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यमराज का बेटा

प्रभा कांत द्विवेदी

यमलोक में आज यमराज कुछ उक्ताए हुए से टहल रहे थे। वैसे तो यमलोक स्वर्गलोक का ही एक हिस्सा था, मगर स्वर्ग से बिलकुल अलग-ढलग सा... यहां न तो स्वर्ग वाले बागीचे, पहाड़ और झरने थे, ना कोई मधुर संगीत या नृत्य करती हुई अप्सराओं के घुंघरू की झंकार सुनाई देते थे, और चौबीसों घंटे नीम अंधेरा सा छाया हुआ रहता था।
इन सब बातों की तो यमराज को आदत थी, क्योंकि उन का प्राण हरने का कार्य उन्हें काफी व्यस्त रखता था, और काम समाप्त होने के बाद उन्हें ऐसे ही वातावरण में शांति मिलती थी।
मगर आज उन की प्राण हरने की सूची में किसी का भी नाम नहीं था।
मृत्युलोक से भी वे काफी परिचित थे, क्योंकि वहां का तो उन का प्रतिदिन आना-जाना लगा रहता था। लेकिन उस समय उन का ध्यान मात्र उन लोगों पर रहता, जिनके उन्हें प्राण हरने होते थे।
आज जब की उन्हें वहां कोई काम नहीं था, उन की दृष्टि दूर दिखने वाले मृत्युलोक के गोले पर पड़ी।
कुछ देर तक यूं ही उस तरफ ताकते रहने के बाद, उनको लगा कि मृत्युलोक के किसी एक खास हिस्से में अजीब सा कुछ चल रहा था।
उन्होंने अपनी दूर की दृष्टि सक्रिय कर के, उस तरफ केन्द्रित कर के देखा, तो एक जवान लड़की किसी पुरुष से बड़े जोरों का झगड़ा कर रही थी। यमराज बस उसे देखते ही रहे गए।
उस गौरवर्ण लड़की के गाल गुस्से से तमतमा कर लाल हो गए थे। बड़ी बड़ी आंखों से जैसे चिंगारियां फूट रही थी। गुस्से से वो जब अपना सिर झटकती थी, तो उसकी काली नागिन सी लंबी चोटी नितंब पर ज़ोर से झूल जाती, और झटका यमराज के हृदय को लगता।
थोड़ी देर में, एक बूढ़ा एक छोटे से घर से बाहर आया और बोला, "लता बेटी, अब गुस्सा थूक दे, झगड़ा मत कर... चल, आ, अंदर आजा", और किसी तरह से समझा बुझा के, उस का हाथ पकड़ के, लड़की को घर में ले गया।
"उफ्फ!" यमराज ने सोचा, "सही जीवन तो बस मृत्युलोक में ही है।" "मेरा अस्तित्व भी कोई अस्तित्व है? प्राण हारना, और बस प्राण हारना। और लोगों के चहेरे पर सिर्फ दो ही भाव देखने को मिलते हैं, या तो पीड़ा, या फिर भय! तंग आ गया हूं मैं इस अस्तित्व से। ना कोई मित्र है न साथी। अगर इस लता जैसी स्त्री का साथ मिल जाए तो....
क्या स्त्री है वोह भी! कैसे लड़ रही थी। मुझ जैसे मृत्यु के देवता के बिलकुल लायक!"
क्षणभर के लिए उन्होंने सोचा कि ईश्वर से विनती करके वे लता के प्राण हरकर उसे यमलोक ले आएं। मगर फ़िर उन्हें याद आया कि यमलोक में तो कोई शरीर या फिर आत्म भी नहीं रहे सकती।
उन्होंने मन ही मन कोई निश्चय किया, और ईश्वर के पास जाके, प्रणाम करके, उनके चरणों में बैठ गए।
"क्या बात है यमराज?" ईश्वर ने मुस्कुरा कर पूछा। "कुछ व्याकुल लग रहे हो। कोई समस्या?"
"प्रभु, वैसे तो कोई समस्या नहीं", यमराज हाथ जोड़ कर बोले, "मगर लाखों वर्षों से यह प्राण हरने का कार्य करते करते उक्ता गया हूं। और कोई दूसरा अनुभव तो मुझे मिला ही नहीं इतने सालों में!"
"यमराज", ईश्वर बोले "सब से आसान काम तो आप ही के हिस्से में है। सिर्फ प्राण हर के चित्रगुप्त के हवाले ही तो करना है। ऊपर से भैंसे पर सवार हो के पूरे ब्रह्मांड की प्रतिदिन सैर करते हो! और आप का रोब भी कितना! पूरा संसार कांपता है आप के नाम से!"
"यही तो बात है प्रभु!" यमराज बोले। "तंग आ गया हूं मैं लोगों के दुखी और भयभीत चेहरे देख देख के! अब मुझे लोगों का डर नहीं, प्रेम चाहिए। किसी स्त्री का स्नेह और मुलायम स्पर्श चाहिए।"
"यह तो शक्य नहीं है यमराज", ईश्वर ने कहा। "यमलोक में तो कोई भी जीव नहीं रहे सकता।
"इसी लिए प्रभु, मेरी लाखों वर्ष की सेवा के बदले मुझे अब निवृत्ति भेंट दे दीजिए।" यमराज ने कहा।
"निवृत्ति पा कर करोगे क्या?" ईश्वर ने आश्चर्य से पूछा।
"मैंने मृत्युलोक के भारतवर्ष में लता नामक एक स्त्री देखी है।", यमराज थोड़ा शरमा कर बोले। मैं उसी को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता हूं।
मैं भी चाहता हूं कि मेरा एक छोटा सा घर हो, संतान हो.... प्रभु, यदि आज तक की मेरी सेवा से आप प्रसन्न हैं तो मुझे मानव अवतार का वरदान दे दीजिए।" यमराज ने हाथ जोड़ कर ईश्वर से विनती की।
"कौन, वोह बूढ़े की बेटी लता? यमराज कहीं पगला तो नहीं गए हो?" ईश्वर इतने चौंक गए थे यमराज की बात सुनकर, कि क्षणभर के लिए अपना ऐश्वर्य भूल गए।
और फिर बोले,"अरे, वोह लता कैसी है, यह मैं जानता हूं। मैंने बनाया है उसे। दुखी हो जाओगे यमराज! उस का विचार निकाल दो मन से, और शांति का जीवन व्यतीत करो, जैसे आज तक करते आए हो।"
लेकिन यमराज ने भी ठान ली थी। वे तो ईश्वर के चरण पकड़ कर बैठ गए, और तब तक चरणों को पकड़े रखा, जब तक ईश्वर ने उन की बात नहीं मानी। आखिरकार थक हार के ईश्वर को यमराज की बात माननी ही पड़ी।
"ठीक है यमराज, जाओ। लेलो मानव अवतार का अनुभव!
लेकिन याद रहे, एक बार मृत्युलोक में जाओगे तो फिर कभी वापस नहीं आ पाओगे। मैं आप को फिर से स्वीकार नहीं करूंगा।"
"जो आज्ञा प्रभु!" खुश हो कर यमराज बोले।
ईश्वर ने आगे कहा, "मृत्युलोक के वस्त्रों की एक जेब में आप को कुछ मुद्राएं मिलेगी। उन मुद्रा के बिना मृत्युलोक में एक भी काम नहीं होता। संभाल के खर्च करना इन मुद्राओं को। थोड़ी सी ही हैं, जो आप की शुरुआत के लिए काम आएगी। आगे चल के, बाकी जीवन व्यतीत करने के लिए आप ही को काम-काज करके ऐसी और मुद्राएं कमानी होगी।"
इतना कहे के, आशीर्वाद देके ईश्वर ने यमराज को मृत्युलोक की और रवाना कर दिया।
यमराज जब मृत्युलोक में बसने के लिए आए, तो वे मृत्युलोक के सीधे सादे वस्त्र धारण किए हुए, एक सुंदर से युवान के रूप में आए। ईश्वर ने उन्हें लता जिस मोहल्ले में रहती थी, वहीं उतारा था। एकाध दिन मोहल्ले में इधर-उधर घूमने के बाद उन्हें जीवन में पहेली बार भूख का अनुभव हुआ। पहले तो उन्हें पता नहीं चला कि इसके लिए क्या किया जाए। लेकिन फिर उन्हें हलवाई की दुकान दिखी, और वहां से आती पकवानों की सुगंध से उन को मिठाई खाने का मन हुआ। दुकान पर जाके उन्हों ने कुछ मिठाई मांगी, तो हलवाई ने उन से पैसे मांगे।
यमराज को ईश्वर की बात याद आई, और उन्होंने जेब में हाथ डाल कर थोड़ी सी मुद्राएं दे कर मिठाई खरीद के खाई।
आज उन्हे भूख की व्यथा, और खाने की संतुष्टि का अनुभव हुआ, और यह भी ज्ञान हो गया, कि जल्दी ही उन्हें कुछ काम ढूंढना पड़ेगा, जिससे की वोह और मुद्राएं कमा सकें।
वे मोहल्ले में घूमते-फिरते लता को देखते रहते, और जितना उसे देखते उतना ही उस के प्रति और आकर्षित होते रहते। फिर एक दिन उन्हें पता चला कि लता के घर के बिलकुल सामने ही एक बूढ़े वैद्य की हाट, और हाट के पीछे एक छोटा सा घर भी था जो कि वोह वैद्य बड़े सस्ते में बेच रहा था, और निवृत्ति पाकर काशी जा बसना चाहता था।
यमराज को लगा कि अगर यह घर और हाट उसे मिल जाए तो बस, बात ही बन जाए।
बूढ़े वैद्य के साथ कुछ मोल-भाव कर के, अपने जेब की सारी मुद्राएं उन्होंने उस के सामने रख दी। उस वैद्य को भी अपनी मिल्कियत की कीमत एक साथ मिल रही थी इस लिए वह भी थोड़े से कम दाम लेने को तैयार हो गया। उसने यमराज को हाट में रखे कुछ औषध और जड़ी-बूटी से परिचित करवाया, और अपने आयुर्वेद की पोथी भी उन्हें दे दी, जिसमे उस के जीवनभर के वैद्य ज्ञान का निचोड़ था।
यमराज कुछ दिन के लिए तो हाट बंद रख के उन औषधों और पोथी में खोए रहे, और जब उन्हें लगा कि लोगों की बीमारी का उपचार करने को कुछ कुछ सक्षम हो गए हैं, तब साफ सफाई करके उन्होंने हाट खोली।
धीरे धीरे लोग उपचार के लिए उन के पास आने लगे, और उन की अच्छी खासी कमाई भी होने लगी। प्राण हरने वाले, कुछ हद तक प्राण बचाने वाले बन गए। लता का बूढ़ा बाप भी बीमार रहता था, तो वह भी यह युवा वैद्य की हाट पर पिता के लिए दवाइयां लेने आने लगी।
दोनों के बीच परिचय बढ़ा, और एक दिन यमराज ने उस के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया, जो कि लता ने स्वीकार लिया, और यमराज का घर संसार भी शुरू हो गया।
विवाह के एक साल बाद लता ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। लेकिन विवाह के कुछ ही महीनों ही बाद यमराज को पता चल गया कि लता ग़ज़ब की लड़ाकू थी। बेटे के साथ वह जितनी प्रेमल थी, पति के साथ इतनी ही कठोर। यमराज तो उस की एक दहाड़ से कांप जाते थे। एक बार तो झगड़ा करते करते लता ने उन्हें मारने के लिए मुसला उठा लिया।
यह देख के यमराज एक ही छलांग लगा कर घर से लपक निकले, और वो भागे, वो भागे, की मृत्युलोक से सीधे स्वर्गलोक में, ईश्वर के चरणों में जा गिरे!
"क्षमा प्रभु, क्षमा!" वे बोल पड़े। "बचा लो मुझे! बड़ी गलती हो गई मुझसे, कि आप की बात टाली मैंने! दुखी हो गया हूं उस स्त्री से मैं! मुझे बचा लो प्रभु!"
"अब तो कुछ नहीं हो सकता यमराज", ईश्वर ने कुछ गंभीर मुखमुद्र धारण कर के कहा।
"याद है, मैने आप से कहा था कि एक बार मृत्युलोक में जाओगे, तो वापस यमलोक नहीं आ पाओगे?"
"सब याद है प्रभु!" यमराज गिड़गिड़ा कर बोले। "बड़ी भूल हो गई मुझसे! मुझे फिर से स्वीकार लो! अब कभी ऐसी भूल नहीं होगी!"
सच पूछो तो ईश्वर भी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए थे यमराज को देख कर। इन दोएक वर्षो में उन्हें कोई ऐसा नहीं मिला था जो कि व्यवस्थित ढंग से प्राण हरने का कार्य कर सके। कभी कोई किसी की मृत्यु की घड़ी टाल देता था, तो कभी कोई गलत व्यक्ति के प्राण हर लाता था। पूरी सृष्टि का जन्म-मृत्यु का संतुलन बिगड़ा पड़ा था।
अब यमराज को देख कर ईश्वर ने मन में योजना बना ली, कि अब संसार में कोई महामारी फैला कर, यमराज द्वारा ढेर सारे प्राण हरवा कर यह बिगड़ा हुआ संतुलन ठीक किया जा सकता है।
उन्होंने जैसे उपकार करते हुए कहा, "ठीक है यमराज, इस बार पहेली गलती समझ के क्षमा कर देता हूं। याद रहे आगे चलके ऐसी भूल नहीं होनी चाहिए। अब भूल जाओ सब कुछ, और काम पे लग जाओ।"
फिर तो क्या था? यमराज अपने प्राण हरने के काम पर लग गए। लता अकेली बेटे को बड़ा करने लगी। उस के लाड़-प्यार ने बेटे को पूरी तरह बिगाड़ के रख दिया था। न तो वह कुछ पढ़ाई करता था, न ही कोई काम करता था। ऐसे ही कुछ वर्षों बाद, लता की मृत्यु की घड़ी तय हो गई, तो यमराज उस के भी प्राण हर के ले आए। लेकिन लता की मृत्यु के पश्चात, यमराज को बेटे की बड़ी चिंता होने लगी। वे जानते थे, कि लता के लाड़-प्यार के कारण न तो उन का बेटा पढ़ा था, और ना ही कुछ काम के योग्य था।
एक दिन उन्होंने बेटे को स्वप्न में दर्शन दिए।
"बेटा, कुछ काम कर लो। बिना काम किए मृत्युलोक में नहीं जी पाओगे।
एक काम करो, मेरी जो वैद्य वाली हाट है वोह खोलो। उस में जो मेरी पोथी है वह पढ़ो। 
पुराने औषध सब फैंक दो, और पोथी में बताई विधि के अनुसार जड़ी-बूटी ला के नए औषध तैयार कर के वैद्य का काम शुरू कर दो।
सामान्य बीमारियां तो थोड़ी बहुत गलत दवाई से भी ठीक हो ही जाएगी। लेकिन जिनकी बीमारी गंभीर है, उन बीमारों को जब तुम देखने जाओ, तो उन के सिरहाने की तरफ दृष्टि करना। अगर मुझे वहां बैठा पाओ तो समझ लेना कि उन की मृत्यु निश्चित है। उन का उपचार हाथ मत धरना। अगर मुझे वहां बैठा न पाओ तो उन का उपचार शुरू कर देना। क्योंकि उन की मृत्यु निश्चित नहीं हुई है, वह भी धीरे-धीरे ठीक हो ही जाएंगे।
इस से होगा यह कि एक पारखी वैद्य के तौर पे तुम्हारी ख्याति हो जाएगी"
पिता से इतना मशवरा पा कर लड़के की आंख खुल गई। उस ने बिलकुल वही किया जो उस के पिता ने स्वप्न में बताया था। धीरे-धीरे एक काबिल वैद्य के तौर पे उस की ख्याती चारों और फैल गई..... कि जिस बीमार का उपचार युवा वैद्य हाथ धरते हैं, वोह बीमार हमेशा ठीक हो ही जाता है, और जो मरने वाला होता है उस की मृत्यु के बारे में वैद्य एक ही दृष्ट में बता देते हैं।
ऐसे में हुआ यों कि एक दूर देश के राज्य की राजकुमारी बीमार हो गई। कईं वैद्य-हकीमों के उपचार से कोई फायदा नहीं हुआ। राजकुमारी की सेहत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी।
राजा ने ऐलान करवाया, कि जो भी राजकुमारी को ठीक कर पाएगा, उस का विवाह राजकुमारी से करवाया जाएगा, और आधा राज्य भी उसे पुरस्कार स्वरूप दिया जाएगा।
इसके बाद तो देश भर के वैद्य, हकीम, नीम-हकीम, टोना-टोटका करने वाले सब ने राज-महल जाके अपनी विद्या और अपने नसीब को परखा, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। जब राजा-रानी लगभग निराश हो चुके थे, तब एक दिन एक मंत्री समाचार लाया, कि दूर के एक प्रदेश में एक युवा वैद्य है, जिस का उपचार अमोघ है।
राजा ने यमराज के बेटे को तत्काल आने का संदेशा ले कर सैनिकों को भेजा। युवा वैद्य आया, और जैसे ही राजकुमारी के भवन में पैर रखा, तो उस ने अपने पिता को राजकुमारी के सिरहाने पाया, और उस का दिल डूब गया। उस ने राजकुमारी के साथ पूर्ण एकांत की विनती की, और अपने आप को को बेहोश राजकुमारी के साथ भवन में बंद कर दिया।
भवन के द्वार बंद होते ही उसने अपने पिता को प्रणाम किया, और फिर बोला, "बापू, आप राजकुमारी का सिरहाना छोड़ के चले जाओ। आप तो जानते हो कि यदि मैंने इसे बचा लिया तो मेरा भविष्य उज्जवल हो जाएगा।"
"जानता हूं बेटे", यमराज बोले। लेकिन किस के प्राण हरने हैं, और कब हरने हैं, यह निर्णय मेरा नहीं, ईश्वर का होता है। मैं तो सिर्फ उन की आज्ञा का पालन करता हूं। और ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन तो मैं नहीं कर सकता।"
बेटा लाख गिड़गिड़ाया, लेकिन बाप ने उस की एक नहीं सुनी। फिर बेटे ने पूछा, "कब की है राजकुमारी की मृत्यु की घड़ी?"
"आज से ठीक तीन दिन बाद, प्रातः चार बजे की।" पिता ने बताया।
"तो फिर बापू, आप अभी तो यहां से चले जाओ ना?" बेटा बोला "तीन दिन बाद, मृत्यु की घड़ी पर ही आना यहां। एक पिता होने के नाते आप इतना तो कर ही सकते हो ना मेरे लिए?"
"हां, इतना तो मैं कर ही सकता हूं", पिता ने कहा, "पर इससे तुम्हारा क्या फायदा होगा, बेटा? तीन दिन बाद तो मैं आ ही जाऊंगा, और इस के प्राण हर ही लूंगा।"
"वोह आप मुझ पर छोड़ दीजिए," बेटा बोला। "मैं कोई उपाय सोचना चाहता हूं, और आप के यहां रहते मैं कुछ सोच नहीं पाऊंगा।"
यमराज हंस पड़े, "बेटा, इस में तुम्हारा सोचा या मेरा सोचा कुछ नहीं होगा। होगा वही, जो ईश्वर ने निर्धारित किया है।
लेकिन तुम इतना कहे रहे हो, तो अभी के लिए मैं चला जाता हूं। मेरे जाते ही राजकुमारी की तबियत थोड़ी ठीक भी हो जाएगी। लेकिन याद रहे, इस बात को ले कर ज्यादा खुश मत होना, क्योंकि उस की मृत्यु की घड़ी पर जैसे ही मैं आऊंगा, वोह अचानक से मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी।"
बेटा कुछ नहीं बोला और उसने हाथ जोड़ कर पिता को प्रणाम किया, और यमराज वहां से लुप्त हो गए। यमराज के वहां से जाते ही राजकुमारी की सांसों की गति ठीक हो गई। उस के अब तक ठंडे पड़े हाथ पैरों में गर्मी आ गई। युवा वैद्य ने राजा और रानी को संदेशा भेजा की राजकुमारी थोड़ी ठीक है, और वह दोनों उसे कल सुबह देखने आ सकते हैं।
राजा-रानी जब बेटी को देखने आए, तब तो बेटी की आंख भी खुल चुकी थी,और युवा वैद्य उसे कुछ औषधि पीला रहा था। बेटी को बड़े दिनों बाद होश में पाकर राजा-रानी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन युवा वैद्य ने कहा कि तीन दिन तक सिर्फ माता-पिता ही मिल सकते हैं राजकुमारी से, और वह भी सिर्फ आधे घंटे के लिए..... बाकी उसे पूर्ण एकांत चाहिए राजकुमारी के साथ, उस के उपचार के लिए।
असल में उसे एकांत चाहिए था सोचने के लिए, कि किस तरह वोह अपने पिता को मात दे, और राजकुमारी की मृत्यु को टाल दे। ना तो वह रातों को सो पाता था, ना ही दिन को कुछ खा पाता था। पहरेदारों, सेवकों और राजा-रानी को लगता था कि युवा वैद्य राजुमारी की सेवा में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें ना तो अपने खान-पान का, और ना ही नींद का होश है।
मगर सच बात तो यह थी कि वह चिंता और सोच में डूबा हुआ था, और सिर झुकाए बस राजकुमारी के भवन में टहलता रहता था। तीन दिन तो जैसे तीन घड़ी में बीत गए! अभी तक उसे कोई उपाय नहीं सूझा था। राजकुमारी की निर्धारित मृत्यु की आखरी रात के साढ़े तीन बज चुके थे।
राजकुमारी शांति से सो रही थी, मगर यमराज के बेटे को पता था कि उस की मृत्यु की घड़ी में बस आधा घंटा बाकी था। तभी अचानक उसे एक युक्ति सुझी, और मारे खुशी के वोह लगभग नाच उठा। अब उसे इस आधे घंटे की एक-एक घड़ी एक-एक साल जितनी लंबी लगने लगी। काफी राह देखने के बाद सुबह के चार बज गए, और उसी क्षण में यमराज प्रकट हुए।
वह जैसे ही प्रकट हुए, बेटा पीछे मुड़ कर बोला, "मां! जल्दी आ जाओ! बापू आ गए!"
बस, इतना सुनते ही मारे डर के यमराज वोह भागे, वोह भागे, कि सीधे यमलोक पहुंच गए। यहां, राजकुमारी की मृत्यु की घड़ी टल गई। और मृत्यु की घड़ी टलते ही, उसकी सेहत बड़ी तेज़ी से ठीक होने लगी।
राजकुमारी के ठीक होते ही, यमकुमार से उस का ब्याह हो गया, और अपने वचन के अनुसार, राजा ने उसे अपने आधे राज्य से भी पुरस्कृत किया। अब यमकुमार इस पृथ्वी के एक छोटे से राज्य का राजा भी बन गया।

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