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अजनबी का इंतजार

सरोज शुभंकर

सर्दियों की ठंडी रात थी। हिमाचल के एक छोटे से गांव में बिजली गुल थी, और चारों ओर घुप अंधेरा पसरा हुआ था। रोहिणी अपने पुराने, वीरान बंगले में अकेली बैठी थी। यह बंगला उसके दादा का था, और गांव के लोग इसे "भूत बंगला" कहकर पुकारते थे।
उस रात बारिश भी हो रही थी, और हवा की तेज़ सरसराहट किसी अनहोनी का संकेत दे रही थी। रोहिणी को इस सब पर यकीन नहीं था। उसने सोचा, "ये सब बेकार की बातें हैं। अगर मैं यहां डर गई, तो अपना प्रोजेक्ट कभी पूरा नहीं कर पाऊंगी।"
रोहिणी लेखक थी और एक नई किताब के लिए किसी रहस्यमयी जगह की तलाश कर रही थी। इस बंगले से बेहतर जगह उसे नहीं लगी। लेकिन रात होते ही उसका मन विचलित होने लगा।
घड़ी ने रात के 12 बजाए। तभी, दरवाजे पर दस्तक हुई।
रोहिणी की धड़कन तेज हो गई। इस समय यहां कौन आ सकता है? गांव के लोग तो कहते थे कि कोई इस बंगले के पास भी नहीं आता। उसने धीरे-धीरे दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए।
"कौन है?" उसने कांपती आवाज़ में पूछा।
कोई जवाब नहीं आया।
फिर से दस्तक हुई। टॉक-टॉक-टॉक।
इस बार उसने दरवाजा खोलने का फैसला किया। बाहर एक अजनबी खड़ा था। उसका चेहरा बारिश और अंधेरे में ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। उसने फटी हुई जैकेट पहनी थी और आंखें बिल्कुल खाली थीं।
"क्या मैं अंदर आ सकता हूं?" उसने ठंडी आवाज़ में पूछा।
रोहिणी घबराई हुई थी, लेकिन उसने सोचा, "शायद ये कोई मुसाफिर है।" उसने दरवाजा खोल दिया।
अजनबी ने कमरे में कदम रखा और चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गया। उसके कपड़ों से पानी टपक रहा था, लेकिन उसकी आंखें लगातार रोहिणी को घूर रही थीं।
"आप कौन हैं?" रोहिणी ने पूछा।
"मैं… उसी का इंतजार कर रहा हूं, जो यहां रहने आया है," उसने जवाब दिया।
रोहिणी को उसका जवाब समझ नहीं आया। "आपका मतलब क्या है?"
अजनबी मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ ऐसा था, जो दिल दहला देने वाला था। "ये बंगला मेरा है। और तुमने इसे लेने की हिम्मत कैसे की?"
रोहिणी का खून जम गया। उसने सुना था कि इस बंगले में कभी एक आदमी की रहस्यमयी मौत हुई थी। कहीं ये वही आदमी तो नहीं?
अचानक कमरे की बत्तियां जलने लगीं, जो अब तक बंद थीं। लेकिन रोहिणी को कुछ और भी दिखाई दिया—कुर्सी खाली थी। वह अजनबी गायब हो चुका था।
रोहिणी को अब समझ आ गया था कि गांव वाले सही कहते थे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था—क्या वह इस रहस्य से बच पाएगी?
उस रात के बाद, रोहिणी के बारे में किसी ने कुछ नहीं सुना। लोग कहते हैं, अब वह भी उस अजनबी के साथ उसी बंगले का हिस्सा बन गई है।

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