मुर्गे की सीख
- रवि कुमार
- Jun 21
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रवि कुमार
एक बड़ा व्यापारी था, गांव में उसके पास बहुत से मकान, पालतू पशु और कारखाने थे। एक दिन वह अपने परिवार सहित कारखानों, मकानों और पशुशालाओं आदि का मुआयना करने के लिए गांव में गया।
उसने अपनी एक पशुशाला भी देखी जहां एक गधा और एक बैल बंधे हुए थे। उसने देखा कि वे दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे हैं।
व्यापारी पशु-पक्षियों की बोली समझता था, इसलिए वह चुपचाप खड़ा होकर दोनों की बातें सुनने लगा।
बैल गधे से कह रहा था, “तू बड़ा ही भाग्यशाली है जो मालिक तेरा इतना ख्याल रखता है। खाने को दोनों समय जौ और पीने के लिए साफ पानी मिलता है। इतने आदर-सत्कार के बदले तुझसे केवल यह काम लिया जाता है कि कभी मालिक तेरी पीठ पर बैठकर कुछ दूर सफर कर लेता है। और तू जितना भाग्यवान है, मैं उतना ही अभागा हूं। मैं सवेरा होते ही पीठ पर हल लादकर जाता हूं। वहां दिन भर हलवाहे मुझे हल में जोतकर चलाते हैं।”
गधे ने यह सुनकर कहा, “ऐ भाई! तेरी बातों से लगता है कि सचमुच तुझे बड़ा कष्ट है। किंतु सच तो यह है कि तू यदि मेहनत करते-करते मर भी जाए, तो भी ये लोग तेरी दशा पर तरस नहीं खाएंगे। अत: तू एक काम कर, फिर तुझसे इतना काम नहीं लिया जाएगा और तू सुख से रहेगा।”
“ऐसा क्या करूं मित्र?” उत्सुकता से बैल ने पूछा।
बैल के पूछने पर गधे ने कहा, “तू झूठ-मूठ का बीमार पड़ जा। एक शाम को दाना-भूसा मत खा और अपने स्थान पर इस प्रकार लेट जा कि अब मरा कि तब मेरा।”
दूसरे दिन सुबह जब हलवाहा बैल को लेने के लिए पशुशाला में पहुंचा तो उसने देखा कि रात की लगाई सानी ज्यों-की-त्यों रखी है और बैल धरती पर पड़ा हांफ रहा है। उसकी आंखें बंद हैं और उसका पेट फूला हुआ है। हलवाहे ने समझा कि बैल बीमार हो गया है। यही सोचकर उसने उसे हल में न जोता। उसने व्यापारी को बैल की बिमारी की सुचना दी। व्यापारी यह सुनकर जान गया कि बैल ने गधे की शिक्षा पर अमल करके स्वयं को रोगी दिखाया है।
उसने हलवाहे से कहा, “आज गधे को हल में जोत लो।”
तब हलवाहे ने गधे को हल में जोतकर उससे सारा दिन काम लिया।
इधर, बैल दिन भर बड़े आराम से रहा। वह नांद की सारी सानी खा गया और गधे को दुआएं देता रहा। जब गधा गिरता-पड़ता खेत से आया तो बैल ने कहा, “भाई तुम्हारे उपदेश के कारण मुझे बड़ा सुख मिला।”
गधा थकान के कारण उत्तर न दे सका और आकर अपने स्थान पर गिर पड़ा। वह मन-ही-मन अपने को धिक्कारने लगा, ‘अभागे, तूने बैल को आराम पहुंचाने के लिए अपनी सुख-सुविधा में व्यवधान डाल लिया।’
दूसरे दिन व्यापारी रात्रि भोजन के पश्चात अपनी पत्नी के साथ गधे की प्रतिक्रिया जानने के लिए पशुशाला में जा बैठा और पशुओं की बातें सुनने लगा। गधे ने बैल से पूछा, “सुबह जब हलवाहा तुम्हारे लिए दाना-घास लाएगा, तो तुम क्या करोगे?”
“जैसा तुमने कहा है वैसा ही करूंगा।” बैल ने उत्तर दिया।
इस पर गधे ने कहा, “नहीं, ऐसा मत करना, वरना जान से जाओगे। शाम को लौटते समय हमारा स्वामी तुम्हारे हलवाहे से कह रहा था कि कल किसी कसाई और चर्मकार को बुला लाना और बैल जो बीमार हो गया है, उसका मांस और खाल बेच डालना। मैंने जो सुना था वह मित्रता के नाते बता दिया। अब तेरी इसी में भलाई है कि सुबह तेरे आगे चारा डाला जाए तो तू उसे जल्दी से उठकर खा लेना और स्वस्थ बन जाना, फिर हमारा स्वामी तुझे स्वस्थ देखकर तुझे मारने का इरादा छोड़ देगा।”
यह बात सुनकर बैल भयभीत होकर बोला, “भाई, ईश्वर तुझे सदा सुखी रखे। तेरे कारण मेरे प्राण बच गए। अब मैं वही करूंगा जैसा तुने कहा है।”
गधे और बैल की बातें सुनकर व्यापारी ठहाका लगाकर हंस पड़ा। उसकी स्त्री को इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ। वह पूछने लगी कि तुम अकारण ही क्यों हंस पड़े?
व्यापारी ने कहा, यह बात बताने को नहीं है, मैं सिर्फ यह कह सकता हूं कि मैं बैल और गधे की बातें सुनकर हंसा हूं।”
स्त्री ने कहा, “मुझे भी यह विद्या सिखाओ, जिससे तुम पशुओं की बोली समझ लेते हो।”
इस पर व्यापारी ने इनकार कर दिया।
स्त्री बोली, “आखिर तुम मुझे यह क्यों नहीं सिखाते?”
व्यापारी बोला, “अगर मैंने तुझे यह विद्या सिखाई तो मैं जीवित नहीं रहूंगा।”
स्त्री ने कहा, “तुम झूठ बोल रहे हो। क्या वह आदमी, जिसने तुम्हें यह विद्या सिखाई थी, सिखाने के बाद मर गया था? तुम कैसे मर जाओगे? कुछ भी हो, मैं तुमसे यह विद्या सीखकर ही रहूंगी। अगर तुम मुझे नहीं सिखाओगे, तो मैं प्राण त्याग दूंगी।”
यह कहकर वह व्यापारी की स्त्री घर में आ गई और अपनी कोठरी का दरवाजा बंद करके रात भर चिल्लाती रही और गाली-गलौज करती रही।
व्यापारी रात को तो किसी तरह सो गया, लेकिन दूसरे दिन भी वही हाल देखा तो उसने स्त्री को समझाया, “तू बेकार जिद्द करती है। यह विद्या तेरे सीखने योग्य नहीं है।”
स्त्री ने कहा , “जब तक तुम मुझे यह भेद नहीं बताओगे, मैं खाना-पीना छोड़े रहूंगी और इसी प्रकार चिल्लाती रहूंगी।”
इस पर व्यापारी तनिक क्रोधित हो उठा और बोला , “अरी मुर्ख! यदि मैं तेरी बात मान लूंगा तो तू विधवा हो जाएगी। मैं मर जाऊंगा।”
स्त्री ने कहा, “तुम जियो या मरो मेरी बला से, लेकिन मैं तुमसे यह सीखकर ही रहूंगी कि पशुओं की बोली कैसे समझी जाती है।”
व्यापारी ने जब देखा कि वह महामुर्खा अपना हठ छोड़ ही नहीं रही है, तो उसने अपने और ससुराल के रिश्तेदारों को बुलाया ताकि वे उस स्त्री को अनुचित हठ छोड़ने के लिए समझाएं। उन लोगों ने भी उस मुर्ख स्त्री को हर प्रकार समझाया, लेकिन वह अपनी जिद्द से न हटी। उसे इस बात की बिलकुल चिंता न थी कि उसका पति मर जाएगा।
छोटे बच्चे मां की दशा देखकर रोने लगे। व्यापारी की समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अपनी स्त्री को कैसे समझाए कि इस विद्या को सीखने का हठ ठीक नहीं है। वह अजीब दुविधा में था ‘अगर मैं बताता हूं, तो मेरी जान जाती है और नहीं बताता तो मेरी स्त्री रो-रोकर मर जाएगी।’
इसी उधेड़बुन में वह अपने घर के बाहर जा बैठा। तभी उसने देखा कि उसका कुत्ता, उसके मुर्गे को मुर्गियों के साथ विहार करते देखकर गुर्राने लगा है।
कुत्त्ने ने मुर्गे से कहा, “तुझे लज्जा नहीं आती कि आज के जैसे दुखदायी दिन भी तू मौज-मजा कर रहा है।”
मुर्गे ने कहा, “आज ऐसी क्या बात हो गई कि मैं आनन्द न करूं?”
कुत्ता बोला, “आज हमारे स्वामी अति चिंतातुर है। उसकी स्त्री की मति मारी गई है और वह उससे ऐसे भेद को पूछ रही है जिसे बताने से हमारा मालिक तुरंत ही मर जाएगा। लेकिन अब यदि वह उसे वह भेद नहीं बताएगा तो उसकी स्त्री रो-रोकर मर जाएगी। इसी से सारे लोग दुखी हैं और तेरे अतरिक्त कोई ऐसा नहीं है जो मौज-मजे की बात भी सोचे।”
मुर्गा बोला, “हमारा स्वामी मुर्ख है, जो एक ऐसी स्त्री का पति है जो उसके अधीन नहीं है। मेरी तो पचास मुर्गियां हैं और सब मेरे अधीन है। अगर स्वामी मेरे बताए अनुसार काम करे, तो उसका दुख अभी दूर हो जाएगा।”
कुत्ते ने पूछा, “वह क्या करे कि उस मुर्ख स्त्री की समझ वापस आ जाए?”
मुर्गे ने कहा, “हमारे स्वामी को चाहिए कि एक मजबूत डंडा लेकर उस कोठरी में जाए जहां उसकी स्त्री चीख और चिल्ला रही है। दरवाजा अंदर से बंद कर ले और स्त्री की जमकर पिटाई करे। कुछ देर बाद उसकी स्त्री अपना हठ छोड़ देगी।”
मुर्गे की बात सुनकर व्यापारी में जैसे नई चेतना आ गई। वह उठा और एक मोटा डंडा लेकर उस कोठरी में जा पहुंचा जिसमें बैठी उसकी स्त्री चीख-चिल्ला रही थी। दरवाजा अंदर से बंद करके व्यापारी ने स्त्री पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। कुछ देर चीख-पुकार करने पर भी जब स्त्री ने देखा कि डंडे पड़ते ही जा रहे हैं, तो वह घबरा उठी। वह पति के पैरों पर गिरकर कहने लगी, “अब हाथ रोक लो, अब मैं कभी ऐसी जिद्द नहीं करूंगी।”
इस पर व्यापारी ने हाथ रोक लिया और मुर्गे को मन-ही-मन धन्यवाद दिया जिसके सुझाव से उसकी पत्नी सीधे रास्ते पर आ गई थी।
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