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- एक राजा की कहानी
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव ये कहानी है एक राजा की जो कि एक लंबी यात्रा के लिए निकल ने वाला था। तो सारे प्रजा के लोग राजा को नाव तक छोड़ने के लिए आते है। उन लोगों में से एक आदमी राजा के पास आकर कहता है कि महाराज जब आप जंगल से होते हुए जाएंगे तो आपको वहाँ एक छोटे कद का आदमी मिलेगा और वह आपको लड़ने के लिए चुनौती देगा। उस आदमी को आप जान से मारे बिना आगे मत बढ़ना। अब राजा उस आदमी की बात मानकर यात्रा पर निकल पड़ता है। जब दो दिनों के बाद राजा जब जंगल पहुंचता है तब राजा को एक छोटी कद वाला आदमी मिलता है। उस आदमी ने राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी पर राजा तो महान था, उसने उस छोटे कद वाले आदमी के साथ लड़ाई शुरू कर दी। थोड़ी देर में लड़ाई खत्म हुई और राजा जीत गया। लेकिन जब उस आदमी को जान से मारने की बारी आयी तब राजा ने कहा इस छोटे कद के आदमी को मारने में कैसी महानता है। राजा उस दो फुट के आदमी को जिंदा छोड़कर अब आगे बढ़ गया। अब दो दिन बीत गए और वह आदमी फिर राजा के सामने आया। पर अब उस आदमी का कद कुछ बढ़ चुका था। उसने फिर से राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी और राजा ने वह स्वीकार की और लड़ाई शुरू हुई। जब लड़ाई ख़त्म हुई तब राजा फिर जीत गया। लेकिन इस बार भी राजा ने उस आदमी को यह कहकर छोड़ दिया कि इस आदमी को मारने में कैसी महानता है। दो दिनों बाद वापस वह आदमी राजा के सामने आया। अब उस आदमी का कद राजा के राजा के कद के बराबर था। उसने फिर राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी। फिर लड़ाई में राजा जीत गया लेकिन इस बार भी राजा ने उसे मारा नहीं था। इसी तरह हर बार राजा उसे छोड़ता गया और एक दिन ऐसा आया कि उस आदमी का कद अब राजा से भी बढ़ गया। उसने फिर राजा को लड़ने के लिए चुनौती दी। इस बार राजा थोड़ा डर गया लेकिन राजा महान था उसने चुनौती को स्वीकार किया। लड़ाई शुरू हुई और राजा इस बार बहुत जख्मी हुआ लेकिन राजा ने जैसे तैसे करके उस आदमी को हरा दिया पर इस बार राजा ने उस आदमी को ज़िंदा नहीं छोड़ा उसे जान से मार दिया। सीख:- आपके जिंदगी में कितनी भी छोटी परेशानी क्यों ना आये उसे ख़त्म किये बगैर आगे मत बढ़ाना क्योंकि कल वही छोटी परेशानी आगे बढाकर आपके सामने बहुत बड़ी होकर आएंगी। इन छोटी परेशानिओं को हल करने से आपको अनुभव मिलता है और जीवन में अगर आपके सामने कोई बड़ी परेशानी आये तो आप उसे आसानी से हल कर सकते है। *******
- बादशाह का कुत्ता
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव ये कहानी है एक बादशाह की जिसे अपने कुत्ते से बड़ा प्यार था और वो हमेशा शाही अंदाज में रहता था। बादशाह के राज्य के लोग कहते काश हम भी बादशाह के कुत्ते होते तो काश हमारी जिंदगी भी थोड़ी ठीक होती। बादशाह अपनी प्रजा पर कम ध्यान देता था पर उसका सारा ध्यान अपने कुत्ते पर था। कुछ लोग बादशाह की मिसाल देते थे अगर जानवरों से प्यार करना है तो बादशाह से सीखिए। बादशाह जहाँ भी जाते थे वहाँ वे अपने पालतू कुत्ते को साथ में रहते थे और दरबार में भी उनका कुत्ता हमेशा बैठा रहता था। एक बार बादशाह को किसी दूसरी राज्य के राजा से मिलने जाना था पर वहाँ तक जाने का रास्ता समुद्री था। बादशाह वहाँ जाने के लिए अपनी जहाज में सवार हुए। अब उनके साथ बादशाह के मंत्री, सैनिक और कुछ सवारी लोग भी थे। अब बादशाह जहाँ भी जाता वहाँ वे अपने प्यारे कुत्ते को भी साथ लेकर जाते थे। बादशाह के कुत्ते के लिए ये पहला समुद्री सफर था जब वह जहाज में बैठा था। जब जहाज ने आगे बढ़ाना शुरू किया तो जहाज के पानी में हलचल की वजह से वह कुत्ता घबराने लगा और वह कुत्ता जहाज में इधर से उधर भागने लगा। जहाज में बैठे बाकी लोग भी कुत्ते की इस हरकत को देखकर खुद को असहज महसूस करने लग गए और उस कुत्ते के उछल कूद करने के वजह से जहाज में बैठे लोगो को चिंता होने लगी कि कही जहाज पलट ना जाए। हर कोई चाह रहा था कि काश ये बात बादशाह भी समझ ले लेकिन बादशाह को शुरू-शुरू में बड़ा अच्छा लग रहा था क्योंकि उनका कुत्ता बड़े मजे से जहाज में खेल रहा था। अब थोड़ी देर बाद बादशाह को भी कुत्ते की इस हरकत से चिढ़ लगने लगी। उन्हें लगने लगा कि कही कोई ख़तरा ना हो जाए और अपने कुत्ते के इस तरह उछल कूद करने की वजह से कही जहाज ही पानी में पलट जाए। जहाज पर सफर कर रहे लोगो में एक दार्शनिक बैठा हुआ था। उस दार्शनिक ने बादशाह के पास जाकर बोला गुस्ता कि माफ़ हो हुजूर लेकिन हमे कुछ ना कुछ करना होगा वरना ये आपका प्यारा कुत्ता हम सबको मुसीबत में डाल देगा और इस जहाज को पलटी कर देगा। बादशाह ने कहा ठीक है आप क्या करना चाहते है और आप को जो समझ में आ रहा है आप कर लीजिए मेरी तरफ से आपको इजाजत है। तभी वह दार्शनिक गया और अपने साथ दो लोगो लेकर आया अब उन तीनों ने मिलकर उस कुत्ते को पकड़ा और समुद्र में फेंक दिया। जैसे ही कुत्ता समुद्र में गिरा तब उसकी जान पर बन आयी और वह समझ नहीं पा रहा था कि अब वह क्या करे तब उसने डरते हुए कैसे भी कर के जहाज को पकड़ लिया और थोड़ी देर तक वैसे ही जहाज के साथ समुद्र के पानी में तैरता रहा। दार्शनिक ने अपने साथियों से कहा कि अब इसको वापस से जहाज में उठाकर ले आते है। कुत्ता जहाज में वापस आने के बाद चुपचाप से जहाज के एक कोने में जाकर बैठ गया। बादशाह और बाकि लोगों को समझ नहीं आया कि यह क्या हो गया। अचानक से इस कुत्ते की उछल कूद कैसे बंद हो गयी। तब बादशाह ने उस दार्शनिक से पूछा तुमने ये क्या किया जो कुत्ता इतना उछल कूद रहा था वह अचानक से पालतू बकरी बन गया है। दार्शनिक ने कहा बादशाह बड़ी सीधी सी बात है “जिंदगी में जब तक खुद पर कोई परेशानी नहीं आती तब तक हमे दूसरे की परेशानियां समझ नहीं आती और जब खुद की जान पर बन आती तब हम दूसरे की परिस्थिकों अपने आप समझ जाते है।” सीख:- कमी देखनी है और बुराई देखनी है तो सबसे पहले खुद की देखिये और उसे ठीक करने की कोशिश करिए। *******
- सफलता का रहस्य
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव एक बार एक व्यक्ति ने सुकरात से पूछा कि “सफलता का रहस्य क्या है?” सुकरात ने उस इंसान को कहा कि वह कल सुबह नदी के पास मिले, वही पर उसे अपने प्रश्न का जवाब मिलेगा। जब दूसरे दिन सुबह वह व्यक्ति नदी के पास मिला तो सुकरात ने उसको नदी में उतरकर, नदी गहराई की गहराई मापने के लिए कहा। वह व्यक्ति नदी में उतरकर आगे की तरफ जाने लगा। जैसे ही पानी उस व्यक्ति के नाक तक पहुंचा, पीछे से सुकरात ने आकर अचानक से उसका मुंह पानी में डुबो दिया। वह व्यक्ति बाहर निकलने के लिए झटपटाने लगा, कोशिश करने लगा लेकिन सुकरात थोड़े ज्यादा Strong थे। सुकरात ने उसे काफी देर तक पानी में डुबोए रखा। कुछ समय बाद सुकरात ने उसे छोड़ दिया और उस व्यक्ति ने जल्दी से अपना मुंह पानी से बाहर निकालकर जल्दी जल्दी साँस ली। सुकरात ने उस व्यक्ति से पूछा – “जब तुम पानी में थे तो तुम क्या चाहते थे?” व्यक्ति ने कहा – “जल्दी से बाहर निकलकर सांस लेना चाहता था।” सुकरात ने कहा – “यही तुम्हारे प्रश्न का उतर है। जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे जितनी तीव्र इच्छा से तुम सांस लेना चाहते है, तो तुम्हे सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।” *******
- अपनी असीम शक्तियों को पहचानिए
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव मनुष्य वह अद्भुत रचना है, जिसमें ईश्वर ने असीम शक्तियों को छिपा रखा है। लेकिन बहुत से लोग अपने जीवन में कभी उन शक्तियों को पहचान ही नहीं पाते। वे बाहरी दुनिया की समस्याओं, चुनौतियों और असफलताओं में उलझकर अपने आत्मबल को भूल जाते हैं। जब जीवन में संघर्ष आता है, तब हम हार मान लेते हैं और अपनी कमज़ोरियों को दोष देने लगते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि हर व्यक्ति के भीतर वह शक्ति है जो पर्वत को भी हिला सकती है। यदि हम अपने भीतर झाँकें, अपने मन की शक्ति को पहचानें, तो हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं। "अपनी असीम शक्तियों को पहचानिए" - यह वाक्य केवल एक प्रेरणास्पद विचार नहीं, बल्कि जीवन को बदलने वाला मंत्र है। इस लेख के माध्यम से हमारा आपको उसी आत्मशक्ति की ओर ले जाने का प्रयास है—जहाँ आप खुद को एक नए दृष्टिकोण से देखेंगे और जीवन को दिशा देने में सक्षम बनेंगे।
- बड़े बदलाव के लिए आज छोटी शुरुआत करें
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव बदलाव की बात करते ही हमारे मन में एक बड़ी तस्वीर उभरती है – जैसे जीवन पूरी तरह बदल जाए, समाज में क्रांति आ जाए, या देश प्रगति की नई ऊँचाइयों को छू ले। परंतु हम यह भूल जाते हैं कि हर बड़ा बदलाव एक छोटी शुरुआत से ही जन्म लेता है। समुद्र की शुरुआत एक छोटे से जलकण से होती है और पर्वत की ऊँचाई एक-एक कण से बनती है। ठीक उसी तरह, यदि हम अपने जीवन, समाज या देश में कुछ बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं, तो उसकी पहली ईंट आज की छोटी कोशिश होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ सपने होते हैं – किसी को लेखक बनना है, किसी को आईएएस अधिकारी, किसी को व्यापार में सफल होना है, तो किसी को समाज सुधारक। ये सभी लक्ष्य सुनने में बड़े लगते हैं, लेकिन इनके लिए एक ही मूलमंत्र है –
- बनिये का बेटा
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव एक गाँव में एक बनिया रहता था, उसकी बुद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली थी।एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद राजा ने कहा – “महाशय, आप बहुत अक्लमंद है, इतने पढ़े लिखे है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है? उसे भी कुछ सिखायें। उसे तो सोने चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नहीं पता।” यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा.. बनिए को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?” “सोना”, बिना एक पल भी गंवाए उसके लड़के ने कहा। “तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।” लड़के के समझ में आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं, जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग में ही पड़ता है। मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मज़ा लेते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।” “फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ मे मेरी भी?” लड़का हंसा व हाथ पकड़कर पिता को अंदर ले गया और कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी। यह देख वो बनिया हतप्रभ रह गया। लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा। वो मुझे मूर्ख समझकर मज़ा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा। बनिये का बेटा हूँ अक़्ल से काम लेता हूँ। मूर्ख होना अलग बात है और मूर्ख समझा जाना अलग। स्वर्णिम मौके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मौके को स्वर्ण में तब्दील किया जाए। आपकी समझदारी ही आपकी सबसे बड़ी तरक्की है। ******
- समय का सदुपयोग करें
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव "समय अमूल्य है" – यह वाक्य हम सभी ने अनगिनत बार सुना है। पर क्या हम वास्तव में इस अमूल्य धन का सही उपयोग करते हैं? जीवन में सफलता, सम्मान और आत्म-संतोष पाने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ अगर कोई है, तो वह है समय का सदुपयोग। समय न तो किसी का इंतज़ार करता है, न ही वापस आता है। इसका एक-एक क्षण मूल्यवान होता है। आइए हम समझते हैं कि समय का सदुपयोग क्यों आवश्यक है, इसका हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है और हम इसे अपने दैनिक जीवन में कैसे व्यवहार में ला सकते हैं। समय की महत्ता समय जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसे न खरीदा जा सकता है, न ही उधार लिया जा सकता है। हर व्यक्ति को दिन के 24 घंटे समान रूप से मिलते हैं – कोई राजा हो या रंक, विद्यार्थी हो या कर्मचारी। फर्क केवल इतना है कि कोई उन 24 घंटों का बेहतरीन इस्तेमाल करता है और कोई उन्हें यूं ही गवां देता है। समय का सही उपयोग व्यक्ति को शिखर तक पहुँचा सकता है, वहीं समय की बर्बादी व्यक्ति को पछतावे की गर्त में ढकेल देती है। जब हम यह समझ जाते हैं कि समय लौटकर नहीं आता, तब हम उसकी कीमत पहचानते हैं। समय का दुरुपयोग समय का दुरुपयोग यानी आलस्य करना, टालमटोल करना, बिना योजना के जीना, या निरर्थक कार्यों में समय गँवाना। इसका परिणाम: · हम लक्ष्य से दूर हो जाते हैं क्योंकि बिना समयबद्धता के कोई भी लक्ष्य नहीं प्राप्त हो सकता। · हम आत्मग्लानि से भर जाते हैं क्योंकि जब समय हाथ से निकल जाता है, तब केवल पछतावा शेष रह जाता है। · जो व्यक्ति समय का आदर नहीं करता, वह खुद के विकास को रोक देता है। · जब कार्य समय पर पूरे नहीं होते, तो तनाव, चिंता और निराशा बढ़ती है और हम मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं। समय का सदुपयोग कैसे करें? · सुनियोजित दिनचर्या बनाएँ : हर दिन की एक स्पष्ट योजना बनाना बहुत ज़रूरी है। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के कामों की सूची बनाइए और उन्हें प्राथमिकता के अनुसार बाँटिए। · लक्ष्य निर्धारित करें : छोटे और बड़े लक्ष्यों को निर्धारित कर उन्हें समयसीमा में बाँधें। जब आपके पास लक्ष्य होंगे, तभी आप समय का सही दिशा में उपयोग कर पाएँगे। · प्राथमिकताओं को पहचानें : हर काम ज़रूरी नहीं होता। समझें कि आपके जीवन के कौन से कार्य आपके विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं और पहले उन्हें पूरा करें। · आलस्य और टालमटोल से बचें : "कल करूँगा" का रवैया समय का सबसे बड़ा दुश्मन है। आज का काम आज ही करें, नहीं तो वह कभी नहीं होगा। · डिजिटल व्यसन से दूरी रखें : सोशल मीडिया, मोबाइल गेम्स और वेब सीरीज़ समय के सबसे बड़े चोर हैं। इनसे नियंत्रित दूरी बनाना ही बुद्धिमानी है। · अवकाश का भी रखें ख्याल : समय का सदुपयोग का मतलब केवल काम करना नहीं है, बल्कि आत्मविकास, मानसिक शांति और आनंद के लिए भी समय निकालना चाहिए। योग, ध्यान, पढ़ना, या परिवार के साथ समय बिताना – ये सब जीवन को संतुलित बनाते हैं। महान व्यक्तियों की समय के प्रति सोच · महात्मा गांधी ने कहा था – "भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आप आज क्या करते हैं।" · डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा – "अगर आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो पहले सूरज की तरह जलना होगा।" इसका सीधा अर्थ है कि हर पल को परिश्रम और अनुशासन से भरना होगा। · चाणक्य ने कहा – "जो समय की कद्र नहीं करता, समय उसे मिटा देता है।" इन सभी महान आत्माओं ने अपने जीवन में समय का सही प्रयोग किया और संसार को प्रेरणा दी। विद्यार्थियों और युवाओं के लिए विशेष सन्देश आज के युवाओं के पास अवसरों की कोई कमी नहीं है, लेकिन सफलता उन्हीं को मिलती है जो समय का सम्मान करते हैं। छात्र जीवन में समय का सदुपयोग विशेष रूप से आवश्यक है, क्योंकि यही जीवन की नींव होती है। जो विद्यार्थी समय को बर्बाद करते हैं, वे भविष्य में पछताते हैं। पर जो समय का सम्मान करते हैं, वे जीवन में ऊँचाइयाँ छूते हैं। · आज की मेहनत कल का सुनहरा भविष्य बनाती है। · समय का सदुपयोग – जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और आत्मविश्वास बढ़ता है। · कार्य समय पर पूर्ण होते हैं। समाज में सम्मान मिलता है। · मानसिक शांति और संतुलन बना रहता है। · जीवन में उद्देश्य स्पष्ट होता है। समय का सदुपयोग करें, क्योंकि यह सबसे बड़ा शिक्षक, साथी और साधन है। एक बार जो समय निकल गया, वह फिर लौटकर नहीं आता। यदि आप चाहते हैं कि आपका जीवन सफल, संतुलित और सार्थक हो, तो समय को अपना सबसे अच्छा मित्र बना लीजिए। हर दिन की शुरुआत इस विचार से करें – "मैं आज का दिन पूरी लगन, ईमानदारी और समय का सदुपयोग करते हुए बिताऊँगा।" यकीन मानिए, यही विचार धीरे-धीरे आपके पूरे जीवन को बदल देगा। "वो समय नहीं जो घड़ी में चलता है, वो समय है जो सपनों को हकीकत में बदलता है। जो समय को जान लेता है, वो ही सच्चे अर्थों में जीवन को पहचान लेता है।" *******
- अपने काम से काम रखिये
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव एक पठान के पास एक बकरा और एक घोडा था। जिन्हें वो बहुत प्यार करता था। एक बार अचानक घोडा बीमार पड़ गया और बैठ गया। वो अब चल फिर नहीं सकता था। पठान को इस बात की बड़ी चिंता हुयी। उसने घोड़े के इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने जांच पड़ताल करने के बाद पठान को बताया कि.... “आपके घोड़े को बहुत खतरनाक बीमारी हुयी है। मैं इसे 4 दिन लगातार दवाई दूंगा। अगर ये चौथे दिन तक खड़ा हो गया तो बच जाएगा। यदि यह चौथे दिन तक खड़ा न हुआ तो मजबूरन इसे मारना पड़ेगा।” यह सुन कर पठान को बहुत दुःख हुआ। लेकिन वह कर भी क्या सकता था। डॉक्टर के जाने के बाद बकरे ने घोड़े को समझाने की कोशिश की। “देखो, तुम कल एक बार जब डॉक्टर आये तो उठ जाना। वर्ना वो तुम्हें मार देंगे।” लेकिन घोड़े पर इस बात का कोई असर न हुआ। वह दूसरे दिन न उठा। बकरे ने उसे दूसरे दिन भी समझाया। पर घोडा तो जैसे कान में रूई डाले बैठा था। तीसरे दिन डॉक्टर फिर आया। उसने देखा कि घोड़ा फिर से खड़ा नहीं हुआ। “बस एक दिन और अगर यह न खड़ा हुआ तो कल इसका आखिरी दिन होगा।” इतना कह कर डॉक्टर चला गया। तब बकरे ने एक आखिरी कोशिश करनी चाही। “देखो, मैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूँ। जिन्दगी दुबारा नहीं मिलती। तुम्हें ज्यादा कुछ नहीं करना। अपनी जान बचने के लिए बस एक बार उठ कर दौड़ना है।” घोड़े ने बकरे की सलाह पर इस बार विचार किया। उसने सोच लिया अगर एक बार हिम्मत करने से जान बच सकती है तो क्यों न कोशिश कर ली जाए। अगले दिन डॉक्टर आया और जैसे ही घोड़े के पास गया तो घोड़ा अचानक से उठा और दौड़ने लगा। डॉक्टर खुश हो गया और बोला, “बधाई हो, आपका घोड़ा बच गया। अब इसे नहीं मारना पड़ेगा।” यह खबर सुन पठान बहुत खुश हुआ और तुरंत बोला.... “डॉक्टर साहब आज खुश कर दिया आपने। मैं आज बहुत खुश हूँ और इसी ख़ुशी में आज बकरा कटेगा”! सीख : आज के ज़माने में बस अपने काम से काम रखिये। नहीं तो किसी और को बचाने के चक्कर में आप भी बकरे की तरह कट जाओगे। ******
- दिव्या
आरती गौतम वो रेलवे स्टेशन पर अकेला बैठा फोन पर बिजी था कि उसके बगल में कोई सुंदर सी औरत आकर बैठ गयी। औरत के चेहरे पर नजर पङी तो वो अचानक ठिठक सा गया। ये तो वही लङकी थी जो उसकी जिंदगी थी। औरत ने उसकी तरफ देखा भी नहीं वो चेहरे पर से पसीना पोछतें हुए अपना टिकट देख रही थी। अचानक से वो बोल पङा "दिव्या"। किसी ने नाम लिया तो लङकी ने अपनी बङी बङी आंखें से उस शख्स पर टिका दी और आंखो ही आंखो में पुछा "कौन?” वो बोला "अरे मैं राहुल हुं पहचाना नही क्या? हाँ, पहचान लिया मगर ये क्या बाबाओ जैसी दाङी रख रखी है? वो बोला हाँ बहुत बदल गया हुं, मगर तुम तो जरा भी नहीं बदली। इतने साल बाद देख रहा हुं अकेली यहां क्या कर रही हो? तुम्हारे पति, और बच्चे कहां हैं? वो उदास हो गयी और बोली बच्चे हुए ही नहीं। पति से शादी के 5 साल बाद तलाक हो गया था। अकेली ही रहती हुं। तुम सुनाओ अपनी तुम्हारी बीवी कैसी और बच्चे कितने हैं? कहां रहते हो? मेरी शादी के बाद तुमने गांव ही छोङ दिया ? वो बोला.... तुम तो मिली नहीं इसलिये शादी की नहीं, माँ के साथ इसी शहर में रहता हुं। प्राईवेट जॉब करता हुं, और मैंने गांव नही छोङा था, तेरे भाईयों ने छोङने पर मजबूर कर दिया था। ये सब सुनकर लङकी के आंखों में आँसू आ गये। उसी समय उसकी ट्रेन भी आ गयी और वो उठकर जाने लगी... राहुल ने उठकर आगे बङकर उसका हाथ पीछे पकङ लिया और बोला.. ये ट्रेन मिस कर दो ना, अगली ट्रेन से चली जाना। वो बिना पीछे मुङे बोली...थक गयी हुं अकेले चलते चलते हमेंशा के लिये क्यों नहीं रोक लेते? फिर दोनो रो कर एक दुसरे से लिपट गये। ******
- रक्षाबंधन
ब्रिज उमराव भाई बहन का प्यार, यह राखी का त्योहार। बहना दूर से चलकर आई, कम न हो अपना प्यार।। प्रेम प्यार सुचिता का संगम, न हो मलाल मन में जड़ जंगम। भ्रात प्रेम की धारा बहती, मन में न साल न कोई गम।। नहीं कामना कुछ पाने की, भैया तू निश्चिंत रहे। प्रेम दिवस पर मिल तेरे से, हर पलछिन आनंद रहे।। स्नेह प्रेम की यह गंगा, अविरल बहती रहे सदा। मिल जाना जब सुमिरन आये, यहां-वहां यूं यदा कदा।। स्नेह प्यार का यह सागर, लहरों से संस्कारित हो। ज्यों दरार पटती वर्षा से, आत्म प्रेम आधारित हो।। धन वैभव नेपथ्य की बातें, सुमधुर सागर उमड़ रहा। ज्यों नदिया दरिया से मिलती, नभ में बादल घुमड़ रहा।। अश्क बह रहे गालों पर, आंखों में शैलाब उठा। खुशियों की धारा बह निकली, दोनों को ही जुदा जुदा।। शक की कहीं भी जगह न हो, आशंका भागे दूर दूर। प्रीति की डोर बंधे ऐसी, तन मन हो जाये मजबूर।। आशा विश्वास प्रेम श्रद्धा, इर्द गिर्द पहरा देती। स्नेह प्रेम की धार बहे, तन मन को नहला देती।। ******
- किसान की चतुराई
डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव रहमत नगर में माधो नाम का एक किसान रहता था। उसके पास कई सारे खेत थे। लेकिन, उसका खेत पहाड़ी क्षेत्र में होने के कारण वहाँ सिंचाई के लिए नदी का पानी नहीं पहुँच पाता था। जिसके कारण उसे बारिश पर निर्भर रहना पड़ता था। कभी-कभी बारिश न होने की वजह से उसके खेतों में लगी फसल सूख जाती थी। माधो अक्सर सोचा करता कि वह अपने उन खेतों को बेचकर कही अच्छी और उपजाऊ खेत खरीद ले। लेकिन, उसके खेतों की कोई अच्छी कीमत नहीं दे रहा था। एक दिन माधो अपने खेतों को देखकर वापस घर को जा रहा था। बीच रास्ते में उसने एक खेत में एक बौने को खोदाई करते हुए देखा। उसने बौने से पूछा क्यों भाई! यहाँ पर खोदाई क्यों कर रहे हो। बौना बहुत चालाक था। उसने एक पोटली में कुछ कंकड़ डालकर एक सोने का सिक्का डाल दिया था। बौना उस पोटली को किसान को दिखाते हुए कहा – “इस पूरे खेत में इस तरह की बहुत सारी पोटली हैं। किसान को लालच आ गया। उसने बौने से कहा – “इस रहस्य के बारें में अब मुझे भी पता हो गया हैं तो अब इस खजाने का हकदार मैं भी हूँ। बौने ने कहा – हाँ, हाँ क्यों नहीं इसके पहले कोई तीसरा व्यक्ति आए हम दोनों पूरे खेत की जुताई करके सिक्कों की पोटली को निकल लेते हैं। बौने और किसान मिलकर पूरे खेत की जुताई कर लिए। लेकिन, उन्हें कुछ नहीं मिला। दरअसल, बौना बहुत आलसी था। वह अपना काम अकेले नहीं करना चाहता था। किसान बुद्धिमान और चतुर था। वह बौने की सारी चतुराई समझ गया। उसने बौने से कहा – तुम्हारी गलती की भरपाई करने के लिए तुम्हें कुछ दंड भोगना पड़ेगा। अगले दो वर्षों तक जो कुछ तुम्हारे खेत में लगाया जाएगा उसका आधा हिस्सा मेरा होगा। बौना बोल – “मुझे मंजूर हैं मगर जमीन के ऊपर जो उगेगा वह सब मेरा होगा और जमीन के नीचे जो कुछ उगेगा वह तुम्हारा होगा। किसान उसकी बात से सहमत हो गया। उसने कहा - “लेकिन, फसल मैं उगाऊँगा।” बौना बहुत आलसी था। उसने हाँ कर दी। किसान अगले दो साल तक जमीन के अंदर होने वाले फसल आलू, गाजर और मोमफ़ली लगाई। फसल कटने के बाद बौने को सिर्फ पत्ते मिलते थे। जबकि किसान को अच्छे फसल मिलती थी। इस तरह से किसान ने बौने को सबक सीखा दिया। बौना लालच और आलस की वजह से कही का नहीं हुआ। सीख : लालची और आलसी व्यक्ति को हर जगह धोखा ही मिलता हैं। ******
- चरित्रहीन
ममता पाण्डेय ये वक्त है आने का? मनोहर से रहा न गया। क्या करूं। काम ही ऐसा है? घर में घुसते हुए रागिनी ने जवाब दिया। रात ग्यारह बजने को है। कौन सा काम कंपनी करवाती है जो समय से नहीं छोड़ती? तुम कहना क्या चाहते हो? रागिनी की त्योरियां चढ़ गई। ऐसा रोज-रोज नहीं चलेगा। अपने बॉस से कह दो कि समय से छोड़ा करे। इतनी रात छोड़ने का क्या तुक? देर से आती हूं तो वे छुड़वाने की भी जिम्मेदारी लेते हैं। मैं उन्हीं की गाड़ी से आई हूं। तो भी, तुम्हें समय का ख्याल रखना चाहिए। मीटिंग में फंस गई थी। बोल दो कि मीटिंग समय से रखा करे। ‘वे मुझे 15 लाख सालाना देते हैं, जो तुम्हारी तनख्वाह से दुगनी है। वे हमारे हिसाब से नहीं बल्कि मुझे उनके हिसाब से चलना होगा। नौकरी छोड़ दो। आवेश में आकर कह रहे हो। वर्ना तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं न कमाऊं तो न फ्लैट की किस्त भर पाएगी न ही कार का लोन। मुझे क्या मालूम था कि उसकी इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। कीमत? कैसी कीमत? मैं क्या बाजार में बिकने जाती हूं? रागिनी हत्थे से उखड़ गई। मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। फिर क्या था? नौकरी तुम्हारी पसंद थी। वर्ना मैं तुम्हारी नौकरी से संतुष्ट थी। रागिनी ने जो कहा वह सत्य था। मनोहर हर हालत में प्रोफेशनल लड़की चाहता था। कई रिश्ते आए, उनमें से उसने रागिनी को पसंद किया। उस समय वह एमबीए करके एक कंपनी में मैनेजर पद पर थी। शादी के बाद उसने नौकरी छोड़ दी और दिल्ली आ गई। यहां उसकी रत्तीमात्र नौकरी की इच्छा नहीं थी। मगर मनोहर ने जिद की। कहने लगा, ‘दिल्ली में रहना है तो रुपया होना चाहिए। फ्लैट लेने हैं, आने-जाने के लिए कार खरीदनी है। बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना है। कहां से होगा यह सब। मैं एक सरकारी बैंक का कर्मचारी हूं। मेरी आय सीमित है इसलिए तुम्हारा काम करना बेहद जरूरी है। मनोहर ने इतना कुछ रागिनी के ऊपर लाद दिया कि वह दबाव में आ गई। उसे लगा मनोहर ने जितना कुछ सोच रखा है वह सचमुच में आसान नहीं था। लिहाजा उसे नौकरी करनी ही पड़ेगी। शुरू-शुरू में सब ठीक था। वह समय से घर आ जाती थी। शाम अक्सर दोनों घूमने निकल जाते थे। बिस्तर पर आते ही रागिनी पड़ गई। मनोहर उसके करीब होना चाहता था मगर उसने मना कर दिया। मुझे सोने दो। बहुत थकी हूं रागिनी उनींदी सी बोली। थकी तो तुम रोज रहती हो मनोहर को उसका व्यवहार अच्छा न लगा। प्लीज सो जाओ। उसने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। जल्द ही वह गहरी नींद के आगोश में समा गई। मनोहर कसमसाकर रह गया। सुबह मनोहर का मूड उखड़ा हुआ था। एक तो रागिनी का अक्सर देर से आना उस पर सिर घुमाकर सो जाना। जब ऐसी ही जिंदगी जीनी थी तो क्या जरूरत थी शादी करने की? रागिनी बहुत जल्दी में थी। आज उसे सुबह नौ बजे तक ऑफिस पहुंच जाना था। सिंगापुर से कुछ डेलीगेट आ रहे थे। उनके साथ जरूरी मीटिंग थी। तुम्हारी वहां क्या जरूरत है? मनोहर बोला। मेरे पास तुम्हारी बकवास सुनने का वक्त नहीं। प्रोफेशन में आगे बढ़ने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है। साड़ी ठीक करते हुए रागिनी बोली। पति को भी? मनोहर चिढ़ा। तुम कहां जाने वाले हो, कमाने वाली बीवी जो लाए हो। बस इतना रहम करो, सवाल करके छोड़ दो। बदले में मैं तुम्हारे हाथ में अच्छी खासी रकम लाकर देती रहूंगी। मैं कहूं कि मुझे सिर्फ तुम चाहिए, तब? सिर्फ रात गर्म करने के लिए। सुबह तो तुम्हें 15 लाख सालाना कमाने वाली बीवी चाहिए। रागिनी ने तंज कसा। ‘वैसे अब मैं काफी दूर निकल चुकी हूं। पीछे लौटना आसान नहीं। बाल ठीक करते हुए रागिनी बोली। क्यों नहीं आसान, नौकरी छोड़ दो। उसके बाद मैं क्या करूंगी? घर संभालो, बच्चे पैदा करो। सब कुछ तुम्हारी मर्जी से होगा? तुम्हें पहले सोचना चाहिए था कि एक स्त्री क्या-क्या करेगी। नौकरी करे, बच्चे पाले, तुम्हें समय से नाश्ता-खाना दे। मगर नहीं तुम्हें तो प्रोफेशन लड़की चाहिए थी। जहां मेरा रिश्ता जाता लड़के वाले कहते लड़की सादा-सादा बीए है, ऐसा नहीं चलेगा। फिर मैंने एमबीए किया। उसके बाद नौकरी, ताकि मेरा रिश्ता हो जाए। किंचित वह भावुक हो उठी। मनोहर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि रागिनी इस कदर प्रोफेशनल हो जाएगी। रागिनी कंपनी की गाड़ी से ऑफिस के लिए निकल गई। थोड़ी देर बाद मनोहर भी ऑफिस के लिए निकल गया। आज उसका मन ऑफिस में नहीं लगा। खिन्न तो काफी दिनों से था मगर जिस तरीके से रागिनी ने अपने तेवर दिखाए वह असहनीय था। यह सत्य था कि उसे कमाऊ पत्नी चाहिए थी, मगर इस कीमत पर नहीं कि उसकी अंगुलियां भी बेमानी लगे। आज यही तो स्थिति थी। जिस्म की बात तो दूर वह बालों को भी हाथ लगाने नहीं देती। वजह वही, थकी हूं, मूड नहीं है, मुझे सोने दो। रागिनी के हेड का नाम हेमंत था, वहीं रागिनी उसकी डिप्टी हेड। उसकी खुद की कार थी। यूं तो वह अपने स्कूटी से ऑफिस जाती मगर जब देर होती तो स्कूटी वहीं ऑफिस में छोड़ देती, फिर हेड की कार से घर आती। अगले दिन हेड उसे रिसीव करके ऑफिस ले आता। रागिनी ने पांच सालों में काफी तरक्की की थी। सामान्य मैनेजर से सीधे डिप्टी हेड तक पहुंच गई और सेलरी पूरे डेढ़ लाख महीना। यह कोई आसान काम नहीं था। मनोहर खुश था। उसके पास अच्छी खासी रकम आ रही थी। मगर जिस तरीके से रागिनी में बदलाव आने लगा वह उसके लिए नागवार था। रागिनी का देर से आना। मनोहर को कोई अहमियत न देना। घर के काम में रंचमात्र दिलचस्पी न लेना। तरक्की और हेड यही रह गया था उसके लिए मुख्य। बाकी सब गौण। मनोहर जितना सोचता दिल उतना ही डूबने लगता। वह परिवार बढ़ाना चाहता था, वहीं रागिनी इन पर चर्चा तक नहीं करना चाहती थी। रागिनी पीछे लौटने वाली नहीं थी। 15 लाख सालाना किसी को काटता है? तलाक देना आसान नहीं। देने की कोशिश भी करता हूं तो अच्छी खासी आमदनी से वंचित होना पड़ेगा। वह मंझधार मे पड़ गया था। न उगलते बन रहा था न ही निगलते। रागिनी दिन-प्रतिदिन हाथ से निकलते जा रही थ। उसे सिर्फ अपने काम के आगे कुछ नहीं सूझ रहा था। बच्चे की बात करता तो कहती अभी जल्दी क्या है। कहते-कहते सात साल गुजर गए। वह आज भी बच्चे के नाम से कतराती है। धन-दौलत किस काम का अगर बच्चे ही न हो। शाम ऑफिस से मनोहर आया तो उसका दिल उचाट था। नौकरानी ने उसे चाय नास्ता दिया। वह आठ बजे तक खाना बनाकर चली जाती। उसके बाद उसके पास सिवाय रागिनी के इंतजारी के कुछ नहीं रहता। कितनी देर टीवी देखे। वह चाहता था कि उसके पास रागिनी बैठे, बातें करे, कुछ अपनी सुनाए कुछ अपनी कहे। वह रागिनी को अपनी बांहों में भरना चाहता था। उस पर खूब प्यार बरसाना चाहता था। मगर इससे उलट वह पास बैठने से भी कतराती। मानो उसके जिस्म से बू आ रही हो। ‘क्या मैं सिर्फ नाम का पति रह गया हूं? क्या रागिनी के जीवन में कोई और आ गया है? मेरे प्रति वितृष्णा की और क्या वजह हो सकती है? यह ख्याल मनोहर के जेहन में उभरे। उसकी बेचैनी बढ़ जाती है। आज वह रात दस बजे आई। कल से एक घंटे पहले कपड़े उतारकर सीधे बेड रूम में सोने चली गई। अति हो गई? मनोहर फट पड़ा। मुझे सोने दो। मैं कल बात करूंगी रागिनी ने मुंह फेर लिया। आज क्यों नहीं? मुझे नींद आ रही है। कहां से गुलछर्रे उड़ा कर आ रही हो? दिल की बात जुबान पर आ ही गई। तुम भी उड़ाओ, मैंने कब मना किया। मगर अभी मुझे सोने दो। रागिनी ने कान पर तकिया रख लिया। मनोहर बड़बड़ाता रहा। सुबह मनोहर का सिर भारी था। रागिनी हमेशा की तरह ऑफिस के लिए तैयार हो रही थी। मानो कुछ हुआ ही न हो। मनोहर तिलमिलाकर रह गया। आज रागिनी स्कूटी से नहीं गई। उसने छत से देखा कुछ दूरी पर एक कार खड़ी थी। कार में एक शख्स बैठा था। कौन हो सकता है? मनोहर के दिमाग में शक के कीड़े कुलबुलाने लगे। तुम्हारे साथ कौन था? जैसे ही रागिनी ऑफिस पहुंची मनोहर ने फोन मिलाया। अचानक जिज्ञासा की वजह? रागिनी के स्वर में व्यंग्य का पुट था। क्या मुझे इतना भी जानने का हक नहीं? हां-हां क्यों नहीं। पति जो ठहरे। रागिनी ने आगे कहा, ‘वे मेरे हेड थे। कल रात अपनी स्कूटी ऑफिस में ही छोड़ आई थी। रागिनी ने फोन काट दिया। मनोहर को काटो तो खून नहीं। हो न हो यही आदमी रागिनी को प्रमोट कर रहा है। ‘क्यों? कुछ तो वजह होगी? वर्ना इतनी जल्दी-जल्दी वह इतनी ऊंचाई पर नहीं पहुंचती। कहीं दोनों में? मनोहर चाह कर भी रागिनी का कुछ बिगाड़ पाने में सक्षम न था। पुरुष होने के नाते उसका आत्मसम्मान जागता मगर अगले ही पल हारे हुए जुआरी की तरह बैठ जाता। दो दिन बाद रागिनी ने यह कहकर उसे चौंका दिया कि वह ऑफिस के काम से सिंगापुर जा रही है। अकेले? हालांकि यह सवाल बेमानी था, तो भी एक पति होने के नाते जुबान से निकल ही आता। नहीं मेरे साथ हेमंत भी जा रहे हैं। हेमंत! हेमंत नाम ने नाक में दम कर रखा है। मनोहर चीखा। चिल्लाओ मत, वह मेरा हेड है। आज तुम जो निश्चिंत जीवन गुजार रहे हो वह सब उसी की देन है। उसी ने एमडी से मेरी सिफारिश करके यहां तक पहुंचाया है। बदले में तुमने क्या दिया? चलो बता देती हूं, छिपाना क्या? मैं उसकी एक्सट्रा मेटेरियल अफेयर हूं। धोखेबाज। कह सकते हो। आगे बढ़ने के लिए अगर वह मुझे अपनी अंकशायिनी बना लेता है तो हर्ज ही क्या है। मैं नहीं बनूंगी तो कोई दूसरी तैयार हो जाएगी। वह आगे बढ़ जाएगी और मैं मामूली सी मैनेजर बनकर रह जाऊंगी। कारपोरेट सेक्टर में आगे बढ़ने का यही फंडा है, जो तुम्हारे सरकारी विभाग में नहीं। रागिनी, मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम इतना गिर सकती हो? गिरा कौन रहा है? सफलता पतिव्रता बनने से नहीं आती। फिर ये फंडा सिर्फ स्त्री पर ही क्यों? क्या पुरुष नहीं गिरते? मैं गिरी तो चरित्रहीन और पुरुष गिरे तो पुरुषार्थ। यह अन्याय नहीं है तो क्या है। वैसे भी एक स्त्री कमाने के लिए बाहर निकलती है तो उसे यह सब सहना पड़ता है। यही काम मैं करूं तो? बेशक करो। तब एक स्त्री सिवाय लड़ने झगड़ने के और कर भी क्या सकती है? क्या तुम मानोगे? तुम तो यही कहोगे सब कुछ तो दिया, रहने के लिए फ्लैट, कार, गहनें, अच्छे लिबास साथ में खर्च करने के लिए रुपयें। रागिनी कहती रही, ‘मैं भी तो यही कर रही हूं। जमाना बदल चुका है। बाहरी तड़क-भड़क को ही लोग महत्व देते हैं। हम दोनों रुपया कहां से लाते हैं यह कोई नहीं देखता। वैसे भी बाहर निकलने वाली महिलाएं कितनी भी चरित्रवान हो उन पर आरोप लगते ही हैं। शादी के पहले मैं जिस कंपनी में काम करती थी वहां के पुरुष एक भी महिलाओं को लांक्षित करने से नहीं चूकते। उनका एक ही फंडा था, मिली तो ठीक वर्ना पीठ पीछे कह दिया रंडी है। इतना जानने के बाद शायद ही कोई पुरुष अपनी पत्नी को अपनाए। पर यह सवाल सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों? पुरुष नौकरानी तक से संबंध बनाकर पति बना रह सकता है तो पत्नी क्यों नहीं। दोहरे मापदंड क्यों? सिर्फ इसीलिए न कि पुरुष कमाते हैं, लिहाजा उसे मनमानी की छूट है। तब तो रागिनी भी छूट के दायरे में आती है। ‘निकल जाओ मेरे घर से। मनोहर चीखा। मर्द होने के नाते इतना तो हक बनता है। स्त्री का तो कोई घर होता नहीं जो इतने स्वाभिमान से कह सके निकल जाओ मेरे घर से। ‘सोच लो, नुकसान तुम्हारा होगा। यह फ्लैट मेरे लोन से खरीदा गया है, बेघर तुम होगे, मुझे क्या, मैं किसी और के साथ घर बसा लूंगी। सब नहीं पूछते अपनी बीवी से कि रात कहां से बिता कर आई हो। सब कुछ जानकर भी अंजान बने रहते हैं। मैट्रोपोलिटन सिटी में रहना होगा तो दौलत चाहिए। कितना कमा लोगे जो दिल्ली में फ्लैट खरीद सको। मनोहर के पास इसका कोई जवाब नहीं था। परसों रागिनी सिंगापुर चली गई। पांच दिन बाद आई। काफी फ्रेश लग रही थी। काफी कुछ महंगे सामान खरीद कर लाई थी। मनोहर मूर्तिवत उसे देखता रहा। जब तंद्रा लौटी तो लगा जैसे उसके भीतर कुछ मर सा गया। वह एक-एक कर उन सामानों को बटोरता रहा, जो रागिनी उसके लिए लाई थी। सचमुच महंगे थे, जो उस जैसे आम आदमी के लिए असंभव थे। ‘रागिनी, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। ‘सचमुच? वह मेरे गले लिपट गई। वह आगे कही, ‘तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं? ‘बिल्कुल नहीं? बस एक शिकायत थी सोचा कह दूं। ‘वह क्या? वह मेरे बदन से छिटकर दूर खड़ी हो गई। ‘हेड क्यों? एमडी क्यों नहीं? वह हंस पड़ी। ‘मैंने तुमसे झूठ बोला था। रागिनी की आंखें खुशी से चमक उठी। वह आगे कही, ‘इस बार एमडी ही था। मैंने हेड को दरकिनार करवा दिया। अब वह नहीं, मैं हेड हूं। इसके आगे मेरे पास कुछ पूछने के लिए बचा ही नहीं था। मनोहर ने अधेड़ नौकरानी को हटाकर जवान रख लिया। अब उसे रागिनी से कोई शिकायत नहीं थी। समय के साथ चलने में ही बेहतरी थी। इसे वह बखूबी समझ चुका था। *****











