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पहला केस

संगीता चावला

जूही कोर्ट में अपना केस लड़ रही थी। जज ने कहा, "आज के लिए कोर्ट स्थगित की जाती है।" ये सुनकर जूही ने वहां मौजूद लोगों की ओर देखा, जो उसकी अगली चाल जानने को उत्सुक थे। मीडिया के सवालों से बचने के लिए जूही तेजी से अपनी कार की ओर बढ़ गई।जूही के सामने विपक्ष के वकील और कोई नहीं, बल्कि उसका अपना भाई था। जूही ने वकालत में जो कुछ सीखा, अपने पिता और भाई से ही सीखा था। लेकिन उसके पिता, अरुण शर्मा, लड़कियों के वकील बनने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि लड़कियां ये प्रोफेशन ठीक से नहीं संभाल सकतीं।
इस केस का सीधा संबंध जूही के परिवार से था। उसके पिता ने उसके भाई को वकील बनाने के लिए अपनी जमीन गिरवी रख दी थी। लेकिन जिसने जमीन गिरवी रखी थी, उसने लालच में आकर जमीन वापस नहीं की और वहां बिजनेस कॉम्प्लेक्स बनाने की योजना बना ली। यहां तक कि उसने जूही के भाई को भी अपने पक्ष में मिला लिया।
अगले दिन कोर्ट में सुनवाई के दौरान जूही केस जीत गई। जब वह घर पहुंची तो उसने अपने पापा से कहा, "डैड, ये रही हमारी जमीन।" अरुण शर्मा ने जूही को गले से लगा लिया।
उन्होंने कहा, "मैं तुम्हें जमीन वापस मिलने की खुशी में नहीं, बल्कि तुम्हारी आखिरी दलील सुनकर गले लगा रहा हूं।"
जूही की आखिरी दलील थी: "जज साहब, उन बच्चों को भी सजा मिलनी चाहिए जो अपने माता-पिता की मेहनत और प्यार को भूलकर उन्हीं के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। जो उस डाल को काटने लगते हैं जिसने उन्हें फल-फूलने का मौका दिया।"
अरुण शर्मा ने जूही के साहस और समझदारी को सराहा, और उन्हें अपनी बेटी पर गर्व हुआ।

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