top of page

परिस्थितियां

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था। वहां रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।
रोज कोई बच्चा इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे। इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते, पर केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था।
एक दिन मैं उन खेलते हुए बच्चों के पास गया। मैंने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा, "बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"
इस पर वो बच्चा बोला, “बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे, और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा? इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ।
ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया।
आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया। 
अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरुर रहेगी। वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। परन्तु ऐसा न करते हुए उसने अपनी परिस्थितियों में ही समाधान ढूंढ लिया।
हम कितना रोते हैं? कभी अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए, कभी पड़ोसी की बडी कार, कभी पड़ोसन के गले का हार, कभी अपनी परीक्षा में आए कम नंबरों के लिए, कभी अंग्रेजी का कम ज्ञान होने के लिए, कभी व्यक्तित्व, कभी नौकरी की मार तो कभी धंधे में मार के लिए। यदि हम जीवन में शांति और सुख चैन चाहते हैं तो हमें अपनी इस संकीर्ण मानसिकता से बाहर एक न एक दिन आना ही पड़ेगा।
ये जीवन है, इसे ऐसे ही जीना पड़ता है। चील की ऊँची उड़ान देखकर चिड़िया कभी अवसाद में नहीं आती, वो अपने आस्तित्व में मस्त रहती है, मगर इंसान, इंसान की ऊँची उड़ान देखकर बहुत जल्दी चिंता में आ जाते हैं। तुलना से बचें और खुश रहें।
ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से कोई होड़।
मेरी अपनी हैं मंजिलें, मेरी अपनी ही दौड़।
परिस्थितियां कभी समस्या नहीं बनती, समस्या इस लिए बनती है, क्योंकि हमें उन परिस्थितियों से लड़ना नहीं आता।

******

تعليقات


bottom of page