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ब्रह्मसमाज का त्याग

मुकेश ‘नादान’

बहुत समय बीतने के बाद नरेंद्र दक्षिणेश्वर नहीं आए। रामकृष्ण उन्हें देखने के लिए व्याकुल हो उठे। रविवार का दिन था, नरेंद्र से मिलने वे शहर की ओर चल दिए। मार्ग में उन्होंने सोचा, “आज रविवार है, नरेंद्र शायद घर पर न मिले, लेकिन शाम को कदाचित्‌ ब्रह्मसमाज की उपासना में भजन गाने जाए।'
ऐसा सोचकर रामकृष्ण शाम के समय ब्रह्मसमाज के उपासक भवन में जाकर नरेंद्र को खोजने लगे। आचार्य बेदी पर उन्हें नरेंद्र खड़ा दिखाई दिया। नरेंद्र व्याख्यान दे रहा था। सरल-स्वभावी रामकृष्ण बेदी की ओर बढ़ गए।
उपस्थित सज्जनों में से कई ने उन्हें पहचान लिया। उन्हें देखते ही कानाफूसी शुरू हो गई और लोग उचक-'उचककर उन्हें देखने लगे।
रामकृष्ण बेदी के निकट पहुँचकर अचानक भावाविष्ट हो गए। उन्हें इस अवस्था में देखने की लोगों में और भी उत्सुकता बढ़ी। उपासना-गृह में गड़बड़ होती देखकर संचालकों ने गैस की बालियाँ बुझा दीं। अँधेरा हो जाने के कारण जनता में मंदिर से निकलने के लिए हड़बड़ी मच गई।
नरेंद्र समझ गया था कि रामकृष्ण यहाँ मुझे देखने की लालसा में आए हैं। उसने अँधेरा होते ही उन्हें सँभाल लिया। रामकृष्ण की समाधि भंग हुई, तो वे किसी तरह उन्हें पिछले दरवाजे से बाहर निकाल लाए और गाड़ी में बैठाकर दक्षिणेश्वर पहुँचाया।
रामकृष्ण के साथ ब्रह्म सदस्यों की अशिष्टता तथा उनका अभद्र व्यवहार देखकर नरेंद्र को गहरा सदमा पहुँचा। उन्होंने उसी दिन ब्रह्मसमाज को त्याग दिया।

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