रघु एक छोटे से गांव का मेहनती किसान था। उसके पास खेती के अलावा और कोई साधन नहीं था, लेकिन मेहनत के बल पर वह अपना और अपने परिवार का पेट पालता था। सब कुछ ठीक चल रहा था, जब तक कि गांव में एक नई शराब की दुकान नहीं खुली।
रघु के कुछ दोस्त शराब के बड़े शौकीन थे। हर शाम वे उसे भी साथ ले जाने लगे। पहले तो रघु ने मना किया, लेकिन उनके बार-बार बुलाने पर वह भी एक दिन चला गया। "बस एक बार, क्या बिगड़ेगा?" उसने सोचा।
पहली बार शराब पीने पर उसे अजीब-सा एहसास हुआ। दुनिया हल्की लगने लगी, दुख दूर से गायब हो गए। लेकिन उसे नहीं पता था कि यह शुरुआत थी। धीरे-धीरे उसकी आदत बन गई। जो पैसे वह अपने बच्चों की पढ़ाई और घर के खर्च के लिए बचाता था, वह अब शराब पर खर्च होने लगे।
घर में समस्याएं बढ़ने लगीं। उसकी पत्नी सुमन ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन रघु के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। एक दिन, खेत में काम करते हुए वह नशे में था और फसल खराब हो गई। गांववालों ने ताना मारा, लेकिन वह चुप रहा।
समस्या तब और गंभीर हो गई, जब उसके बच्चे भूखे सोने लगे। एक दिन, उसकी बेटी रूचि ने उससे कहा, "बाबा, हम सब भूखे हैं। क्या आपने शराब छोड़ने का वादा नहीं किया था?" उस मासूम चेहरों की बात सुनकर रघु का दिल पसीज गया।
उस रात उसने शराब की बोतल उठाई, लेकिन पीने के बजाय उसे तोड़ दिया। वह अपने परिवार की हालत को और खराब नहीं करना चाहता था। अगले दिन वह गांव के बुजुर्गों के पास गया और मदद मांगी। बुजुर्गों ने उसे सहारा दिया और समझाया कि कैसे संयम और आत्मनियंत्रण से वह अपनी जिंदगी बदल सकता है।
धीरे-धीरे रघु ने मेहनत से अपना जीवन फिर से पटरी पर लाया। उसने न केवल शराब छोड़ी, बल्कि गांव में शराबबंदी की मुहिम भी शुरू की। लोग उसकी मेहनत और हिम्मत को देखकर प्रेरित हुए।
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि नशा जीवन को बर्बाद कर सकता है, लेकिन इच्छाशक्ति से हर बुरी आदत को छोड़ा जा सकता है।
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