एक थी काव्या
- रजनीकांत
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रजनीकांत
यह कहानी है काव्या की, जो एक छोटे से शहर, लखनऊ, में पली-बढ़ी थी। उसकी शादी उसकी मर्जी के बिना एक साधारण से इंसान, रोहित, से कर दी गई। रोहित का परिवार भी बहुत बड़ा नहीं था - सिर्फ वो और उसकी बूढ़ी माँ। शादी में उसे ढेर सारे उपहार मिले थे, पर काव्या का दिल किसी और के लिए धड़कता था। उसे लगता था कि उसका असली प्यार कहीं और है, मगर तकदीर ने उसे रोहित के घर पहुँचा दिया।
शादी की पहली रात, रोहित उसके लिए दूध लेकर आया। काव्या ने उसे देखते ही सीधे-सीधे पूछा, "अगर कोई पति अपनी पत्नी को उसकी मर्जी के बिना छुए, तो क्या वो उसका हक कहलाएगा या जबरदस्ती?" रोहित ने बिना झिझके जवाब दिया, "आपको इतनी गहराई में जाने की जरूरत नहीं। मैं बस आपको शुभ रात्रि कहने आया था," और ये कहकर वो कमरे से बाहर चला गया।
काव्या को शायद इसी बहाने की तलाश थी कि कुछ अनबन हो, ताकि वो इस अनचाहे रिश्ते से बाहर निकल सके। पर उसके इस सवाल पर रोहित ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
काव्या ने ससुराल का कोई काम भी नहीं संभाला। दिनभर अपने फोन में लगी रहती, अलग-अलग लोगों से बातें करती। उसकी सास, बिना कोई शिकायत किए, घर का सारा काम चुपचाप करती रहती और हर वक्त उसके चेहरे पर मुस्कान रहती। रोहित एक सामान्य कंपनी में काम करता था, मेहनती और ईमानदार। एक महीना गुजर गया, लेकिन काव्या और रोहित के बीच कोई पति-पत्नी वाला रिश्ता नहीं बना।
फिर एक दिन, काव्या ने उसकी माँ के बनाए खाने की बुराई करते हुए पूरा खाना फेंक दिया। तब पहली बार रोहित ने उस पर गुस्सा किया और डांट दिया। काव्या को यही चाहिए था, एक झगड़ा। वो पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गई और अपने पुराने प्यार से मिलने चली गई। उसने काव्या से कहा, "कब तक ऐसे रहोगी? चलो, कहीं दूर भाग चलते हैं।" मगर सच यह था कि काव्या के पास तो कुछ था नहीं, और वो भी बिना कुछ लिए भागने को तैयार नहीं था।
इसी दौरान, एक दिन काव्या ने रोहित की अलमारी खोली और उसमें अपने बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड, और अपने गहने पाए, जो उसे लगा था कि उसके घरवालों ने ले लिए हैं। हैरानी तब हुई जब उसने रोहित की डायरी में एक खत पाया। उसमें लिखा था कि उसने उसके हर सामान को संजोकर रखा है और जो पैसे शादी में मिले थे, वो भी उसके अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए थे। खत में ये भी लिखा था कि वह उसे प्यार से इस रिश्ते में बाँधना चाहता है, न कि जबरदस्ती।
रोहित की इन बातों ने काव्या का दिल छू लिया। उसे अंदाजा ही नहीं था कि ये साधारण सा आदमी उसके दिल की इतनी गहराई को समझ सकता है। धीरे-धीरे काव्या को एहसास हुआ कि रोहित का प्यार उसकी सादगी में था। वो उसे बिना किसी शर्तों के चाहता था, बिना किसी दिखावे के।
अगली सुबह, काव्या ने अपनी माँग में गाढ़ा सिंदूर भरा और सीधे रोहित के ऑफिस पहुँच गई। सबके सामने उसने हँसते हुए कहा, "अब सब ठीक है, हम साथ में एक लंबी छुट्टी पर जा रहे हैं।"
उस दिन काव्या को समझ आया कि जिन फैसलों को वो अपने लिए गलत मानती थी, वही उसकी जिंदगी के सबसे सही फैसले थे। उसके माँ-बाप ने उसके लिए जो चुना, वो सिर्फ उसकी भलाई के लिए था।
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