top of page

शेरशाह का न्याय

वृंदावनलाल वर्मा

वह नहा रही थी। ऋतु न गरमी की, न सर्दी की। इसलिए अपने आँगन में निश्चिंतता के साथ नहा रही थी। छोटे से घर की छोटी सी पौर के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए थे। घर की दीवारें ऊँची नहीं थीं। घर में कोई था नहीं, इसलिए वह मौज के साथ नहा रही थी।
सुंदरी थी, युवती, गोरी नारी। पानी के साथ हँसते-मुसकराते आमोदमग्न थी।
पठान बादशाह शेरशाह सूरी का शाहजादा इस्लामशाह झूमते हुए हाथी पर सवार, उसी घर के सामनेवाली सड़क से चला आ रहा था – कारचोबी, जरतार की अंबरी, सुनहला रुपहला हौदा, गहरे हरे रंग की चमकती हुई मखमल की चाँदनी, हौदे पर चमकते हुए मोतियों की झालरें चाँदनी के सुनहले बेलबूटों से दमक में होड़ लगानेवाली।
हौदे में शाहजादे के घुटने के पास ही पच्चीकारी के कामवाला सोने का पानदान भी रखा था। पानों पर सुनहले वर्क चढ़े हुए। कुछ उसके मुँह में भी थे। वर्क की एकाध चिंदी होंठों की मोटाई और कोनों पर थी। वह मजे में पान चबा रहा था, धीरे-धीरे मिठास ले रहा था।

Want to read more?

Subscribe to rachnakunj.com to keep reading this exclusive post.

bottom of page