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चांदी के खडुआ

आंसू भी रो पड़े

डॉ. जहान सिंह ‘जहान’

सेंगुर नदी की कछार में बसा फरीदपुर मल्लाहों का डेरा। एक हंसती-खाती खुशमिजाज बस्ती। मछली पकड़ना, तरबूज, ककड़ी, खीरा, खरबूजा की खेती करना इस बस्ती के लोगों का मुख्य व्यवसाय था।  ‘जग्गू’ मल्लाह इस गांव का सरपंच, पैसा पानी से मजबूत उसके पास दो नाव भी थी। घाटों का ठेका लेता था। उसकी अच्छी धाक थी। ‘सुखिया’ उसका बड़ा लड़का अच्छी कद काठी का नौजवान उम्र जवानी की नाजुक मोड़ पर। बाप को उसकी शादी की चिंता रहती थी। वह चाहता था कि ऐ काम जल्दी से जल्दी हो जाए। अगर कुछ ऊंच-नीच हो गया तो उसका नाम खराब होगा। रिश्ते तो कई आए पर बात नहीं बनी। नदी के उस पार गुल्ली ठेकेदार का परिवार रहता था। उसकी लड़की ‘लौगश्री’ शादी योग्य थी। दोनों परिवार एक दूसरे को जानते थे। बात बन गई और बड़े धूमधाम से शादी हो गई।
दुल्हन ‘लौगश्री’ बहुत सुंदर थी। श्यामल रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, तीखा नाक नक्श, छरहरा बदन, हिरनी सी चाल, सुडोल बाहें और मजबूत कंधे, चांदी के खडुआ से भरी-भरी सी पिंडलियाँ। क्या खूब नाव चलाती थी। कुछ ही दिनों में घाट पर, गांव में नदी के उस पार, हर तरफ उसकी खूबसूरती के चर्चे होने लगे। गांव का बनिया ‘मुरारी लाल’ एक सूदखोर, गांठ गिरवी का काम। बिना कुछ गहन धरी, बिना जमानत वह किसी को कुछ नहीं देता था। पैसे की मदद के लिए बस्ती वाले लोग उसके पास आते थे। और कुछ लेने के बदले ही वह कुछ देता था। बहुत लालची और स्वार्थी था। ‘लौगश्री’ को वह पहले दिन से गलत नजरों से देखने लगा था।
वक्त तेजी से भाग रहा था। ‘लौगश्री’ को दो बच्चे भी हो गए। 
एक साल गांव में भीषण बाढ़ आई। सब बस्ती डूबने लगी। उसका पति ‘सुखिया’ लोगों को बचा कर बच्चे, मवेशियों को नाव से पार कर रहा था। तेज बरसात थी, पानी के ऊंचे-ऊंचे थपेड़े नाव अचानक पलट गई। लोग तो निकल आए पर ‘सुखिया’ का पैर रस्सी में फंस गया। नाव डूबी और ‘सुखिया’ बच न सका। ‘लौगश्री’ पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो। खेत खलिहान सब तबाह हो गया। झोपड़ियाँ डूब कर तहस-नहस हो गई। खुशहाल बस्ती वीरान हो गई। दो जून रोटी की मुसीबत हो गई। ‘लौगश्री’ साहसी, खुद्दार औरत उसने अपनी कुब्बत पर भरोसा करके इस गांव में रहने का फैसला कर लिया। खेतों में मजदूरी करके बच्चे पालने लगी। धीरे-धीरे उसने अपनी झोपड़ी बना ली। वक्त ने कितने कष्ट दिए पर उसकी उम्मीद, हिम्मत और खूबसूरती नहीं टूटी। आज भी उतनी ही जिंदा दिल और उसके किरदार की मजबूती बरकरार थी। 
उसके छोटे बेटे की तबीयत कुछ दिनों से काफी खराब चल रही थी। बुखार उतारने का नाम नहीं ले रहा था। परेशान मां ओझा की सलाह, झाड़-फूंक, चूरण चटनी का हर इलाज कर चुकी थी। पर कोई आराम नहीं मिला।उसने कस्बे के डॉक्टर को दिखाने का इंतजाम किया। बच्चों को गोद में लेकर दो मील पैदल चलकर सड़क तक पहुंची। फिर तांगे पर कस्बे में पहुंची। शाम हो रही थी, डॉक्टर ने कहा यह मियादी बुखार है। एक सुई लगेगी वह शहर से मगंवानी पड़ेगी और ₹10 खर्च लगेगा। मां बेचारी गरीबी और लाचारी से परेशान पैसा कहां से लाये? उसने डॉक्टर साहब से कहा आप मेरे बच्चे को बचा लीजिए। मैं गांव जाकर कुछ ना कुछ करके आपको पैसे दे दूंगी। यह सब जल्दी ही करना होगा। जब तक पैसा नहीं होगा, सुई नहीं मिलेगी। जल्दी ले आओ, बच्चों की जान को खतरा है। ‘लौगश्री’ सारी भागी-भागी जैसे तैसे बस्ती पहुंची। रातभर सोचती रही क्या करें।
उसे मुरारीलाल सूदखोर की याद आई। शायद, मुझ पर दया करके पैसे दे दे। सीधी बनिया के पास पहुंची और पैसे मांगे। तो मुरारी लाल बोला कैसे दे दूं। क्या है तुम्हारे पास वापस करने के लिए। तुम हमें क्या दे सकती हो? ‘लौगश्री’ बोली मेरे पास क्या है देने को? मुरारी की लम्पट निगाहें उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगी। वह सहम गई और पल्लू संभालते हुए रूआसी बोली लाला जी मुरारी बोला तुम्हारे पास बहुत कुछ है देने को। ‘लौगश्री’ बोली मेरे पास यह चांदी के कक हैं। मैं आपको दे दूंगी। मुझे पैसे दे दें मेरे बच्चे की जान को खतरा है। और तुरंत इलाज होना है। वह खडुआ उतरने लगी। पर वह उतरे नहीं। मां ने बचपन में पहनाए थे, अब पैर मोटे हो गए थे। बोली मैं लौट कर दे दूंगी। लाला सूदखोर नहीं माना और लोहार बुलाकर खडुआ कटवाने का फैसला किया। लोहार ने काटने की कोशिश की पर पैर में चोट आ सकती थी। पैर कट सकता था। वह फिर आरी लेने गया। बहुत देर बाद आया और खडुआ काट दिए। फिर पैसे दिए। रात बीत चुकी थी। भूखी प्यासी माँ फिर कस्बे की तरफ भागी। 
डॉक्टर को पैसे देते हुए रोते-रोते कह रही थी। मेरे बच्चे को बचा लीजिए। डॉक्टर जड अवस्था में खड़ा आसमान निहार रहा था। बच्चा मरा हुआ कपड़े से ढका बेंच पर लेटा था। डॉक्टर ने कहा बहुत देर कर दी आपने पैसा लाने में। यह कहते हुए अपने कमरे में चला गया। ‘लौगश्री’ अचेत होकर गिर गई पर उसने अपने किरदार को नहीं गिरने दिया। 
इतनी लालच की इंसानियत से कितना दूर हो गए।
आज आंसू भी रोने को मजबूर हो गए।।

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2 comentarios


Invitado
13 may 2024

Characters are so natural and relatable

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Invitado
13 may 2024

आपकी कहानियों की यही खूबसूरती मुझे बहुत पसंद है कि आप विषम परिस्थितियों में भी अपने नायक/नायिका के चरित्र को गिरने नहीं देते हैं।आपके श्रीचरणों में विनम्र अभिवादन!!!

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