ज़मीला
- हर हर नाथ मिश्रा
- Feb 5
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Updated: Feb 5
हर हर नाथ मिश्रा
सर्दियों की रात थी। हरखू अपनी खाट पर लेटा खिड़की के बाहर घने कोहरे को ताक रहा था। हवा इतनी ठंडी थी कि उसके हाथ-पैर सुन्न हो रहे थे, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी गर्माहट थी।
घर के कोने में ज़मीला बैठी, चूल्हे में जलती लकड़ियों को धीमा करने की कोशिश कर रही थी। उसकी साड़ी का पल्लू आधा कंधे से सरक गया था, और माथे पर झूलती उसकी जुल्फें किसी कवि की कल्पना को सजीव कर रही थीं।
“हरखू, तुम खेत में इतने देर तक क्यों रहे? लगता है ठंड में वहीं गर्मी का जुगाड़ मिल गया है।” ज़मीला ने शरारती लहजे में कहा।
हरखू ने खाट से उठते हुए जवाब दिया, “खेती का काम मजाक नहीं है, ज़मीला। और फिर, ये ठंड भी क्या चीज़ है जब तुझ जैसे अंगारे घर में जलते हों।”
ज़मीला हँस पड़ी। “बड़े मीठे बोल बोल रहे हो आज। जरूर कुछ गुल खिला आए हो बाहर,” उसने चूल्हे में एक और लकड़ी डालते हुए कहा।
हरखू उसके पास जाकर बैठ गया। “गुल तो तेरे साथ ही खिलाने का मन है, ज़मीला। आज गाँव की चौपाल पर तेरा ज़िक्र हो रहा था। बटेसर काका कह रहे थे कि मैं कितना किस्मत वाला हूँ जो मुझे तेरी जैसी बीवी मिली।”
ज़मीला ने उसकी ओर तिरछी नजरों से देखा। “और तूने क्या कहा?”
“मैंने कहा, किस्मत का क्या है? रिवर्स लव जिहाद कर ले, तो हर आदमी को तेरे जैसी रानी मिल सकती है,” हरखू ने छेड़ते हुए कहा।
ज़मीला ने उसके कंधे पर हल्की सी चोट मारी। “बड़े चालाक हो गए हो आजकल। चलो, खिचड़ी खा लो। मैं परोस देती हूँ।”
हरखू ने उसे रोकते हुए कहा, “बैठ ना, आज मैं खिचड़ी नहीं, तेरे हाथों की गर्माहट खाऊँगा।”
ज़मीला उसकी बात पर लजा गई। “चुप रहो। बाहर लोग सुन लेंगे।”
हरखू ने उसके हाथ पकड़ लिए। “ज़मीला, तू जानती है, मेरे लिए तेरी मुस्कान से बढ़कर कुछ नहीं। जब तू मेरे पास होती है, तो मुझे लगता है कि मैं इस दुनिया का सबसे अमीर आदमी हूँ।”
ज़मीला उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली, “तू जब ऐसे बोलता है, तो मुझे डर लगता है। कहीं तेरी बातें सच में मेरे दिल में घर न कर जाएँ।”
हरखू ने उसकी हथेलियों को अपने गर्म हाथों में थाम लिया। “ज़मीला, तू मेरे लिए केवल मेरी पत्नी नहीं है। तू मेरी धरती है, जिस पर मैं हर रोज़ अपना जीवन बोता हूँ।”
उस रात, चूल्हे की बुझती हुई आग और कमरे की ठंडी हवा में, हरखू और ज़मीला ने निस्वार्थ प्रेम का एक और अध्याय लिख डाला। यह प्रेम देह का था और उससे बढ़कर आत्मा का था।
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