हुए उसके गले लगकर रोने लगी। इतनी देर तक दोनों उसी स्थिति में खड़े रहे। हैनरी की आँखों में आंसू थे। इतने वर्षों बाद किसी ने उसे गले लगाया था। रात आईको सोफे पर लेटी और इतनी थकी थी। फौरन सो गयी। पर हैनरी सारी रात जागता रहा। बस आईको को देखता रहा। हैनरी ने अपनी पूर्व प्रेमिका के लिए एक कीमती अंगूठी बनवाई थी। विश्व युद्ध के दौरान वह उससे बिछड़ गई थी और वो उसे अंगूठी नहीं दे सका। आज उस अंगूठी को देखकर पुराने दिन एक बार चलचित्र की तरह चलकर गुजर गए। हैनरी वो अंगूठी साफ करके शो केस में सजा रहा था। आइको ने देखा और कहा, ये बहुत सुन्दर है। हेनरी ने कहा, तुम रख लो। आइको बोली ये तो बेशकीमती है, अगर मुझसे खो गई तो मैं कैसे वापस करूँगी? इसे मैं नहीं ले सकती। हैनरी कुछ देर सोच विचार करता रहा। फिर अचानक उसने शादी के लिए प्रपोज कर दिया। आइको हस्तप्रद खड़ी थी। आँखों से आंसू बह रहे थे। उसका यह दूसरा जन्म जैसा था। शर्माकर उसने कहा, आपकी पत्नी बनना मेरे मेरा सौभाग्य होगा और अंगूठी पहन ली। अगले दिन चर्च में जाकर शादी कर ली। “प्रेम पदचाप कितने खामोश होते हैं? दिलों तक चले आते हैं। बिना किसी आहट के।” विश्व युद्ध समाप्त हो गया। विदेशी नागरिकों को उनके देश भेजा जाने लगा। आईको और हैनरी ने जापान जाने का पासपोर्ट बनवा लिया। इस उम्मीद से कि पत्नी के साथ पति भी जा सकता है। दो दिन बाद जापान का जलपोत जाएगा। दोनों लोग अपना ज़रूरी सामान और हैनरी अपने महंगे आर्ट पीस ज्वैलरी भी साथ ले जाना चाहता था। दोनों बंदरगाह पहुंचे ,पर हैनरी को अधिकारियों ने जाने से मना कर दिया। आइको बहुत गिड़गिड़ाती रही, प्रार्थना करती रही। हैनरी ने हाथ पकड़ लिया और अपना सारा सामान, पैसे अधिकारियों को देने का लालच दिया। पर वो जा ना सका। अंगूठी वाला हाथ हैनरी चूमता रहा। अधिकारी ने खींचकर आईको को अलग कर दिया और दरवाजा बंद कर दिया। जहाज अलविदा। दोनों के कानों में एक ही सायरन गूंजता रहा। किस्मत ने चाहा तो फिर मिलेंगे। एक ऐसा सच्चा प्यार जो कभी मरा नहीं। आईको जीवन के आखिरी दिनों तक रोज शाम जापान के बंदरगाह पर आती थी। यूरोप से आने वाले लोगों की भीड़ में हैनरी को तलाशती रही। उसके पास एक स्कार्फ था। जो हैनरी ने उसे पहली रात में दिया था। बस एक निशानी याद की। जिसने उसे बिछड़ कर भी बिछड़ने नहीं दिया। हैनरी इधर, उसका रूमाल, जो पासपोर्ट पर हाथ छुड़ाने में उसके उसके पास आ गया था। उसे लेकर हर रोज़ जापान से आने वाले जहाज के यात्रियों में आईको को ढूंढता रहा। “प्रेम के इम्तिहान कई होते हैं। पर प्रेम कभी मरता नहीं।। बिना इंतजार के प्रेम का क्या कोई किस्सा है।।” *******
- अच्छाई की जीत
रमाशंकर द्विवेदी प्रबुद्ध नाम का बटेर था जो कि स्वभाव से बड़ा दयालु और परोपकारी था। वह हर एक जीव को अपने समान ही मानता है और इसलिए कभी किसी कीट-पतंग को मारकर अपना भोजन नहीं बनाता था तथा दूसरे पशु-पक्षियों को भी ऐसा करने से मना किया करता था। वह प्रतिदिन पक्षियों को उपदेश भी देता था कि किसी जीव-जंतु को मारकर पेट भरना अच्छा नहीं है। ईश्वर ने पेट भरने के लिए तरह-तरह के फल और अनाज दिए है तो क्यों न हम उनसे अपना पेट भरे!! बटेर का उपदेश दूसरे पक्षियों को तो बहुत अच्छा लगता था, पर चील को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। वह मन ही मन बटेर से जला करती थी और उसको नुकसान पहुँचाने की दृष्टि से बाकि पक्षियों से उसकी बुराई किया करती थी। बटेर जानता था कि चील उससे जलती है और उसके विरुद्ध पक्षियों को भड़काती है। किन्तु फिर भी वह उसकी बातों का बुरा नहीं मानता था और न ही अच्छाई का साथ छोड़ता। एक दिन दोपहर के समय सभी पक्षी दाने-चारे के लिए बाहर चले गए। घोसले में केवल उनके अंडे और छोटे-छोटे बच्चे रह गए थे। उस वक्त बटेर भी अपने घोंसले में आराम कर रहा था। तभी सहसा उसके कानों में चीखने और चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी। वह तुरंत अपने घोंसले से बाहर निकला और इधर-उधर देखने लगा। वह यह देखकर स्तब्ध हो गया कि चील के घोंसले की ओर धीरे-धीरे एक काला साँप बढ़ रहा है। बच्चे उसी को देखकर चीख-चिल्ला रहे है। बटेर तीव्र गति से उड़कर नाग के पास जा पहुँचा और बोला, “अपनी कुशलता चाहते हो तो भाग जाओ! अगर घोंसले के अंदर घुसने की कोशिश की तो मैं शोर मचा दूंगा और तब तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है।” नाग ने उत्तर दिया, “चील तुम्हारे साथ इतना बुरा व्यवहार करती है फिर भी तुम उसके बच्चों की रक्षा कर रहे हो। जाओं तुम आराम करों। मुझे चील के बच्चों को खाने दो क्योंकि चील बड़ी दुष्ट प्रकृति की है।” बटेर ने कहा, “चील मेरी बुराई चाहती है तो चाहने दो लेकिन मैं तो केवल भला करना चाहता हूँ। चील अपना काम करती है, और मैं अपना काम करूँगा। मेरे रहते तुम चील के बच्चों को नहीं खा सकते। इसके लिए मुझे अपने प्राण ही क्यों न देने पड़े, पर मैं चील के बच्चों की रक्षा अवश्य करूँगा। बटेर की बात सुनकर नाग क्रुद्ध हो उठा। वह फुफकारता हुआ बोला, “मुझसे बैर मोल ले रहे हो, तुम्हें पछताना पड़ सकता है। एक बार फिर सोच लो।” बटेर ने उत्तर दिया, “सोच लिया है। बहुत करोगो, काट ही लोगो न!! मरना तो एक दिन है ही! अच्छा है, बुराई को मार कर मरूं। तुम्हें जो कुछ करना है कर लेना मगर मैं तुम्हें चील के बच्चों को खाने नहीं दूंगा।” हार मानकार नाग को वहाँ से जाना पड़ा। संध्या होने पर जब चील अपने घोंसले में वापस लौटी तो उसके बच्चों ने बटेर की बड़ी प्रसंशा करते हुए बोले - अगर आज बटेर चाचा न होते तो दुष्ट नाग हम लोगों को निगल जाता। अपने बच्चों के मुँह से बटेर की तारीफ सुनकर चील क्रुद्ध हो बोली - उसकी इतनी हिम्मत कि वह मेरे घोंसले तक आ पहुँचा। मैं उस बटेर से इसका बदला ले कर रहूंगी। चील कई दिनों तक मन-ही-मन सोच विचार करती रही। आखिर उसे बटेर से बदला लेने का एक उपाय सूझा कि क्यों न गिद्ध को ही बटेर के खिलाफ भड़का दे तो वह जरुर मेरी मदद करेगा। चील एक दिन गिद्ध के घर गई और थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद बोली - हे गिद्धराज! बटेर इस तरह का प्रचार कर रहा है कि किसी को भी जीव की हत्या नहीं करनी चाहिए। लेकिन महाराज, अगर उसका प्रचार सफल हो गया तो आपको भूखा मरना पड़ेगा। क्योंकि जीवों को मारे बिना आप का काम नहीं चल सकता। चील की बात सुनकर गिद्ध आवेश में आ गया और बोला, “अच्छा बटेर ऐसा कहता है!! तब तो उसका प्रबंध करना ही पड़ेगा।” चील और गिद्ध ने बटेर को मार डालने का निश्चय किया। दोनों ने तय किया कि कल अर्धरात्रि में जब सभी पक्षी सोते रहेंगे, तो वे दोनों बटेर के घोंसले पर हमला कर उसे मार देंगे। दूसरे दिन अर्धरात्रि को जब सभी पक्षी अपने-अपने घोंसले में सो रहे थे, तब गिद्ध और चील दबे पांव बटेर के घोंसले के पास जा पहुँचे। दोनों ने बड़े आश्चर्य के साथ देखा कि उनसे पहले ही एक काला नाग धीरे-धीरे बटेर के घोंसले की ओर बढ़ रहा था। यह वही काला नाग था जिसे बटेर ने चील के बच्चों को खाने से रोका था। संयोग की बात, वह भी उसी वक्त बटेर से बदला लेने के लिए आया था। चुकि चील, गिद्ध और नाग की पहले से ही शत्रुता है। अत: जैसे ही उन्होंने एक दूसरे को देखा तो बटेर को हानि पहुँचना भूल गए और तीनों आपस में ही लड़ने लगे। तीनों की चीख-पुकार सुनकर सभी पक्षी अपने-अपने घोंसले से बाहर आ गए। लड़ाई इतनी भयंकर थी कि कोई भी उन्हें बचा न सका और तीनों आपस में लड़कर मर गए। बुरे का अंत हमेशा बुरा ही होता है। ******
- द्रौपदी का कर्ज
वीरेन्द्र प्रताप अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी। तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, "पुत्री भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।" उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली, "आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता?" द्रौपदी बोली, "क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया। मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आँखें झुकाए आँसू बहाते रहे। सबसे निराशा होकर मैंने श्रीकृष्ण को पुकारा, "आपके सिवाय मेरा और कोई भी नहीं है, तब श्रीकृष्ण तुरंत आए और मेरी रक्षा की।" जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था। रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएँ और उसकी मदद करें।" श्री कृष्ण बोले, "जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूँ। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूँगा। तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई थी। उस समय "मेरी सभी पत्नियाँ वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई। मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बाँध दिया। आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है, लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं जा नहीं सकता।" अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए। *****
- पहला केस
संगीता चावला जूही कोर्ट में अपना केस लड़ रही थी। जज ने कहा, "आज के लिए कोर्ट स्थगित की जाती है।" ये सुनकर जूही ने वहां मौजूद लोगों की ओर देखा, जो उसकी अगली चाल जानने को उत्सुक थे। मीडिया के सवालों से बचने के लिए जूही तेजी से अपनी कार की ओर बढ़ गई।जूही के सामने विपक्ष के वकील और कोई नहीं, बल्कि उसका अपना भाई था। जूही ने वकालत में जो कुछ सीखा, अपने पिता और भाई से ही सीखा था। लेकिन उसके पिता, अरुण शर्मा, लड़कियों के वकील बनने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि लड़कियां ये प्रोफेशन ठीक से नहीं संभाल सकतीं। इस केस का सीधा संबंध जूही के परिवार से था। उसके पिता ने उसके भाई को वकील बनाने के लिए अपनी जमीन गिरवी रख दी थी। लेकिन जिसने जमीन गिरवी रखी थी, उसने लालच में आकर जमीन वापस नहीं की और वहां बिजनेस कॉम्प्लेक्स बनाने की योजना बना ली। यहां तक कि उसने जूही के भाई को भी अपने पक्ष में मिला लिया। अगले दिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान जूही केस जीत गई। जब वह घर पहुंची तो उसने अपने पापा से कहा, "डैड, ये रही हमारी जमीन।" अरुण शर्मा ने जूही को गले से लगा लिया। उन्होंने कहा, "मैं तुम्हें जमीन वापस मिलने की खुशी में नहीं, बल्कि तुम्हारी आखिरी दलील सुनकर गले लगा रहा हूं।" जूही की आखिरी दलील थी: "जज साहब, उन बच्चों को भी सजा मिलनी चाहिए जो अपने माता-पिता की मेहनत और प्यार को भूलकर उन्हीं के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। जो उस डाल को काटने लगते हैं जिसने उन्हें फल-फूलने का मौका दिया।" अरुण शर्मा ने जूही के साहस और समझदारी को सराहा, और उन्हें अपनी बेटी पर गर्व हुआ। ******
- मेच्योर लव स्टोरी
सरिता जायसवाल चालीस पार की एक महिला और एक पुरुष पास-पास ही रहते थे, दोनों अकेले थे। दोनों दोस्त हो गये और साथ समय बिताने लगे, एक दूसरे को पसंद करने लगे। बैंक कर्मचारी वरुण फ्लैट किराये पर लेकर अकेला रहने आया। उसकी उम्र 41 साल, कद 5 फुट 7 इंच लम्बा, गेहुंआ रंग और फिट शरीर था। वरुण के सामने वाले फ्लैट में एक महिला रहती थी, पर कभी बात नहीं हुई। वही महिला वरुण के बैंक में खाता खुलवाने आयी। आधार कार्ड से पता चला- नाम मीनाक्षी, उम्र 50, उनकी और वरुण की मातृभाषा एक है। वरुण ने मातृभाषा में बात की - मीनाक्षी जी, खाता खोलने में दो दिन लगेंगे। दो दिन बाद वरुण ने मीनाक्षी को बताया- पासबुक, चेक बुक, तैयार है। उनके बीच थोड़ी बात हुई, वरुण ने मीनाक्षी को ध्यान से देखा। मीनाक्षी का चेहरा सुन्दर था, भरा बदन, गेहुंआ रंग, उनकी आंखें बहुत सुन्दर थी, उनके नाम मीनाक्षी (मछली जैसी आँखों वाली) के नाम के अनुरूप। करीब 5 फुट लम्बी। मीनाक्षी की आवाज़ मधुर थी, वह बात सलीके से करती थी। अगली शाम वरुण ने चाय बनाते समय देखा दूध फट गया है। वरुण ने मीनाक्षी की कालबेल बजाई मीनाक्षी ने दरवाज़ा खोला। वरुण- आप मुझे थोड़ा दूध दे सकती हैं? चाय बनानी है। मेरी रसोई में दूध खराब हो गया है।
- पुत्र की भूल
डॉ. कृष्ण कांत श्रीवास्तव एक बार पिता और पुत्र जलमार्ग से यात्रा कर रहे थे, और दोनों रास्ता भटक गये। वे दोनों एक जगह पहुँचे, जहाँ दो टापू आस-पास थे। पिता ने पुत्र से कहा, अब लगता है हम दोनों का अंतिम समय आ गया है। दूर-दूर तक कोई सहारा नहीं दिख रहा है। अचानक उन्हें एक उपाय सूझा, पिता ने पुत्र से कहा कि वैसे भी हमारा अंतिम समय नज़दीक है तो क्यों न हम ईश्वर की प्रार्थना करें। उन्होने दोनों टापू आपस में बाँट लिए। एक पर पिता और एक पर पुत्र, और दोनों अलग-अलग ईश्वर की प्रार्थना करने लगे। पुत्र ने ईश्वर से कहा, हे भगवन, इस टापू पर पेड़-पौधे उग जाए जिसके फल-फूल से हम अपनी भूख मिटा सकें। प्रार्थना सुनी गयी, तत्काल पेड़-पौधे उग गये और उसमें फल-फूल भी आ गये। उसने कहा ये तो चमत्कार हो गया। फिर उसने प्रार्थना की, एक सुंदर स्त्री आ जाए जिससे हम यहाँ उसके साथ रहकर अपना परिवार बसाएँ। तत्काल एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गयी। अब उसने सोचा कि मेरी हर प्रार्थना सुनी जा रही है, क्यों न हम ईश्वर से यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता माँगे? उसने ऐसा ही किया। उसने प्रार्थना की, एक नाव आ जाए जिसमें सवार होकर हम यहाँ से बाहर निकल सकें। तत्काल नाव प्रकट हुई, और पुत्र उसमें सवार होकर बाहर निकलने लगा। तभी एक आकाशवाणी हुई, बेटा तुम अकेले जा रहे हो? अपने पिता को साथ नहीं लोगे? तो पुत्र ने कहा, उनको छोड़ो, वो इसी लायक हैं, प्रार्थना तो उन्होंने भी की, लेकिन आपने उनकी एक भी नहीं सुनी। शायद उनका मन पवित्र नहीं है, तो उन्हें इसका फल भोगने दो ना? आकाशवाणी कहती है – बेटा, क्या तुम्हें पता है, कि तुम्हारे पिता ने क्या प्रार्थना की? पुत्र बोला नहीं। तो सुनो, तुम्हारे पिता ने एक ही प्रार्थना की, कि हे भगवन, मेरा बेटा आपसे जो माँगे, उसे दे देना। आकाशवाणी सुनकर पुत्र बड़ा लज्जित हुआ और उसने जीवन में ऐसी गलती दोबारा ना करने की प्रतिज्ञा की। यहां ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हम सबको इस लायक बनाएं कि हम अपने माता-पिता के साये में हमेशा हँसते मुस्कराते रहें। ******
- तोते का पिंजरा
राम शंकर कुशवाहा एक बार गुप्ता जी को अपने ही गांव के मुखिया जी के यहां दावत पर जाना था। बेचारे गुप्ता जी इसके लिए बड़े उत्साहित थे और खुश भी । उस वक़्त जमाना पुराना था, बिजली, बल्ब, स्ट्रीट लाइट वगैरह तब हर इलाक़े, गांव या कस्बे में नहीं हुआ करती थी। उन्होंने सोचा कि आज तो बहुत देर रात तक शेरोशायरी, मौसिकी और शराब की महफ़िल जमेगी, इसलिए अंधेरे में घर लौटने में दिक्कत हो सकती है तो क्यूँ न घर से अपना लालटेन भी साथ लेकर चलें। फिर जैसा कि उन्होंने सोचा था, महफ़िल वैसी ही बहुत देर रात तक चली। गुप्ता जी जैसे तैसे नशे में टुन्न होकर घर लौटे। बेचारे अपने घर आकर दोपहर तक सोते रहे। शाम को उनकी गांव के मुखिया जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने गुप्ता जी से कहा,"जनाब, हमारे आने से आपके आराम में कहीं कोई खलल तो नहीं पड़ा न?" गुप्ता जी:- जी नहीं मुखिया जी...बिलकुल भी नहीं, कहिए, कैसे याद किया....? मुखिया जी :- कैसी रही कल की दावत? रात के अंधेरे में घर पहुंचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई न आपको? गुप्ता जी : "साहब, कैसा अंधेरा? लालटेन तो थी मेरे पास औऱ रही बात दावत की तो वो तो बहुत ही उम्दा थी। महफ़िल तो और भी बेहतरीन थी।" मुखिया जी :"जी शुक्रिया! वो मैं कह रहा था कि यदि आपको क़भी मेरे घर तरफ़ आना हुआ तो अपनी लालटेन लेते जाइयेगा .....और जो कल रात नशे में आप हमारे घर से तोते का पिंजरा उठा ले आए थे, वो फ़िलहाल मुझें लौटा दीजिए। *****
- एक कप कॉफी
सरोज रावत ग्रेजुएशन की पहली साल में ही शैली की शादी हो गई। उसका पति कुनाल और परिवार के सभी लोग बड़े प्यारे और खुले विचारों के थे। जब शैली की शादी तय हुई थी, तभी उसकी सास ने खुल के कह दिया था, “बेटा! शादी भले ही हो जाये, पर तुम अपनी पढ़ाई-लिखाई कभी मत छोड़ना। जितना चाहो उतना आगे बढ़ना।” ससुराल में पहले दिन से ही सब उससे ऐसे बर्ताव करते, जैसे वो यहां जाने कितने सालों से रह रही है। हर चीज़ में उसकी राय ली जाती और उसकी पसंद को महत्व दिया जाता। सच कहूं तो शैली का ससुराल ऐसा था, जैसे ससुराल का सपना हर लड़की देखती है, पर हकीकत में सबकी किस्मत शैली जैसी नहीं होती।
- मित्र की मदद
मुकेश ‘नादान’ बी.ए. की परीक्षा के लिए फीस जमा करने का समय आ गया था। सबके रुपयों की व्यवस्था हो गई थी। केवल चोरबागान के गरीब मित्र हरिदास की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। वह फीस जमा नहीं कर सका। इसके अतिरिक्त एक वर्ष का शुल्क भी बाकी थी। निश्चय ही इस प्रकार की विशेष अवस्था में रुपए माफ कर देने की भी व्यवस्था थी, और उसका भार राजकुमार नामक कॉलेज के एक वृद्ध किरानी पर था। हरिदास चट्टोपाध्याय ने देखा कि किसी भाँति परीक्षा-शुल्क तो दिया जा सकता है, किंतु कॉलेज का मासिक शुल्क देना असंभव है। लेकिन राजकुमार बाबू दयाशील के रूप में जाने जाते थे, भले ही नशाखोर के रूप में उनकी थोड़ी बदनामी थी। सब सुनकर नरेंद्र ने हरिदास को भरोसा दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा। दो-एक दिन के बाद जब राजकुमार बाबू की मेज पर काफी भीड़ लग गई और एक के बाद एक लड़के रुपए जमा कर रहे थे, तब नरेंद्रनाथ ने भीड़ को ठेलते हुए आगे जाकर राजकुमार बाबू से कहा, “महाशय, लगता है, हरिदास मासिक शुल्क दे नहीं सकेगा। आप थोड़ी कृपा कर उसे माफ कर दें। उसे परीक्षा देने के लिए भेजने पर वह अच्छी तरह पास करेगा, और नहीं भेजने पर सब बेकार हो जाएगा।” राजकुमार ने मुँह बनाकर कहा, “तुझे धृष्टतापूर्वक पैरवी करने की जरूरत नहीं है। तू जा, अपने चरखे में तेल देने जा। मासिक शुल्क नहीं देने पर मैं उसे परीक्षा नहीं देने दूँगा।” धमकी खाकर नरेंद्र वापस आए। मित्र भी हताश हुए। तथापि नरेंद्र ने भरोसा देकर कहा, “तू हताश क्यों होता है? वह बुड्ढा यूँ ही धमकी देता है। मैं कहता हूँ, तेरा उपाय अवश्य कर दूँगा, तू निशंचित रह।” इधर नरेंद्र घर न जाकर एक अफीम के अड्डे पर गए। पता लगाया कि राजकुमार अभी भी नहीं आए हैं। नरेंद्र तब अपने शरीर को ढककर एक गली में हेदो की ओर स्थिर दृष्टि से देखने लगे। शाम का अँधेरा जब और घना हो गया, तब राजकुमार को अफीम सेवन करने वालों के अड्डे की ओर चोरी-चोरी आते देखा। अकस्मात् नरेंद्र गली के मुँह पर आकर राजकुमार के रास्ते के आगे खड़ा हो गया। नरेंद्र को देखते ही बूढ़े को लगा कि विपदा आ गई। तथापि सहजभाव से उन्होंने पूछा, “क्या रे दत्त, यहाँ क्यों? ” नरेंद्र ने हरिदास की प्रार्थना फिर दुहराई और साथ-साथ यह भय भी दिखाया कि प्रार्थना मंजूर नहीं होने पर अफीम की गोली के अड्डे की बात कॉलेज में प्रचारित कर दूँगा। बूढ़े ने तब कहा, “बच्चा, क्रोध क्यों करता है? तू जो कहता है, वही होगा। तू जो कहता है तो क्या मैं उसे नहीं करूँगा? ” नरेंद्र ने तब जानना चाहा कि यदि यह उनका वास्तविक मनोभाव है तो सुबह ही यह कहने में क्या आपत्ति थी? बूढ़े ने समझा दिया कि उस समय माफ करने से उसका उदाहरण देकर दूसरे लड़के भी ऐसा ही करने लगते। किंतु कॉलेज का मासिक शुल्क माफ होने पर भी परीक्षा शुल्क माफ नहीं होगा, वह देना ही होगा। नरेंद्र ने भी सहमति प्रकट कर विदा ली। इधर नरेंद्र की आँख से ओझल होते ही राजकुमार थोड़ा इधर-उधर देखकर अफीम की गोली के अड्डे में घुस गए। हरिदास का निवास-स्थान चोरबागान के भुवनमोहन सरकार की गली में था। सूर्योदय के पहले ही नरेंद्र ने अपने मित्र के घर आकर दरवाजे को थपथपाया और गाना शुरू किया- भावार्थ-निर्मल-- पावन उषाकाल में आओ तन्मय ध्यान करो पूर्ण ब्रह्म का, जो है अनुपम चिर अनंत महिमा आगार। 'उदयाचल के शुभ भाल पर जिनकी प्रेमानन-छाया बालारुण बनकर शोभित है देखो ज्योतिर्मय साकार। इस शुभ दिन में मधु समीर बहता है कर उनका गुणगान और ढालता रहता अहरह वह मधुर अमृत की धार। सब मिल-जुलकर चलो चलें भगवत् के दिव्य निकेतन में हृदय-थाल में आज सजाकर अपने अमित प्रेम-उपहार। इसके बाद हरिदास को कहा, “ओ रे, खूब आनंद करो, तुम्हारा कार्य सिदूध हो गया है। मासिक शुल्क के रुपए अब तुम्हें नहीं देने होंगे।” इसके बाद उस शाम की कथा सुनाकर सबको हँसने पर विवश कर दिया। ******











