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दुर्घटना

महेश कुमार केशरी


गाड़ी स्टेशन पर रूकी, और मैं हडबड़ाते हुए स्टेशन के बाहर निकलकर अपने गंतव्य की ओर जाने के लिये मुड़ा।
तभी स्टेशन के बाहर किसी आटो वाले का एक्सीडेंट हो गया था। भीड़ में से कोई उसे अस्पताल तक ले जाने के लिये तैयार नहीं था। लोग पुलिस केस के डर से उस युवक को हाथ नहीं लगा रहे थें। भीड़ को चीरता हुआ जब मैं वहाँ पहुँचा तो वो युवक वहाँ पड़ा कराह रहा था। बाहर से घुटने छिले हुए दिख रहे थें। दु:ख की पीड़ा उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। आनन-फानन में मैनें एक आटो वाले को रुकवाया। और उस युवक को जिसको काफी गंभीर चोट आई थी, उठाकर लोगों की मदद से शाँति-निकेतन अस्पताल की तरफ भागा। इस घटना में मुझे एक चीज बड़ी अजीब लग रही थी, पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था कि मैं इस युवक को जानता हूँ। इस युवक को कहीं देखा है। लेकिन, कहाँ देखा है। ये याद नहीं आ रहा था। चूँकि उसकी हालत अभी काफी गंभीर थी। इसलिये उससे कुछ पूछना सरासर मुझे बेवकूफी ही लग रहा था। अस्पताल पहुँचकर सबसे पहले मैनें उसे अस्पताल में भर्ती करवाया। दो- दिनों तक उस युवक को होश नहीं आया था। दो दिनों तक लगातार मैं शाँति - निकेतन अस्पताल में ही रहा। तीसरे दिन उसको होश आया।
जब उसको होश आया तो मैनें पूछा - "कैसा लग रहा है तुम्हें? क्या तुम अब ठीक हो?"
युवक कुछ बोला नहीं। केवल मन- ही - मन मुस्कुरा रहा था।
"मैं पिछले दो- दिनों से तुमसे एक बात पूछना चाह रहा था। क्या हम इससे पहले भी कभी मिले हैं?"
उसने "हाँ" में सिर हिलाया।
फिर बोला - "आप कोई दस-एक साल पहले मुझसे मिले थें। उस समय मैं दसवीं में पढ़ता था। उस समय आपको ट्रेन पकड़नी थी। मेरे बोर्ड़ के एक्जाम चल रहें थें। लेकिन, मेरे पास फार्म भरने तक के पैसे भी नहीं थें। ये बात मैनें ऐसे ही आपको आटो में बताई थी। तब ये जानकर आप आटो से उतरते वक्त पाँच सौ रूपये का एक नोट मुझे देते गये थें । मैं मना करता रहा। लेकिन, आप नहीं माने थें। जल्दीबाजी में आप पैसे पकड़ाकर चले गये थें। आपने उस वक्त मेरा नाम भी पूछा था। मैं वही सुनील हूँ।"
अचानक मुझे भी दस साल पहले की वो घटना याद आ गई। अरे, तुम तो बहुत बड़े हो गये हो। घर में सब कैसे हैं? अब तो तुम्हारी मूछें भी निकल आयी हैं।
सुनील कोई प्रतिक्रिया ना देकर सीधे मेरे पैरों पर गिर पड़ा। उसकी आँखों में आँसू थें। वो कह रहा था। आप जरूर कोई फरिश्ते हैं। जब भी आते हैं। मेरी मदद करने के लिये ही आते हैं। आप ना होते तो मैं मर ही गया होता।
मैनें उसे गले लगाते हुए कहा। मैं सिर्फ एक इंसान हूँ। फरिश्ता-वरिश्ता कुछ भी नहीं हूँ। आखिर, आदमी ही आदमी के काम आता है। पैसे होने पर हर इंसान को एक - दूसरे की मदद करनी चाहिये।
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