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गलत सोच

गंगाधर द्विवेदी

पति अपनी पत्नी पर गुस्से में चिल्ला रहा था, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां को पलट कर जवाब देने की? मैं ये कभी बर्दाश्त नहीं करूंगा। आइंदा ऐसा करने की सोचो भी मत।"
पत्नी ने शांत स्वर में जवाब दिया, "मैंने मम्मी जी को पलट कर कुछ नहीं कहा। बस इतना ही कहा कि दीदी से बोल दीजिए कि शाम की चाय बना दें। मुन्ना बहुत रो रहा है और मुझे छोड़ नहीं रहा। ऐसे में मेरा किचन में जाना मुश्किल है।"
इस पर नंद तुरंत बोली, "तो क्या भाभी के रहते हुए मैं चाय बनाऊंगी? ये घर का काम करना मेरा नहीं है।"
सास भी भड़ककर बोली, "बहू, तेरी इतनी हिम्मत कि मुझे इस तरह बात कहे?"
पत्नी ने विनम्रता से कहा, "मम्मी जी, चाय बनाना कौन सा बड़ा काम है? मेरा बच्चा बहुत छोटा है, मुझे उसकी देखभाल करनी होती है।"
यह सुनते ही पति और ज्यादा गुस्से में आ गया। उसने गंदी-गंदी गालियां देना शुरू कर दिया और कहा, "तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी मां से ऐसे बात करने की? यही तमीज सिखाई है तुझे तेरे मां-बाप ने?"
सास और नंद गर्व से मुस्कुराते हुए एक-दूसरे को देखने लगीं, मानो कह रही हों कि देखो, हमारा बेटा हमारी कितनी इज्जत करता है।
पत्नी अब तक चुपचाप सुन रही थी, लेकिन अब उसने दृढ़ता से जवाब दिया, "यह मेरे मां-बाप के संस्कार ही हैं कि मैं आपसे तमीज और तहजीब के साथ बात कर रही हूं। पर आपकी हरकतों और शब्दों से आपकी मां की परवरिश साफ झलक रही है।"
उसने आगे कहा, "मेरी मां ने मुझे शालीनता सिखाई है, लेकिन उन्होंने मुझे यह भी सिखाया है कि अपने हक के लिए खड़े होना और लड़ना भी जरूरी है। मैं गलत के आगे झुकने वालों में से नहीं हूं। तो यह मत सोचिए कि मैं डरकर चुप हो जाऊंगी।"
पत्नी की बात सुनकर पति, सास और नंद के पास कोई जवाब नहीं बचा। उनकी सारी बहस थम गई, और उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। पत्नी के साहस और सच्चाई ने उनकी गलत सोच को आईना दिखा दिया।

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