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अधूरी ख्वाहिशें

Updated: Jan 11

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

माँ के दहेज में बोन चाइना का एक नाजुक टी सेट आया था। माँ उस टी सेट को किसी खजाने की तरह संजो कर रखती थीं, हमेशा सबसे सुरक्षित जगह पर। वह कभी उसे इस्तेमाल नहीं करतीं, लेकिन गर्व से कहतीं, "ये सेट बड़े घरों के लोगों का है। देखो, ये Teacups और saucers हैं, कप को प्लेट में रखकर चाय पी जाती है। ये Teapot है, इसमें गर्म पानी डालते हैं, ये Milk/cream jug है जिसमें गर्म दूध होता है, और ये Sugar pot जिसमें शुगर क्यूब्स रखे जाते हैं। और मेहमानों से शालीनता से पूछा जाता है - ‘चीनी कितने चम्मच लेंगे?’ यही होता है बड़े घरों के लोगों का अंदाज।"
टी सेट को माँ हमेशा अलमारी के ऊपरी हिस्से में रखतीं-एकदम अनछुआ। हर दिवाली उसे नीचे उतारतीं, हल्के हाथों से उसकी धूल झाड़तीं और फिर से सजाकर वापस उसी ऊँचाई पर रख देतीं।
माँ का सपना था कि एक दिन उनका खुद का घर होगा, जहाँ वह इस टी सेट का इस्तेमाल कर सकेंगी। उनकी कल्पनाओं में, बालकनी में पिता जी ओवरकोट में बैठे होंगे और माँ पशमीना ओढ़े, मुस्कुराते हुए उन्हें चाय पेश करेंगी, "चीनी कितनी लेंगे?"
लेकिन पिता जी की हर पोस्टिंग पर टी सेट ध्यान से पैक होकर चल पड़ता। गाँव के सरकारी क्वार्टर में तो बस जगह भर मिलती थी। डाइनिंग टेबल रखने की भी गुंजाइश कहाँ थी। हर बार पिता जी दिलासा देते, "अगली बार, घर बड़ा होगा तो टी सेट निकाल लेंगे।" पर अगली बार कभी आई नहीं।
माँ के दिल में यह कसक हमेशा रही। उन्होंने हमेशा एक ऐसा घर चाहा, जिसमें एक कोना उनका हो। बालकनी में पिता जी हों, रेडियो पर समाचार की धीमी आवाज हो, और वह बड़ी सादगी से पिता जी से पूछें, "चीनी कितनी लेंगे?"
समय बीत गया, माँ और पिता जी दोनों इस दुनिया से विदा हो गए। वह टी सेट आज भी अलमारी में अनछुआ रखा है। दिवाली की सफाई के दौरान जब उसकी धूल झाड़ी जाती है, तब यह एहसास होता है कि माँ का वह सपना हमेशा सपना ही रह गया, वह कभी पूछ न पाईं - "चीनी कितनी लेंगे?"
अधूरी ख्वाहिशें- हर इंसान की ज़िंदगी में एक सपना होता है, छोटी-छोटी हसरतें होती हैं, जिन्हें वह बड़े जतन से संजोता है। पर हर ख्वाहिश कहाँ पूरी होती है? कई ख्वाहिशें बस इंतजार करती रह जाती हैं।
आखिर में, जिंदगी की हकीकतें हमारे सपनों पर भारी पड़ ही जाती हैं। बस यही है... जिंदगी।

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