नमन मां शारदे
- Rachnakunj .
- Jun 1, 2023
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मुक्ता शर्मा
होंठों पे तबस्सुम है आंखों में शरारे हैं।
छू लेना न ग़लती से हम यार अंगारे हैं।
अपने ही लहू से तो शादाब हुआ गुलशन।
अहसास-ए-निदामत में डूबी ये बहारें हैं।
इक बार मुस्कुरा कर कितनी ही दफा रोए।
इस तरह जिंदगी के अहसान उतारे हैं।
अपनी तो सभी चीजों से हमको मुहब्बत है।
कैसे ये भला दे दें ये दर्द हमारे हैं।
बेहिस हैं जो दुनिया में कोई बात नहीं उनकी।
मरना है उन्हीं का जो अहसास के मारे हैं।
मकबूल हुए हैं गर कोई राज़ नहीं इसमें।
कागज़ पे फकत दिल के जज़्बात उतारे हैं।
तुम साथ हो तो कैसा मझधार का डर हमदम।
कश्ती से नहीं अपनी अब दूर किनारे हैं।
फरियाद अगर लेकर जाएं तो कहां जाएं।
अंधों की निज़ामत में गूंगों की पुकारें हैं।
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