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महेश कुमार केशरी

रोज की तरह आज भी किशून ऑटो लेकर स्टैंड़ पर पहुँचा था। दोपहर होने को हो आई थी। लेकिन, अब तक बोहनी नहीं हुई थी। 
रह-रहकर उसके दिमाग में आरती की कही बातें याद आ रही थीं। दोपहर से पहले किसी तरह आलू, प्याज, और कुछ हरी सब्जियाँ लेते आना। घर में सब्जी एक छँटाक नहीं है। गैस भी खत्म होने वाला है। एक-आध दिन चल जायेगा। उसके बाद लाना ही होगा। सोनू अब चार साल का हो गया। खाने-पीने में वैसे ही नखराहा है। 
गिन-चुनकर ही चीजें खाता है। सोनू को और कुछ नहीं तो कम-से-कम पाव भर दूध तो देना ही होगा। ग्वाला, दूध के पैसे के लिये तगादा करके गया है। महीना पूरा होने वाला है। 
 लगता है आज भी बोहनी नहीं होगी। पिछले चार दिनों में पिछली जमा पूँजी किशून खा गया था। आखिर, इधर कुछ दिनों से शहर के हालात कुछ ठीक नहीं हैं। किसी ने पैगंबर साहब के बारे में कुछ कह दिया है। राजधानी में बलवा मचा हुआ है। कई पुलिस वाले के सिर फूट गये हैं। एहतियातन श्रीरामपुर में भी पुलिस ने तीन-चार दिनों से निषेधाज्ञा लगा दी है। चार-पाँच आदमी एक साथ एक जगह जमा नहीं हो सकते। खैर, प्रशासन ने ठीक ही तो किया है। नहीं तो कहाँ-कहाँ और किस-किस के सिर फूटेंगें कोई नहीं जानता। पुलिस वाले भी बेचारे अफसरान का हुक्म बजातें हैं। 
अभी वो, अपने में खोया हुआ ये बातें सोच ही रहा था कि सामने से, जैनुल अपनी ऑटो किशुन के बगल में लाकर खड़ा करते हुए बोला-"और, किशून भैया, आज भी सवारी मिली या नहीं। कि खाली सड़क नापते ही आज का दिन भी निकलने  वाला है।"
"तुमने मेरी मुँह की बात छीन ली। यही सवाल मैं तुमसे पूछने वाला था कि तुमको भी कहीं आज सवारी मिली या नहीं?" किशून ने हाथ पर सुर्ती मलते हुए जैनुल से पूछा। 
" अरे, नहीं भईया जबसे राजधानी में बलबा मचा है। कोई घर से बाहर निकल कहाँ रहा है?  परसों एक ठो भाड़ा मिला था। उसके बाद से सूखा पड़ा है, भैया। लाओ थोड़ी खैनी मुझे भी दे दो। " जैनुल ऑटो साइड़ में लगाते हुए बोला।
"सुना है, राजधानी में तुम्हारे ससुर मकबूल साहब पर दंगाईयों ने रोड़े बाजी की है। और तुम्हारे ससुर का सिर फूट गया है। अब कैसी हालत है उनकी? कमबख्त दँगाईयों का कुछ दीन-ईमान तो होता नहीं। दोनों तरफ ऐसे सौ-पचास फसादी लोग ऐसे भरे पड़े हैं। जो आग में घी डालने का काम करते हैं। हुँह बेड़ा गर्क हो इन फसादियों का।  "किशून ने बुरा सा मुँह बनाया और सुर्ती, जैनुल की तरफ बढ़ा दिया। 
"अरे, कल की पैसेंजर ट्रेन से ससुर जी को ही तो देखने गया था। दँगाईयों ने सिर तो फोड़ा ही। किसी ने थाने में आग भी लगा दी। ससुर जी मरते-मरते बचे हैं।  यास्मीन को वहीं ससुर जी की सेवा में लगा रखा है। वो, मेरे साथ आने को तैयार नहीं हुई। आखिर, उसको किस मुँह से अपने साथ लाता। बाप बिस्तर पर पड़ा है। और, मैं उससे कैसे कहता कि मेरे साथ वापस लौट चलो? मेरी सास तो ये खबर सुनकर बेहोश हो गई थी। वो भी अस्पताल में हैं। आखिर, ससुर जी भी क्या करें? साहब का हुक्म तो बजाना ही पड़ता है। आखिर इस पापी पेट का सवाल जो है। हर आदमी दँगें में भी पेट के लिये ही बाहर निकलता है। हुक्मरान बँद ए.सी. कमरों में रिआया को आपस में कैसे लड़वाया जाये इसका रोड़-मैप बनाते हैं। और बलि का बकरा बनता है,  आम-आदमी। आखिर, क्या मिलता है? लोगों को धर्म के नाम पर लड़कर आज तक मैं ये समझ नहीं पाया। आम मेहनत कश आदमी,  हमारी तुम्हारी तरह बाल-बच्चों की जरूरतों के लिये सड़कों पर मारा-मारा फिरता है। सियासतदाँ अपनी-अपनी रोटी सेंकने में लगे रहते हैं। लोगों को आपस में भड़काते हैं। और लड़वाते है। नयी उम्र के, अनाड़ी किस्म के लोग उनके चक्कर में पड़ जाते हैं। और शहर जल उठता है। "
"भैया, इसी को तो राजनीति कहते हैं।" किशून ऑटो के लुकिंग ग्लास को पोंछते हुए बोला। 
तभी जैनुल ने लोगों की एक भीड़ को तलवार और बँदूकों के साथ अपनी ओर आते हुए देखा। उनके हाथों में कुछ धार्मिक झँड़े भी थें। और वो नारे लगाते हुए आ रहे थें।
जैनुल ने ऑटो को जल्दी से स्टार्ट किया। और किशून की ओर चिल्लाकर बोला- "भाग भाई किशून, भाग।  दँगाई आ रहें हैं।"
किशून ने भी ऑटो जैनुल की आवाज सुनकर उसी दिशा में भगा लिया। जिधर जैनुल भगा रहा था। काफी देर तक वे ऑटो को सड़क पर भगाते रहे। अब वो, दँगाईयों से दूर निकल आये थें। गली की मोड़ पर जहाँ गली खत्म होती थी। वहाँ किशून ने गाड़ी रोकी और जैनुल का शुक्रिया अदा किया- "भाई अगर तूने आज अवाज ना लगाई होती तो, आज मैं गया था काम से। "
जैनुल हँसते हुए बोला-"भाई, किशून अगर इंसान-इंसान के काम नहीं आये तो फिर लोगों का इंसानियत पर से भरोसा उठ जायेगा। और देख किशून, मेरी बात ध्यान  से सुन जब तक माहौल शाँत ना हो जाये ऑटो घर से बाहर मत निकालियो। अच्छा भाई चलता हूँ। अपना ख्याल रखना। जै राम जी की।"
किशून ने भी जैनुल को उसी आवाज में हिदायत दी, और जैनुल से बोला- "जैनुल भाई मामला शाँत होने तक,  तुम भी, ऑटो घर से बाहर मत निकालना। जिंदा रहे तो फिर मिंलेंगें। अच्छा भाई खुदा हाफिज।"
दोनों ऑटो आगे जाकर सड़क पर कहीं  गुम हो गये।

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