एक कर्ज़ ऐसा भी...
- ऋतिक द्विवेदी
- Feb 20
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ऋतिक द्विवेदी
"डॉक्टर साहब, जब आप छुट्टी पर थे, तब कोई आदमी अपनी माँ को यहाँ भर्ती कराकर चला गया और आज तक वापस नहीं आया। समस्या ये है कि वह बुढ़िया भी अपने बारे में कुछ बता नहीं पा रही हैं। हमने बहुत कोशिश की, लेकिन भर्ती कराने वाले ने नाम और पता सब गलत दिया था। अब हम क्या करें? इतने दिन किसी को रख नहीं सकते और ऐसे छोड़ भी नहीं सकते,"रिसेप्शनिस्ट ने बताया, तो डॉक्टर को आश्चर्य के साथ-साथ गुस्सा भी आया।
"कितने दिन से भर्ती है और बेटे ने अब तक कोई खोज खबर नहीं ली? हद है! कैसा निर्दयी बेटा है जो अपनी माँ का साथ तब छोड़ गया जब उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। वैसे उस बूढ़ी माई ने कुछ बताया?" डॉक्टर ने कोट उतारते हुए पूछा।
"नहीं, डॉक्टर साहब। वो कुछ भी नहीं बोलतीं। हां, कभी-कभी किसी 'बबुआ' का नाम लेकर बुदबुदाती हैं, लेकिन हम समझ नहीं पाते।"
"बबुआ...?" ये नाम सुनते ही डॉक्टर के दिल में एक झुरझुरी सी फैल गई। कहीं ये वही तो नहीं?
वह लगभग दौड़ते हुए उस बुजुर्ग महिला के बेड की तरफ गया। सिकुड़ी हुई, कमजोर और बीमार हालत में लेटी बुढ़िया को देखते ही उसकी आँखें भर आईं।
"हाँ, ये वही थीं। मगर बहुत बीमार और जर्जर हो चुकी थीं।"
उसे अपने बचपन की याद आ गई। वह तीन-चार साल का ही था, जब अम्मा उसे अनाथालय से लाकर अपने घर में खिलाती-पिलाती थीं। वह रोज़ थोड़ी देर के लिए उसे अपने घर लातीं, मनपसंद चीज़ें बनाकर उसे खिलातीं, और कहतीं, "हमारा बबुआ बड़ा होकर डॉक्टर बनेगा, फिर जब हम बीमार पड़ेंगे तो दवाई देगा, है ना?"
"हां अम्मा, डाक्कल बनूंगा, औल दवाई दूंगा," वह तुतलाते हुए कहता। उसकी दुनिया सिर्फ अम्मा पर ही सिमट गई थी।
वक्त गुजरता गया। पढ़ाई में अव्वल रहने के कारण और शिक्षकों की मदद से वह मेडिकल कॉलेज में चुना गया और दूसरे शहर जाने लगा। अम्मा से बिछड़ते वक्त बहुत रोया, पर अम्मा ने समझाया, "यहां रहोगे तो डॉक्टर कैसे बनोगे? थोड़े समय की ही तो बात है, फिर हम साथ रहेंगे।"
लेकिन पढ़ाई और दूरियों के कारण उसका मिलना-जुलना कम होता गया। फिर एक दिन खबर आई कि अम्मा का बेटा उन्हें लेकर गाँव चला गया। उसने अम्मा को ढूंढने की बहुत कोशिश की, पर किसी को भी उनके गाँव का पता नहीं पता था।
"और आज, इतने सालों बाद, अम्मा इस हालत में यहां हैं?" वह बुढ़िया के पास जाकर धीरे से फुसफुसाया, "अम्मा, देखो, तुम्हारा बबुआ डॉक्टर बन गया है। अब तुम्हें दवाई दूंगा।"
उनकी आँखों में एक हल्की चमक आई, पर तुरंत गायब हो गई। "तुम कौन हो बच्चा?" वह बमुश्किल बुदबुदाईं। डॉक्टर की आँखों से आँसू बह निकले। यही अम्मा कभी कहती थीं, "मेरी याददाश्त इतनी अच्छी है कि लाखों की भीड़ में तुझे पहचान लूंगी।" पर आज उन्हें पहचानना भी मुश्किल हो रहा था।
"सर, आप रो रहे हैं? इन्हें आप जानते हैं?" रिसेप्शनिस्ट ने पूछा।
"हाँ, इन्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ। इनका मुझ पर बहुत बड़ा कर्ज़ है... ममता का कर्ज़।"
संयत होते हुए डॉक्टर ने कहा, "इनके डिस्चार्ज पेपर्स तैयार करो। अब ये मेरे साथ चलेंगी, अपने बबुआ के घर।"
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