अमर सुहागन
- जगदीश तोमर
- Jun 20, 2024
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जगदीश तोमर
शा..लू शा...लू आवाज लगाती हुई मौसी बालकनी में आई बोली "अरे बेटा शालू! यहां बालकनी में क्या कर रही हो?
शालू "मौसी, ये आंटी कौन हैं, जब से आई हूँ देख रही हूँ। ये रोजाना इस वक्त बाहर जाती हैं। कोई जॉब करती है क्या? बालकनी से झांकते हुए मौसी "अच्छा अच्छा, ये मालिनी आंटी है। कोई जॉब नहीं करती रोजाना इस वक्त दफ्तर जाती हैं अपने पति के बारे में मालूम करने। शालू "पति के बारे में मालूम करने। क्यों मौसी?”
मौसी "बेटा उनके पति फौज में फौजी थे। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर उनकी ड्यूटी थी। सालों पहले लापता हुए उसके बाद आज तक उनकी कोई खबर नहीं। पता नहीं जिंदा भी हैं या मर गए।”
शालू “हो सकता है, मौसी इतने साल हो गए तो अब वे जिंदा भी ना हो।”
मौसी “बेटा, लेकिन यह बात मालिनी आंटी कभी नहीं मानती। वे इस बात से नाराज हो जाती हैं, कहती हैं कोई सबूत है तो बताओ। फौजी के अफसर भी कुछ बता नहीं पाते। इन्हें अरसा हो गया इसी तरह पूछताछ करते हुए। एक दिन हमें पार्क में मिली तो बातों बातों में हमने पूछा अब आपके पति मिले तो आप कैसे पहचान पाओगे। हंसते हुए बोली थी इतने सालों बाद मैं तो पहचान लूंगी। अब उनके काले घुंघराले बाल सफेद हो गए होंगे। फौजी की मूंछ भी सफेद होगी लेकिन एकदम कड़क चाल होगी। उनका चेहरा मेरे ससुर की कॉपी था। मुझे तो पहचानने में कोई दिक्कत ना होगी। एक साँस भर बोली वह मुझे नहीं पहचान पाएंगे शायद मेरा रंग पहले से काला और चेहरे पर चश्मा चढ़ गया है, मेरी काली काली बालों की लटे अब सफेद हो चुकी हैं। मेरी ये बड़ी सी लाल बिंदी और कमर तक लंबे बाल उन्हें बहुत पसंद थे। कहते-कहते उस दिन वे बहुत रोई थी लेकिन कुछ ही क्षण में अपने आंसू पोंछ खुद ही बोली की फौजी की पत्नी को आंसू बहाना शोभा नहीं देता। एक न एक दिन यह खबर जरूर आएगी कि वह जिंदा हैं और जल्द ही भारत आने वाले हैं। फिर वह धीरे-धीरे भारी कदमों से अपने घर चली गई। हम नम आंखों से उन्हें देखते रह गए।”
बेटा शालू, हमारे उन फौजियों की पत्नियाँ जिनके लौटने की कोई खबर नहीं वे अमर सुहागन हैं। वह अपने पति की यादों के सहारे ही जीवन गुजार लेती हैं। मालिनी आंटी 30 वर्ष की थी जब उनके पति लापता हुए। उसके बाद से इनके दिन सरकार और दफ्तरों के चक्कर लगाते ही गुजरे, लेकिन इन्हें आज भी इंतजार है।
शालू “सच मौसी हमें फौजियों के साथ उनके परिवार के बलिदान को नहीं भूलना चाहिए।” शालू की आंखें भी उन अमर सुहागिनों को नमन करने लगी।
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