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नालायक

रमाशंकर कुशवाहा

दीनानाथ जी कपड़े के व्यापारी थे। इनके तीन लड़के विशाल, रवि और सूरज थे। दीनानाथ जी चाहते थे कि इनके तीनों बच्चे अपने पैरों पर खड़ा हो जाए ताकि मेरे मरने के बाद इन्हें किसी चीज के लिए मोहताज न रहना पड़े।
इनके दो लड़के विशाल और रवि पढ़ने में काफी होशियार थे लेकिन इनका छोटा बेटा सूरज को पढ़ने में जरा भी मन नहीं लगता था जिस कारण से दीनानाथ हमेशा उस से नाराज रहते थे और अपने पत्नी से कहते, "पता नहीं यह नालायक आगे अपने जिंदगी मे क्या करेगा?
मुझे अपने दोनो बेटों पर पूरा भरोशा है, यह दोनों मेरा नाम जरूर रौशन करेगे और यह नालायक (सूरज) मेरी नाक कटबा कर ही रहेगा।
कुछ ही दिनों में, तीनो के कॉलेज का रिजल्ट आया जिस में उनके दोनों लड़के अच्छे नंबरो से पास हो गये लेकिन उनका छोटा बेटा फेल हो। सूरज के फेल होने पर उसके पिता खुब डाटते और उससे हर समय कहते, "यह नालायक मेरा नाक कटवा दिया।”
विशाल और रवि का एक अच्छे से कंपनी में नौकरी लग जाता है वही छोटा बेटा घर पर बैठा रहता, जिसे देख कर उसके पिता हमेशा 'नालायक' कह कर ताना मारा करते।
दीनानाथ ने कहा, "मेरे जीवित रहते ही तीनो के बेटों के बीच सम्पंती और जमीन का बटबार कर देता हुं ताकि मेरे मरने के बाद संपत्ति को लेकर इनके बीच झगड़ा ना हो। तीनो भाइयों को बराबर-बराबर संपत्ति और जमीन मिलती है।
छोटा बेटा (सूरज) गाँव में अपने जमीन के हिस्से में खेती किया करता था और दीनानाथ अपने पत्नी के साथ शहर में अकेले रहता थे क्योंकि उनके दोनो बेटे दूसरे शहर में जॉब करते थे और वह अपने छोटे बेटे को एकदम पसंद नहीं करते थे।
एक दिन, दीनानाथ, घबराते हुए स्वर में अपने बड़े को फोन करते है और कहते हैं, तुम्हारी माँ का एक्सीडेंट हो गया है और वह हॉस्पिटल में भर्ती है। डॉक्टर बोल रहे हैं, तुम्हारी माँ के ऑपरेशन में 5 लाख खर्च होगा, तुम जल्दी पैसे भेज दो ताकि ऑपरेशन शुरु हो सके।
पैसे की बात सुनकर बड़ा बेटा बोलता है, मैंने हाल में ही नया घर खरीदा है जिसमे सारे पैसे खत्म हो गए हैं। यह कह कर वह अपने पिता को पैसे देने से मना कर देता है और कहता, "माँ को सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करा दीजिए।”
दीनानाथ अपने बड़े बेटे की बात से निराश होकर, अपने दूसरे बेटे को फोन करते हैं और उसको उसकी माँ के बारे मे बताते हैं, लेकिन पैसे की बात सुन दूसरा बेटा भी बहाना कर पैसे देने से मना कर देता है। वह पैसे मांगने के लिए अपने छोटे बेटे के बारे में सोचते हैं लेकिन बाद में वह सोचता है कि जब दोनों ने कुछ नहीं किया तो वो 'नालायक' क्या करेगा?
जब दीनानाथ अपनी पत्नी को लेकर सरकारी हॉस्पिटल में जा रहता था तभी उसका नालायक (सूरज) बेटा पीछे से आवाज देता है। पिताजी माँ को लेकर कहाँ जा रहे है? उसके पिताजी उस से कहते हैं मैने तो तुम्हें तुम्हारी माँ के बारे में बताया भी नहीं फिर तुम यहां कैसे?
इस पर सूरज बोला, मैंने भी अपने आदमी छोड़ रखे हैं पिताजी जो मुझे आप के बारे में पल पल की जानकारियां देते रहते हैं। यह बोल कर सूरज पिताजी को रुकने को बोलता है, और हॉस्पिटल में पैसे जमा करबा देता है जिससे उसकी माँ का इलाज हो जाता है। फिर उसके बाद सूरज दिखाई नहीं देता।
पत्नी के ठीक होने के बाद, जब दीनानाथ अपने बेटे से मिलने गांव जाते हैं तो देखते हैं उसके खेत में कोई दूसरा आदमी खेती कर रहा है। पूछने पर पता चला कि उसने अपनी जमीन बेच दी क्योंकि उसे पैसे की जरूत थी और काम करने शहर चला गया है। जब दीनानाथ उसके कमरे में जाकर देखते हैं तो पाते हैं कि हॉस्पिटल के बिल की 5,00,000 की रसीद वहीं पर रखी हुई है।
यह देख कर उसके पिता के आँखो से आंसू बहने लगते और दीनानाथ मन ही मन सोचते हैं कि जिंस बेटे को हर समय नालायक कहता रहा वो तो हीरा निकला।
निष्कर्ष:- कभी-कभी जिससे हम सबसे कम उम्मीद रखते है, वही लोग सबसे अधिक जिम्मेदारी और त्याग दिखाते हैं। सूरज को उसके पिता जीवन भर नालायक समझते रहे, लेकिन विपत्ति के समय जब दोनो समझदार और पढ़े-लिखे बेटे पीछे हट गए, तब सूरज ने माँ की जान बचाने केलिए जमीन तक बेच दी। यह कहानी सिखाती है कि इंसान की सच्ची काबिलियत जिम्मेदारी, प्रेम और त्याग मे होती है।

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