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- गलत मार्ग का अंजाम
रत्न सावरकर किसी ग्राम में किसान दम्पती रहा करते थे। किसान तो वृद्ध था पर उसकी पत्नी युवती थी। अपने पति से संतुष्ट न रहने के कारण किसान की पत्नी सदा पर-पुरुष की टोह में रहती थी, इस कारण एक क्षण भी घर में नहीं ठहरती थी। एक दिन किसी ठग ने उसको घर से निकलते हुए देख लिया। उसने उसका पीछा किया और जब देखा कि वह एकान्त में पहुँच गई तो उसके सम्मुख जाकर उसने कहा, “देखो, मेरी पत्नी का देहान्त हो चुका है। मैं तुम पर अनुरक्त हूं। मेरे साथ चलो।” वह बोली, “यदि ऐसी ही बात है तो मेरे पति के पास बहुत-सा धन है, वृद्धावस्था के कारण वह हिलडुल नहीं सकता। मैं उसको लेकर आती हूं, जिससे कि हमारा भविष्य सुखमय बीते।” “ठीक है जाओ। कल प्रातःकाल इसी समय इसी स्थान पर मिल जाना।” इस प्रकार उस दिन वह किसान की स्त्री अपने घर लौट गई। रात होने पर जब उसका पति सो गया, तो उसने अपने पति का धन समेटा और उसे लेकर प्रातःकाल उस स्थान पर जा पहुंची। दोनों वहां से चल दिए। दोनों अपने ग्राम से बहुत दूर निकल आए थे कि तभी मार्ग में एक गहरी नदी आ गई। उस समय उस ठग के मन में विचार आया कि इस औरत को अपने साथ ले जाकर मैं क्या करूंगा। और फिर इसको खोजता हुआ कोई इसके पीछे आ गया तो वैसे भी संकट ही है। अतः किसी प्रकार इससे सारा धन हथियाकर अपना पिण्ड छुड़ाना चाहिए। यह विचार कर उसने कहा, “नदी बड़ी गहरी है। पहले मैं गठरी को उस पार रख आता हूं, फिर तुमको अपनी पीठ पर लादकर उस पार ले चलूंगा। दोनों को एक साथ ले चलना कठिन है।” “ठीक है, ऐसा ही करो।” किसान की स्त्री ने अपनी गठरी उसे पकड़ाई तो ठग बोला, “अपने पहने हुए गहने-कपड़े भी दे दो, जिससे नदी में चलने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। और कपड़े भीगेंगे भी नहीं।” उसने वैसा ही किया। उन्हें लेकर ठग नदी के उस पार गया तो फिर लौटकर आया ही नहीं। वह औरत अपने कुकृत्यों के कारण कहीं की नहीं रही। इसलिए कहते हैं कि अपने हित के लिए गलत कर्मों का मार्ग नहीं अपनाना चाहिए। *******
- जीवन गणित
सन्दीप तोमर जिंदगी के गणित में तुमने रेखागणित को चुना और मैं, मैं खुद बना रहा एलजेब्रा मान लेता अचर को कोई चर और सुलझा लेता उलझी हुई समीकरणों को, एक रोज जब मैंने चाहा जिंदगी का हल तब तुम बोली- रेखागणित सी इस दुनिया में मैं और .... और तुम दो समांतर रेखाएँ जैसे नदी के दो तीर, सिर्फ साथ चल सकते हैं, दूर से एक-दूसरे को देख सकते हैं, शायद महसूस भी कर सकते हैं लेकिन, अगर गलती से मिल गये तो अपना अस्तित्व समाप्त, मैंने कहना चाहा प्रतिउत्तर में- तिर्यक रेखाएँ भी उसी रेखागणित का हिस्सा है, साथ चलते हुए एक बार मिलती है और बस एक बार मिलकर फिर नहीं मिलती और यह मिलना कोई संयोग न होकर हो जाता है अक्सर ऐतिहासिक योग शकुंतला का जन्म भी सम्भवतः ऐसे ही तिर्यक रेखाओं का अद्भुद संयोग रहा होगा लेकिन-तुमने बाँध लिया खुद को समांतर रेखाओं के दायरे में, ये दायरे मुझे एलजेब्रा से निकाल समांतर रेखा की मर्यादा सिखाते लगते हैं और मैं ख़ो जाता हूँ वृत की एक निश्चचित त्रिज्या के गिर्द घूमते पथ से निर्मित परिधि के आकर्षण में। ******
- मां का घर
सविता देवी एक दिन मैंने अपने पति के साथ झगड़े वाली सारी बातें अपने भाई को बता दी तो भाई ने कहा कि एक काम करो तुम कुछ दिनों के लिए हमारे घर आ जाओ...!! जब तुम दोंनो कुछ दिन एक दूसरे से अलग रहोगे तो तुम दोंनो को एक दूसरे की कमी का एहसास होगा...!! फिर मैं कुछ दिनों के लिए पति का घर छोड़कर भाई के घर आ गई... हालांकि मेरा भाई बहुत अच्छा है मुझे बहुत प्यार भी करता है पर कहते हैं न कि भाई चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो परन्तू...!! अगर कोई काम भाभी की मर्जी के हो तो घर का माहौल, खराब होने में देर नहीं लगती...!! कुछ दिनों बाद ही भाभी को लगने लगा कि कहीं मैं हमेशा के लिए ही मायके में ना रह जाऊं,इसलिए वो दूसरों पर डालकर मुझे हर दिन कुछ ना कुछ ताना मारने लगी कि...!! "ये घर छोड़ने वाली लड़कियों का ना कोई घर नहीं होता"ना घर की रहती है ना घाट की....!! मैं भाभी के इसारे अच्छे से समझने लगी, कुछ ही दिनों में मुझे लगने लगा कि, यह अब मेरा मायका नहीं है बल्कि अब यह भाभी का घर है...!! इधर मेरे पति को भी अकेला पन महसूस होने लगा तो वो मुझे लेने आ गये और मैं उनसे लिपट कर रोने लगी... फिर उन्होंने मेरे आंसू पोछे....!! फिर मैं भाई का घर छोड़कर वापस ससुराल आ गयी... रास्ते भर मैं बस यही सोचती रही कि जब तक घर में मां होती है तब तक ही मायका अपना घर लगता है उसके बाद तो सिर्फ भाभी का घर बन जाता है...!! शायद तभी तो कहते हैं कि "मायका माँ से होता है....!! ******
- इज्जत और इंसानियत
गोपाल चंद्र सर्दियों की सुबह थी। मुंबई एयरपोर्ट पर भीड़ अपने चरम पर थी। बिजनेस ट्रैवलर्स लैपटॉप लेकर भाग रहे थे, परिवार छुट्टियों पर जाने को तैयार थे और हर तरफ चकाचौंध थी। इसी भीड़ में एक बुजुर्ग महिला, श्रीमती विमला देवी, धीरे-धीरे चलते हुए एयरलाइंस के काउंटर तक पहुंची। उनका पहनावा सादा था - एक सूती साड़ी, ऊपर पुराना शॉल और पैरों में साधारण चप्पलें। हाथ में एक प्लास्टिक कवर में रखी प्रिंटेड टिकट थी। चेहरे पर शांति थी, लेकिन आंखों में थकान भी थी। उन्हें बस सीट कंफर्म होने का आश्वासन चाहिए था। उन्होंने काउंटर पर खड़ी लड़की से विनम्रता से पूछा, “बिटिया, यह मेरी टिकट है। सीट कंफर्म है क्या? मुझे भोपाल जाना है।” लड़की ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, फिर मुंह बनाया और बोली, “आंटी, यह रेलवे स्टेशन नहीं है। यहां बोर्डिंग ऐसे नहीं मिलती। पहले ऑनलाइन चेक इन करना पड़ता है।” विमला देवी थोड़ी घबरा गईं—”मुझे नहीं आता बेटा यह सब, बस एक बार देख लो प्लीज।” पास खड़ा एक और कर्मचारी हंसते हुए बोला, “इन्हें कौन टिकट देता है भाई? ये लोग ऐसे ही फालतू घूमते हैं। आंटी, आप घर जाइए, यह आपके बस की बात नहीं है।” भीड़ के बीच कुछ लोग देख रहे थे, लेकिन कोई कुछ नहीं बोला। किसी को जल्दी थी, किसी को फर्क नहीं पड़ा। विमला देवी फिर बोलीं, “बस एक बार कंप्यूटर में चेक कर लीजिए, टिकट असली है बेटा।” लड़की ने टिकट ली, बिना देखे ही फाड़ डाली और जोर से कहा, “मैम, प्लीज क्लियर द एरिया, दिस इज नॉट अलाउड हियर!” विमला देवी स्तब्ध रह गईं, हाथ में अब सिर्फ आधी फटी हुई टिकट थी। उनका चेहरा सूना पड़ गया, धीरे से गर्दन झुकाई और पीछे मुड़कर भीड़ में खो गईं। बाहर एयरपोर्ट के गेट के पास वह एक बेंच पर जाकर बैठ गईं। कपकपाती ठंड में हाथ कांप रहे थे, लेकिन चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था, बस एक ठहराव। उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू में लिपटा पुराना छोटा सा कीपैड वाला फोन निकाला, जिसकी स्क्रीन धुंधली पड़ चुकी थी। एक नंबर डायल किया—”हां, मैं एयरपोर्ट पर हूं। जैसा डर था वैसा ही हुआ। अब आपसे अनुरोध है, वह आदेश जारी कर दीजिए। हां, तुरंत।” कॉल काटने के बाद उन्होंने एक लंबी सांस ली और आंखें बंद कर लीं। अंदर एयरपोर्ट पर हलचल शुरू हुई। काउंटर पर काम कर रहे कर्मचारियों को मैनेजर ने बुलाया—”सब बोर्डिंग प्रोसेस रोक दो। फ्लाइट्स के क्लीयरेंस ऑर्डर रुके हैं। कुछ इशू आया है।” कुछ ही मिनटों में सिक्योरिटी चीफ का फोन बजा—”डीजीसीए से कॉल आया है। हमारी आज की फ्लाइट्स पर रोक लगाई गई है। कोई वीआईपी केस है?” परेशान स्टाफ सोच में पड़ गया—वीआईपी किसने शिकायत की? तभी एक काले रंग की गाड़ी एयरपोर्ट गेट पर रुकी। उसमें से निकले तीन लोग—एक वरिष्ठ एयरलाइन अधिकारी, एक निजी सहायक और एक वरिष्ठ सुरक्षाकर्मी। उनके साथ बेंच पर बैठी बुजुर्ग महिला अब खड़ी हो चुकी थी और एयरपोर्ट के उसी प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रही थी, जहां कुछ देर पहले उन्हें “आंटी, यह रेलवे स्टेशन नहीं है” कहा गया था। एयरपोर्ट का माहौल बदल चुका था। उड़ानों की अनाउंसमेंट बंद, सन्नाटा छा गया। कई पैसेंजर्स से कहा गया—थोड़ी देर रुकिए, टेक्निकल इशू है। लेकिन स्टाफ खुद नहीं जान रहा था असली वजह क्या है। तभी एयरलाइन काउंटर के पास वही बुजुर्ग महिला फिर से प्रकट हुईं। इस बार उनके साथ एयरलाइन की चीफ ऑपरेशंस ऑफिसर, डीजीसीए के वरिष्ठ सलाहकार और एक विशेष सुरक्षा अधिकारी थे। भीड़ हटी, रास्ता बना। जिन कर्मचारियों ने कुछ देर पहले उन्हें धकेला था, अब उनके चेहरे पर पसीना था। विमला देवी धीरे-धीरे उस काउंटर की ओर बढ़ीं जहां उनकी टिकट फाड़ी गई थी। उन्होंने जेब से एक और कार्ड निकाला—उस पर लिखा था: “श्रीमती विमला देवी, वरिष्ठ नागरिक एवं नागर विमानन मंत्रालय की सलाहकार, पूर्व अध्यक्ष नागरिक विमानन प्राधिकरण।” उनकी पहचान देखकर मैनेजर का चेहरा सफेद पड़ गया। तभी डीजीसीए अधिकारी ने गुस्से में कहा—”आप लोगों ने इन्हें बेइज्जत किया, बिना आईडी देखे टिकट फाड़ दी।” काउंटर पर खड़ी लड़की के हाथ से टिकट का फटा टुकड़ा गिर गया। विमला जी ने पहली बार कुछ कहा, आवाज में गुस्सा नहीं, सिर्फ पीड़ा थी—”मैं चिल्लाई नहीं क्योंकि मैंने जिंदगी में बहुत कुछ देखा है। लेकिन आज देखा इंसानियत कितनी खोखली हो चुकी है। तुमने मेरी टिकट नहीं फाड़ी, तुमने उस मूल्य को फाड़ा है जो सम्मान कहलाता है।” भीड़ में सन्नाटा था। कुछ लोग मोबाइल से वीडियो बनाने लगे। एयरलाइन की सीनियर मैनेजमेंट सामने आई—”मैम, हम शर्मिंदा हैं, पूरी टीम से माफी मांगते हैं।” विमला जी ने मुस्कुरा कर कहा, “माफी उनसे मांगो जो आगे भी ऐसे पहनावे देखकर लोगों को परखते रहेंगे। मेरे जाने के बाद भी किसी और को यह अपमान सहना ना पड़े।” फैसला तुरंत हुआ—जिन दो कर्मचारियों ने टिकट फाड़ी थी, उन्हें निलंबित कर दिया गया। एयरपोर्ट पर सभी कर्मचारियों को एल्डर डिग्निटी एंड डिस्क्रिमिनेशन पर अनिवार्य ट्रेनिंग करवाने का आदेश दिया गया। डीजीसीए द्वारा उस एयरलाइन को एक सप्ताह की चेतावनी दी गई—यदि किसी और वरिष्ठ नागरिक के साथ ऐसी घटना दोहराई गई, लाइसेंस सस्पेंशन की कार्यवाही शुरू की जाएगी। विमला जी का चेहरा अब शांत था। उन्होंने किसी को नीचा नहीं दिखाया, कोई चिल्लाहट नहीं, कोई बदला नहीं। बस शालीनता से सबको आईना दिखा दिया। वह गेट की ओर बढ़ीं। इस बार उन्हें कोई नहीं रोक रहा था। एक कर्मचारी उनके पास दौड़ता हुआ आया—”मैम, कृपया बैठ जाइए, हम आपके लिए विशेष लाउंज तैयार करवा रहे हैं।” विमला जी ने कहा, “नहीं बेटा, मुझे भीड़ में बैठना अच्छा लगता है। वहां इंसानियत के असली चेहरे दिखते हैं।” अब विमला देवी एयरपोर्ट के उसी वेटिंग ज़ोन में एक कोने में बैठ गईं। सबकी नजरें उन पर थीं, पर नजरिया बदल चुका था। कुछ लोग मोबाइल में उनका नाम सर्च कर रहे थे, कुछ पूछ रहे थे—यह हैं कौन? और जो सर्च कर पा रहे थे, उनके चेहरे पर चौंकाहट साफ थी। विमला देवी कोई सामान्य बुजुर्ग नहीं थीं—देश के सबसे पहले डीजीसीए रिफॉर्म पॉलिसी बोर्ड की अध्यक्ष रहीं। उनकी अगुवाई में भारत ने पहली बार एल्डरली फ्रेंडली एवीएशन पॉलिसी लागू की। कई अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन प्रोजेक्ट्स की मुख्य सलाहकार रहीं। पद्म भूषण से सम्मानित, पर कभी उसका ढिंढोरा नहीं पीटा। उनकी पहचान वीआईपी पास से नहीं, उनकी सादगी और सोच से बनी थी। एक पत्रकार ने धीरे से उनके पास जाकर पूछा—”मैम, आप इतने चुप क्यों रही जब आपको धक्का दिया गया?” विमला जी मुस्कुराते हुए बोलीं, “कभी इसी एयरपोर्ट पर मैंने वर्दी पहनकर आदेश दिए थे। आज उसी एयरपोर्ट पर आम आदमी बनकर अपमान झेल रही थी। मैं जानना चाहती थी—क्या हमारे बनाए कानून सिर्फ फाइलों में हैं या दिलों में भी?” उनकी वापसी का मकसद क्या था? वह एयरलाइन उनकी पुरानी पेंशन फंड कंपनी में इन्वेस्टर थी। आज वह सिर्फ यह देखने आई थीं—क्या इस देश में अब भी बुजुर्गों को इज्जत मिलती है? उनके अनुभव ने सिखाया—किसी सिस्टम की ताकत उसकी तकनीक में नहीं, उसकी संवेदनशीलता में होती है। जो दिखता है वही सच नहीं होता। काउंटर स्टाफ जो पहले मजाक कर रहे थे, अब आंखें नीची किए खड़े थे। विमला जी ने उनमें से एक युवा कर्मचारी को पास बुलाया। लड़का कांप रहा था। “बेटा, तुमने मेरी टिकट फाड़ी थी। अब जिंदगी में किसी का सम्मान मत फाड़ना। यह कुर्सियां बदल जाएंगी। लेकिन तुम्हारी सोच वही तुम्हें आदमी बनाती है या सिर्फ एक मशीन।” अब लाउंज में बैठा हर यात्री आज कुछ सीख कर जा रहा था। किसी ने लिखा ट्विटर पर—”आज देखा असली ताकत वो है जो चुप रहती है और जरूरत पड़ने पर सिर्फ एक कॉल से पूरा सिस्टम हिला देती है।” एक बुजुर्ग महिला ने मुस्कुराकर कहा—”वह इंसान अकेले नहीं थी, उनके साथ पूरा अनुभव खड़ा था।” फ्लाइट बोर्डिंग शुरू हो चुकी थी। घोषणा हो रही थी—”विस्तारा फ्लाइट 304 बेंगलुरु के लिए अब बोर्डिंग गेट 5B से शुरू हो रही है।” लेकिन आज कोई भी यात्री उतनी जल्दी में नहीं था जितना अक्सर होता है। सबकी नजरें अब भी उस बुजुर्ग पर टिकी थीं, जिसने एक टूटे टिकट से पूरा सिस्टम हिला दिया। विमला जी ने धीरे से उठकर अपना पुराना बैग उठाया, जिसमें इतिहास का भार था। वह चलते हुए गेट की ओर बढ़ीं। रास्ते में वही मैनेजर जिसने उन्हें अपमानित किया था, उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ा था—”मैम, प्लीज एक बार माफ कर दीजिए।” विमला जी रुकीं, उसकी आंखों में देखा और बोलीं, “माफ कर दूंगी, लेकिन शर्त पर—हर उस यात्री से माफी मांगो जो तुम्हारे शब्दों से टूटे हैं, और हर उस बुजुर्ग को नम्रता से देखो जो तुम्हारे सिस्टम की बेंचों पर बैठते हैं।” गेट पर पहुंचते ही एयरलाइन की सीनियर टीम उनका इंतजार कर रही थी। फूलों का गुलदस्ता, वीआईपी चेयर सब रखा गया था। लेकिन उन्होंने मुस्कुराकर मना कर दिया—”मैं वीआईपी नहीं, एक रिमाइंडर हूं कि बुजुर्ग कोई बोझ नहीं बल्कि नीम है इस समाज की।” नीचे एयरपोर्ट पर कर्मचारी अब भी उस फटे हुए टिकट को देख रहे थे। उनमें से एक ने धीरे से कहा—”हमने उनकी टिकट नहीं फाड़ी, हमने अपनी सोच का पर्दा उतार दिया। इंसान की पहचान उसके कपड़ों से नहीं, बल्कि उस जख्म से होती है जो वह चुपचाप सहता है और फिर भी मुस्कुरा कर माफ कर देता है। जिसे तुमने मामूली समझा वही तुम्हारी आखिरी उम्मीद हो सकता है। इज्जत सिर्फ ऊंचे पद के लिए नहीं, इंसानियत के लिए होनी चाहिए।” ******
- जनता को मूर्ख बनाते हैं
रमेश चंद शर्मा सावधान जनता समझ रही है स्वदेशी के गीत गाते थे, स्वदेशी नाम से ललचाते थे, स्वदेशी आन्दोलन चलाते थे, सड़कों पर नजर आते थे, अफवाह, झूठ खूब फैलाते हैं, अब क्या कर रहे हो भाई।। बिना बुलाए आते थे, झूठा संवाद चलाते थे, झूठी कसमें खाते थे, नारे खूब लगाते थे, सत्ता के लिए छटपटाते थे, सत्ता कैसे भी पाते है।। जनता को मूर्ख बनाते है, ढोंग खूब रचाते है, वादे नहीं निभाते है, जुमले उन्हें बताते है, अपने को भगत कहलाते हैं, अब चेहरा सामने आया है।। सत्ता जब से हाथ आई, स्वदेशी की खत्म लडाई, भूले कसमें थी जो खाई, औढली अब नई रजाई, रंगीन सियार की कहानी याद आई, अब सत्ता का मजा उड़ाते हैं।। जान गए सब भाई बहना, पहनें बैठे सत्ता का गहना, मौज मस्ती में सीखा जीना, अब स्वदेशी की बात नहीं कहना, जनता को है अब दुःख सहना, इनके हाथ लगी मोटी मलाई है।। ढूढ़ लिया अब नया काम, पडौसी का काम तमाम, छात्रों पर बंदूकें तान, अर्बन नक्सली बदनाम, हाथ लगा दंड भेद साम दाम, नफरत, हिंसा फैलाते हैं।। हाथ लगे अब नए भेद, काट रहे आम जनता के खेत, गंगा मैया की बेच रहे रेत, सन्यासियों के दिए गले रेत, काम एक नहीं करते नेक, भ्रम भयंकर फैलाते हैं।। अपने ही लोगों को बांटे, दुनिया के करें सैर सपाटे, मजदूर किसान का गला काटे, जनता खाए मुंह पर चांटे, धनपतियों के पैर चाटे, अपने भर रहे गोदाम।। खत्म हो गई क्या मंहगाई, रुपए की क्या दशा बनाई, जीएसटी नोटबंदी एफडीआई, जेबें भर कर करी कमाई, लोग कह रहे राम दुहाई, इनको जरा नहीं शर्म आई, ऐसा राम राज्य लाये हैं।। एक योगी बन गया लाला, एक बने प्रदेश के आला, गौ माता ढूढे ग्वाला, मांस निर्यात में बना देश आला, दबके कर रहे धंधा काला, खूब डकारी काली कमाई है।। भय भेद भूख नफरत बढ़ाई, भूल गए अपनी लडाई, अमेरिका से सवारी बुलाई, कोरोना की बारी आई, दूसरों के सिर मंढी बुराई, शिक्षा ऐसी पाई है।। आँखों में पड़ गए जाले, जनता के मुंह में छाले, दुश्मन हमने कैसे पाले, जीने के पड़ गए लाले, इनसे देश संभले ना संभाले, घोप दिए छाती में भाले, सत्यानाश किया भारी है।। कम्पनी बेचीं, कारखाने बेचे, रेल बेचीं प्लेटफार्म बेचे, कोयले की खान बेची, अपनी शान आन बेची, फायदे वाली दुकान बेची, अब आगे किसकी बारी, अक्ल गई इनकी मारी, बचने की खुद करो तैयारीI *****
- सिर्फ तेरे लिए
काजल शर्मा वो चूड़ियाँ जो सिर्फ़ तेरे लिए पहनी थी! कहाँ शौक था मुझे, सजने-सवरने का। नैनो में काला काजल, तो माथे पे बिंदिया लगाने का। तुझे देख पलकें झुकाने, और मुस्कुराने शर्माने का। कहाँ शौक था मुझे, खुद को एक युवती बनाने का। हाथों में चूड़ी, पैरों में पायल छनकाने का। केशों को खुला छोड़, ज़ुल्फों को पीछे हटाने का। कहाँ शौक था मुझे, खुद में शार्मो हया लाने का। हाँ! ये चूड़ियाँ सिर्फ़ तेरे लिए पहनी थी, अंदाज़ था मेरा तुझे इशारों में बुलाने का। दुपट्टे को सलीके से ओढ़, इस दफा सूट में नज़र आने का। कहाँ शौक था मुझे, तेरी चाहत में इतना बदल जाने का। चूड़ियाँ जो सिर्फ़ तेरे लिए पहनी थी! सिर्फ तेरे लिए! *******
- सौदा
अंजलि शर्मा इस बड़े शहर में एक छोटा सा कॉस्मेटिक शॉप है मेरा। पति ने खोला था मेरे नाम पर। झुमकी श्रृंगार स्टोर। आज एक नया जोड़ा आया है मेरे दुकान पर। स्टाफ ने बताया कि सुबह से दूसरी बार आये हैं। एक कंगन इन्हें पसंद है पर इनके हिसाब से दाम ज्यादा है। इन्हें देख इस दुकान की नींव, मेरा वजूद, और अपनी कहानी याद आ गई। ऐसे ही शादी के बाद पहली बार हम एक मेले में साथ गए थे। मुझे काँच की चूड़ियों का एक सेट पसंद आया था। तब आठ रुपये की थी और हम ले ना पाए थे। ये बार बार पाँच रुपये की बात करते मगर उसने देने से मना कर दिया। उन्हें मुझे वो चूड़ी ना दिलाने का अफसोस ज़िंदगी भर रहा था। क्यूंकि उस दिन मैं पहली बार उनके साथ मेले में गई थी और कुछ पसंद किया था। उसदिन इनके जेहन में इस दुकान की नींव पड़ गई थी। इतना प्रेम करते थे मुझसे कि फिर कभी कुछ माँगना ही ना पड़ा। मेरी खुशियों के लिए रातदिन एक कर दिया। ये सब याद कर मेरी गीली आँखे इनके फूल चढ़े तसवीर की तरफ गई जिसके शीशे में ये जोड़ी नज़र आ रही थी। "सर! सुबह ही कहा था कि हजार से कम नहीं होगा" "चलिये ना, कोई बात नहीं! फिर कभी ले लेंगे" दोनों सीधे साधे गाँव के लग रहे थे बिलकुल जैसे हम थे। लड़की मेरी ही तरह स्थिति समझ रही है और लड़के में इनके जैसा उसे दिला देने की ललक और ज़िद्द। इस प्यार को मैं महसूस कर रही थी "एक बार और देख लीजिए ना अगर सात सौ तक भी..!" "एक ही बात कितनी बार बोलूं सर, नहीं हो सकता" जैसे मैं इनका हाथ लिए मेले के उस दुकान से वापस जा रही थी और ये मायूस हो कदम वापस ले रहे थे..ये जोड़ा भी दुकान से बढ़ने ही वाले थे "रुकिए आपलोग! कौन सा कंगन पसंद है" "ये गोल्डेन और रेड वाला मैम" स्टाफ ने कहा "इस पर तो कल ही फिफ्टी परसेंट डिस्काउंट लगाने बोला था तुमको।" "कब बोला था मैम"? "अच्छा! लगता है मैं भूल गई थी..जी ये अब पाँच सौ का ही है, आप ले जाइए" लड़के की खुशी देख मुझे महसूस हो रहा था कि उसदिन ये भी ऐसे ही खुश होते। स्टाफ मुझे ऐसे देख रहा था जैसे आज पहली बार मैंने घाटे का सौदा किया हो। पर उसे क्या पता खुशियों का सौदा नहीं होता..... ******
- समय-प्रबंधन
डॉo कृष्ण कांत श्रीवास्तव इस संसार में मौसम आते हैं और जाते हैं, मनुष्य आते हैं और जाते हैं, समाज बनता है और बिगड़ता है, पर समय बिना रुके सदा चलता रहता है। समय को कोई पकड़ नहीं सकता। हम जितना उसके पीछे दौड़ते हैं वह उतना ही आगे भाग जाता है। यह बहुत बड़ी विडंबना है कि हम समय का महत्व जानते हुए भी उसे व्यर्थ के कार्यों में जाया करते रहते हैं। समय-प्रबंधन की असमर्थता ही इसका मूल कारण है। हम यह भूल जाते हैं कि जीवन-प्रबंधन के लिए, व्यक्तित्व निर्माण के लिए और कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए समय का प्रबंधन अति आवश्यक है। इसके अभाव में हमारे जीवन पर अस्त-व्यस्तता हावी हो जाती है। अच्छा समय प्रबंधन हमारे जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। जीवन में कुछ भी करने के लिए समय की आवश्यकता होती है। आप कितने भी कुशल, महान, समृद्ध या प्रसिद्ध व्यक्ति क्यों ना हो परंतु समय का कोष सभी के लिए सीमित रहता है। आपको अपने जीवन में जो कुछ भी करना है, जितनी भी समृद्धि प्राप्त करनी है, या जितना भी नाम कमाना है, सब दिन के इन्हीं 24 घंटों के भीतर करना है। इतने समय में ही आपको सभी आवश्यक, अप्रत्याशित, व्यक्तिगत, व्यावसायिक, पारिवारिक, सामाजिक, मनोरंजक, स्वास्थ्यवर्धक आदि कार्य अपने आवश्यकतानुसार पूरे करने होते हैं। हम अपने समय पर शत-प्रतिशत नियंत्रण तो नहीं कर सकते, परंतु प्रभावी रूप से समय का सदुपयोग करने की आदत डालकर अपनी कार्य-क्षमता को और अधिक विकसित कर सकते हैं। इसलिए समय का बेहतर प्रबंधन अति आवश्यक है। जो मनुष्य अपने समय को बेहतर तरीके से व्यवस्थित कर लेते हैं, वहीं जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकते हैं। समय, सभी के लिए निःशुल्क होता है, न कोई कभी इसे बेच सकता है, न खरीद सकता है। समय अबंधनीय है, अर्थात् कोई भी इसकी सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। यह समय ही है, जो सभी को अपने चारों ओर नचाता है। अपने जीवन में कोई न तो इसे हरा सकता है, और न इससे जीत सकता है। समय को इस संसार में सबसे ताकतवर वस्तु कहा जाता है, जो किसी को भी नष्ट या सुधार सकता है। समय जीवन में अन्य सभी वस्तुओं से अधिक शक्तिशाली और अमूल्य होता है। हम धन को तो एकबार खो कर दुबारा प्राप्त कर सकते हैं परंतु समय को खो कर किसी भी साधन से दुबारा प्राप्त नहीं कर सकते। इसकी क्षमता को हम माप नहीं सकते, क्योंकि जीवन में कभी-कभी जीतने के लिए एक पल ही काफी होता है और कभी-कभी इसके लिए पूरा जीवन लग जाता है। कोई पल व्यक्ति को अमीर बना देता है और कोई गरीब। जीवन और मृत्यु के बीच भी केवल एक पल का ही फासला होता है। समय सर्वदा हमारे लिए स्वर्णावसर लाता है, बस आवश्यकता है, उसके संकेतों को समझ कर तदानुसार कार्य करने की। यदि आप समय की महत्ता को नहीं समझते तो निश्चित मानिए समय भी आपको अहमियत नहीं देगा। समय के साथ वस्तुएं जन्म लेती हैं, बढ़ती हैं, घटती हैं और नष्ट हो जाती हैं। लोग सोचते हैं कि जीवन कितना लम्बा है परंतु सत्य तो यह है कि जीवन क्षणिक है और जीवन में करने के लिए कार्य बहुत हैं। हमें अपने जीवन का हरेक पल उचित और अर्थपूर्ण ढंग से बिना नष्ट किए उपयोग करना चाहिए। जीवन में सफलता का पहला कदम उत्तम समय-प्रबंधन ही है। जिस व्यक्ति ने अपने समय का उचित प्रयोग करना सीख लिया, सच मानिये उसने अपनी कामयाबी का पहला अध्याय लिख लिया। जो अपने समय की व्यवस्था ठीक से नहीं कर सकता, वह हर क्षेत्र में विफल हो जाता है। कुशल समय-प्रबंधन आपकी उत्पादकता बढ़ाता है, काम की गुणवत्ता सुधारता है और तनाव कम करने में भी मदद करता है। अपने निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बनाई गई, समय की सुनियोजित योजना, समय-प्रबंधन कहलाती है। यह आपको अपनी हर गतिविधि को एक निश्चित समय में पूरा करने की कला सिखाती है। समाज के सभी क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों के लिए समय-प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। आप ग्रहणी हैं और आप अपनी रुचि अनुरूप कार्यों में समय व्यतीत करना चाहती हैं, आप छात्र हैं और उच्च शिक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, आप व्यापारी हैं और व्यापार को देश-विदेश तक फैलाना चाहते हैं, आप वैज्ञानिक हैं और बड़े-बड़े अनुसंधान करना चाहते हैं, आप खिलाड़ी हैं और खेल में उच्च पदक प्राप्त करना चाहते हैं अर्थात आप किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हों, समय-प्रबंधन आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अच्छे समय-प्रबंधन के लिए आपको अपनी कार्य-विधि में अमूल-चूक परिवर्तन करना चाहिए। आपको अपनी हर गतिविधि का उद्देश्य केवल लक्ष्य प्राप्ति ही निर्धारित करना चाहिए। व्यस्त रहने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप लक्ष्य को प्राप्त ही कर लेगें। अक्सर लक्ष्य से चूकने वाले ये दुहाई देते हैं, कि हमने कोशिश की पर क्या करे समय कम था। यदि आप वैज्ञानिक विधि अनुसार कार्य नहीं करते हैं तो समय कितना भी हो वह हमेशा कम ही पड़ेगा। अतः आप समय-प्रबंधन की तकनीकों का उपयोग करके, अपने कार्य को और अधिक प्रभावी ढंग से पूर्ण करने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं। जीवन का प्रत्येक क्षण, ईश्वर का दिया हुआ अनमोल तोहफा है। इसे पहचानकर और समय के साथ अनुशासित हो कर चलना प्रारंभ करें। बीता समय, खर्च किए गए धन के समान कभी वापस नही आता। भविष्य का समय अपने नियंत्रण में नहीं होता, वह तो ईश्वर द्वारा ही निर्धारित किया जाता है। केवल वर्तमान समय ही हमारे पास कार्य करने हेतु उपलब्ध है। अतः हमारे लिए हितकर होगा कि हम समय का अधिकतम सदुपयोग करके लाभ उठाएँ और व्यर्थ के कार्यों में इसे नष्ट ना करें। समय-प्रबंधन के लिए सबसे पहले यह विचार कीजिए कि हमारा समय व्यर्थ किन कार्यों में हो जाता है। हम पाएंगे कि नियोजन की कमी, दूसरों को कार्य न सौंप पाने की इच्छा शक्ति की कमी, ईर्ष्या, घृणा, क्रोध, जैसी कई निजी समस्याएं और अन्य तरह-तरह की बाधाएं, हमारा बहुत-सा समय बरबाद कर देती हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ समय पूर्वाग्रहों, निर्भरताओं, लगाव-झुकाव, अति ममत्व, चिंता और तनाव के हवाले भी हो जाता है। इन से बचने के लिए और बेहतरीन समय-प्रबंधन के लिए नीचे दिए गए कुछ सुझावों पर अमल करने का प्रयास कीजिए। संभव है, आप इन प्रयासों का सफलतापूर्वक अभ्यास कर अपने समय का बेहतरीन उपयोग कर सकने में समर्थ हो सकें। आप रात्रि में सोने से पूर्व, अगले दिन के कार्यों की रूपरेखा अवश्य तैयार कर लें। इसका परिणाम यह होगा कि आप अगले दिन किये जाने वाले संपूर्ण कार्यों से पूर्व परिचित होंगे और दिन का प्रत्येक पल आपकी योजना अनुरूप ही व्यतीत होगा। प्रत्येक कार्य को उसकी उपयोगिता के अनुसार निश्चित समय सीमा के भीतर पूर्ण कर लेने की योजना निर्धारित करें। एक कार्य के लिए निर्धारित समय को दूसरे कार्य के लिए उपयोग ना करें। यह जान लें कि आप किसी भी दशा में अपनी क्षमता से अधिक कार्य नहीं कर सकते और आपको ऐसा करना भी नहीं चाहिए। इससे आपकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यदि बीच में कोई अतिरिक्त कार्य आ जाता है, जिससे आपका चल रहा काम बाधित हो रहा हो तो उसे करने से मना करें या उसके लिए कोई अन्य उपयुक्त समय आवंटित करें। कार्य पूर्ण करने की समय सीमा को वास्तविकता के आधार पर निर्धारित करें। कार्य को जल्द समाप्त कर देने के उद्देश्य से कम समय में पूर्ण करने का प्रयास ना करें। इससे ना केवल कार्य की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ेगा बल्कि आप पर भी कम समय में अधिक कार्य करने का अतिरिक्त बोझ आ पड़ेगा। समय प्रबंधन का मूलभूत सूत्र यह है कि आप भूलकर भी आज का कार्य कल पर न टालें। कबीर दास जी ने कहा भी है कि :- काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।। अर्थात जो आज का कार्य है, उसे आज ही समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि अगले पल का कोई भरोसा नहीं है। अगर हम आज का काम कल पर टालते जायेंगे तो कल के लिए बहुत सारा काम एकत्रित हो जायेगा। तब इसे समय पर पूर्ण करना असंभव होगा। कार्य क्षेत्र में, घड़ी अवश्य अपने साथ रखें। ख्याल रखें कि आपको अपना कार्य समय-सारणी अनुसार ही पूरा करना है। गांधीजी भी अपने पास एक घड़ी हमेशा रखते थे और इसी के अनुसार अपना प्रत्येक कार्य निर्धारित समय पर पूर्ण करते थे। अतः अच्छे समय प्रबंधक के पास घड़ी का रहना अत्यंत आवश्यक है। एक समय पर सिर्फ एक कार्य पर ही अपना ध्यान केंद्रित कीजिए। एक साथ कई कार्य प्रारंभ कर देने पर कभी-कभी कोई भी कार्य समय पर पूर्ण नहीं होता, साथ ही कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। कार्य के वक्त समय बर्बाद करने वाले कार्यों जैसे: व्हाट्सएप पर मैसेज करना, फेसबुक पर पोस्ट करना, ट्विटर पर ट्वीट करना इत्यादि से बचने का प्रयास करना चाहिए। इन सभी कार्यों के लिए अलग से कोई एक समय निर्धारित कर लीजिए। क्योंकि इन कार्यों में उलझ कर आप दिग्भ्रमित हो जाएंगे और अपने लक्ष्य को निश्चित समय पर प्राप्त नहीं कर पाएंगे। कुशलतापूर्वक समय प्रबंधन किसी व्यक्ति के महान गुणों को प्रदर्शित करती है। ऐसे व्यक्ति सीमित समय में कामयाबी की ऊंचाइयों को छू लेते हैं। समय-प्रबंधन वह आवश्यक अस्त्र है, जिस के प्रयोग से आप चंद दिनों में ही कामयाबी की मंजिल प्राप्त कर लेते हैं। अगर आप अपने समय के सही उपयोग की कला सीख जाते हैं तो आप अपने व्यावसायिक जीवन के साथ-साथ निजी रिश्तों को भी बेहतर कर सकते हैं। यदि कोई कार्य अति महत्वपूर्ण नहीं है और उसे कोई अन्य व्यक्ति कर सकने में समर्थ है, तो ऐसे कार्यों को अन्य व्यक्ति को करने देना चाहिए। इससे आपको महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए अतिरिक्त समय उपलब्ध हो जाएगा। हमें दूसरों की गलतियों से सीखने के साथ ही दूसरों की सफलता से प्रेरणा भी लेनी चाहिए। जब आप समय प्रबंधन में दक्ष हो जाते हैं तब आपके कार्य करने की क्षमता और गुणवत्ता में निखार आ जाता है। आप कार्य करने की सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन से नकारात्मक दृष्टिकोण लगभग समाप्त हो जाता है और वह आदर्श व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति बनकर समाज को उचित राह प्रदर्शित करने की शक्ति उत्पन्न कर लेता है। जैसा कि सर्व विदित है, सकारात्मक सोच का व्यक्ति अपनी जैसी सकारात्मक विचारों की विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्सर्जन कर अपने चारों ओर सकारात्मकता का एक आभा मंडल तैयार कर लेता है, जिसके संपर्क में आकर आम आदमी भी अपने व्यक्तित्व में अभूतपूर्व परिवर्तन महसूस करने लगता है। अतः आपके द्वारा अपनाए जाने वाले समय प्रबंधन के सूत्र से ना केवल आपके व्यक्तित्व का विकास होता है, अपितु आपके माध्यम से समाज का एक बड़ा वर्ग भी इस सूत्रों से जुड़ जाता है। अंत में परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना है कि वह हमें उचित प्रतिबद्धता, समयनिष्ठता, लगन और समय के सकारात्मक उपयोग की क्षमता के साथ अपने कार्यों को समय पर पूर्ण कर लेने की शक्ति प्रदान करें, जिससे हम अपने जीवन में उन्नति, विकास और समृद्धि की मंज़िले खड़ी कर सकें। *******
- समझदार व्यापारी
हरिशंकर परसाई हीरालाल मशालो का एक व्यापारी था, जो शहर-शहर जाकर मशाले बेचा करता था। एक दिन उसकी तबीयब बहुत खराब हो गयी जिस कारण वह मशाले बेचने नहीं जा पाता है। उसका बेटा जब खेल कर आता है तो देखता है कि उसका पिता बिस्तर पर लेता हुआ है। यह देख कर अपने पिता से पूछता है। क्या, हुआ पिताजी जो आज आप शहर नहीं गए? उस पर पिता कहता है,"आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है जिस बजह से मशाले बेचने शहर नहीं गया हूँ। उसका बेटा भोला बोलता है तो आज मै शहर मशाले बेचने चला जाता है। यह सुन कर उसके पिता कहते है,"तुम अभी बहुत छोटे हो और दुकानदार तुम्हे मूर्ख बना कर सस्ते में माल खरीद लेगा। इस पर उसका बेटा भोला बोलता है,"पिताजी सिर्फ मेरा नाम ही भोला बाकि मै बहुत चालक हूँ " यह बोल कर अपने पिता से शहर जाने की जिद्द करने लगता है फिर उसके पिता उसकी माँ को उसे समझाने के लिए कहता है लेकिन वह अपनी माँ की भी बात नहीं मानता है। अंत में दोनो उसे शहर भेजने के लिए तैयार हो जाते है। शहर भेजने से पहले उसके पिता कहते है,"अगर तुम ये तीन बात मानोगे तो ही तुम्हें शहर जाने दुगा",उस पर उसका बेटा कहता है ठीक है पिताजी। मै आप की सारी बाते मानने के लिए तैयार हूं। पहली बात तुम्हारी माँ तुम्हें कुछ रोटियां देगी,जब तुम्हें भूख लगे तो खाना लेकिन खाने से पहले एक खाऊ, दो खाऊ, तीन खाऊ या चार खाऊ । ये शब्द जरूर बोलना होगा । दूसरी बात जब भी कमरा लेना तो कुंडी वाला लेना, अगर कुंडी वाला ना हो तो लेने से मना कर देना। बेटा कहता है ठीक है पिताजी जैसी आप बोले है,वैसे ही करेंगे। तीसरी बात जब भाव सही ना दे तो कहना पिताजी से पूछ कर आता हूं। उसका बेटा उसकी सारी बात मानने के लिए तैयार हो जाता है। जब वह शहर पहुँचता है तो चार चोर उसे देख कर कहते है, इसके पोटली में जरूर कोई कीमती चीज है। सुनसान जगह देख कर उसकी पोटली छीन लेगे,चारो चोर बात कर रहे थे। उसे भूख लगती है तो वह एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है और खाना निकलता है। जैसा कि उसकी पिता ने बताया था वो बोलने लगता है एक खाऊ, दो खाऊ, तीन खाऊ या चार खाऊ। यह बात सुन चारों चोर भाग जाते है और एक जगह रुक कर कहते है वो तो भूत था। अगर वह हम सब को देख लेता तो चारों को खा जाता। खाना खाने के बाद, वह एक सराय जाता है, जहाँ वह पूछता है कोई कमरा मिलेगा तो सराय का मालिक कहता है मिल जाएगा लेकिन जब वह पूछता है उस मे कुड़ी तो है ना। इस पर सराय का मालिक समझ जाता है कि इसे पता है कि यहाँ सामान चोरी होता है। फिर सराय का मालिक उसे वहाँ से भगा देता है। अब वह मशाले बेचने जाता है तो दुकानदार कहता है, "तुम जो कीमत बोल रहे हो उस से आधी कीमत दुगा, इस पर भोला बोलता है। मै अपने पिताजी से पूछ कर आता हूं, इस पर व्यापारी मन में कहता है, "लगता है इसका पिता भी साथ आया और कही किसी और को माल ना बेच दे" यह सोच कर व्यापारी उसका माल ख़रीद लेता है। निष्कर्ष - हमारे बड़े अगर कोई बात बोले तो उसे ध्यान से सुनना और समझना चाहिए क्योंकि वे बिना वजय कोई बात हमें नहीं बोलते है। ******
- महान् गणितज्ञ रामानुजन : धुन के पक्के
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव रामानुजन का जन्म एक गरीब परिवार में 22 दिसम्बर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड़ कस्बे में हुआ था। उनके पिता एक साड़ी की दुकान पर क्लर्क का काम करते थे। रामानुजन के जीवन पर उनकी माँ का बहुत प्रभाव था। जब वे 11 वर्ष के थे, तो उन्होंने गणित की किताब की पूरी मास्टरी कर ली थी। गणित का ज्ञान तो जैसे उन्हें ईश्वर के यहाँ से ही मिला था। 14 वर्ष की उम्र में उन्हें मेरिट सर्टीफिकेट्स एवं कई अवार्ड मिले। वर्ष 1904 में जब उन्होंने टाउन हाईस्कूल से स्नातक पास की, तो उन्हें के. रंगनाथा राव पुरस्कार, प्रधानाध्यापक कृष्ण स्वामी अय्यर द्वारा प्रदान किया गया। वर्ष 1909 में उनकी शादी हुई, उसके बाद वर्ष 1910 में उनका एक ऑपरेशन हुआ। घरवालों के पास उनके ऑपरेशन हेतु पर्याप्त राशि नहीं थी। एक डॉक्टर ने उनका मुफ्त में यह ऑपरेशन किया था। इस ऑपरेशन के बाद रामानुजन नौकरी की तलाश में जुट गए। वे मद्रास में जगह-जगह नौकरी के लिए घूमे। इसके लिए उन्होंने ट्यूशन भी किए। वे पुनः बीमार पड़ गए। इसी बीच वे गणित में अपना कार्य करते रहे। ठीक होने के बाद, उनका सम्पर्क नेलौर के जिला कलेक्टर-रामचन्दर राव से हुआ। वह रामानुजन के गणित में कार्य से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने रामानुजन की आर्थिक मदद भी की। वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास में चीफ अकाउण्टेंट के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य जल्दी पूरा करने के बाद, गणित का रिसर्च करते रहते, इसके बाद वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उनके कार्य को खूब प्रशंसा मिली। उनके गणित के अनूठे ज्ञान को खूब सराहना मिली। वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (Fellow of Trinity College Cambridge) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिन्हें इस सम्मान के लिए चुना गया। बहुत मेहनती एवं धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी ‘धुन’ से नहीं डिगा सकीं। वे अन्ततः सफल हुए। आज उन्हें विश्व के महान् गणितज्ञों में शुमार किया जाता है। 32 वर्ष की छोटी उम्र में ही इस प्रतिभाशाली व्यक्ति का देहावसान हो गया। दुनिया ने एक महान गणितज्ञ को खो दिया। *******
- चौथा मित्र
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन पढ़े-लिखे व विद्वान थे परंतु चौथा इतना विद्वान नहीं था, पर हर बात की सामान्य जानकारी रखता था। वह काफी व्यावहारिक था और अपने अच्छे-बुरे की समझ रखता था। एक दिन तीनों मित्रों ने तय किया कि उन्हें अपने ज्ञान के बल पर धन कमाना चाहिए। वे अपनी किस्मत आजमाने के लिए दूसरे देश के लिए चल पड़े। वे चौथे दोस्त को साथ नहीं ले जाना चाहते थे क्योंकि वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन बचपन का दोस्त होने के नाते उसे भी साथ ले लिया। चारों ने यात्रा आरंभ की। रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। एक जगह पेड़ के नीचे हड्डियों का ढेर दिखाई दिया। एक मित्र बोला- विज्ञान की जानकारी को परखने का अच्छा अवसर है। ये तो किसी मरे हुए जानवर की हड्डियाँ लगती हैं चलो इसे फिर से जिंदा करने की कोशिश करते हैं। पहले मित्र ने कहा-‘मुझे हड्डियाँ जोड़ कर ढाँचा बनाना आता है। उसने कुछ मंत्र पढ़े और हड्डियों का कंकाल बन गया। दूसरे मित्र ने कुछ मंत्र पढ़े तो कंकाल पर खाल आ गई और शरीर में खून दौड़ने लगा। अब वह एक निर्जीव शेर दिखता था। अपनी उपलब्धि पर प्रसन्न होते हुए तीसरा मित्र बोला कि वह उस बेजान शरीर में प्राण डाल देगा। चौथा मित्र चिल्लाया रुको! ये तो शेर लगता है। जिंदा होते ही हम सबको मार कर खा जाएगा। तीनों मित्रों ने चौथे मित्र की बात पर ध्यान नहीं दिया और उसको मुर्ख बताकर उस शेर को जिंदा करने लगे। तब चौथा मित्र बोला- बस एक क्षण रुकना- कह कर वह पास के ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया। अपने मित्र की बात अनसुनी कर तीसरे मित्र ने ज्यों ही मंत्र पढ़े शेर के प्राण लौट आए। वह भयंकर शेर उन्हें देख कर दहाड़ने लगा। उसने पल भर में झपट्टा मारा और सभी मित्रों को मार दिया। जब शेर चला गया तो चौथा मित्र पेड़ से उतरा। उसे अपने मृत मित्रों को देख बहुत अफसोस हुआ। उदास व दुखी मन से वहअकेला घर लौट गया। दोस्तों व्यक्ति के भीतर विशेष योग्यता के साथ साथ कुछ सामान्य जानकारीयों का होना भी आवश्यक है। *******
- एक राजा की कहानी
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव ये कहानी है एक राजा की जो कि एक लंबी यात्रा के लिए निकल ने वाला था। तो सारे प्रजा के लोग राजा को नाव तक छोड़ने के लिए आते है। उन लोगों में से एक आदमी राजा के पास आकर कहता है कि महाराज जब आप जंगल से होते हुए जाएंगे तो आपको वहाँ एक छोटे कद का आदमी मिलेगा और वह आपको लड़ने के लिए चुनौती देगा। उस आदमी को आप जान से मारे बिना आगे मत बढ़ना। अब राजा उस आदमी की बात मानकर यात्रा पर निकल पड़ता है। जब दो दिनों के बाद राजा जब जंगल पहुंचता है तब राजा को एक छोटी कद वाला आदमी मिलता है। उस आदमी ने राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी पर राजा तो महान था, उसने उस छोटे कद वाले आदमी के साथ लड़ाई शुरू कर दी। थोड़ी देर में लड़ाई खत्म हुई और राजा जीत गया। लेकिन जब उस आदमी को जान से मारने की बारी आयी तब राजा ने कहा इस छोटे कद के आदमी को मारने में कैसी महानता है। राजा उस दो फुट के आदमी को जिंदा छोड़कर अब आगे बढ़ गया। अब दो दिन बीत गए और वह आदमी फिर राजा के सामने आया। पर अब उस आदमी का कद कुछ बढ़ चुका था। उसने फिर से राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी और राजा ने वह स्वीकार की और लड़ाई शुरू हुई। जब लड़ाई ख़त्म हुई तब राजा फिर जीत गया। लेकिन इस बार भी राजा ने उस आदमी को यह कहकर छोड़ दिया कि इस आदमी को मारने में कैसी महानता है। दो दिनों बाद वापस वह आदमी राजा के सामने आया। अब उस आदमी का कद राजा के राजा के कद के बराबर था। उसने फिर राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी। फिर लड़ाई में राजा जीत गया लेकिन इस बार भी राजा ने उसे मारा नहीं था। इसी तरह हर बार राजा उसे छोड़ता गया और एक दिन ऐसा आया कि उस आदमी का कद अब राजा से भी बढ़ गया। उसने फिर राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी। इस बार राजा थोड़ा डर गया लेकिन राजा महान था उसने चुनौती को स्वीकार किया। लड़ाई शुरू हुई और राजा इस बार बहुत जख्मी हुआ लेकिन राजा ने जैसे तैसे करके उस आदमी को हरा दिया पर इस बार राजा ने उस आदमी को ज़िंदा नहीं छोड़ा उसे जान से मार दिया। सीख:- आपके जिंदगी में कितनी भी छोटी परेशानी क्यों ना आये उसे ख़त्म किये बगैर आगे मत बढ़ाना क्योंकि कल वही छोटी परेशानी आगे बढाकर आपके सामने बहुत बड़ी होकर आएंगी। इन छोटी परेशानिओं को हल करने से आपको अनुभव मिलता है और जीवन में अगर आपके सामने कोई बड़ी परेशानी आये तो आप उसे आसानी से हल कर सकते है। *******











