भविष्यवाणी
- Rachnakunj .
- Apr 27, 2023
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मुकेश ‘नादान’
यह घटना सन् 1877 की है, जब नरेंद्र अपने पिता के पास रायपुर चले आए थे। इस समय नरेंद्र पेट की बीमारी से पीडित थे। उन दिनों रायपुर में कोई शिक्षा सदन नहीं था, जिस कारण विश्वनाथ स्वयं अपने पुत्र को पढ़ाते थे। वहाँ रहकर नरेंद्र के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा था।
नरेंद्र के चरित्र का वास्तविक निर्माण रायपुर में हुआ। विश्वनाथ उन दिनों अवकाश पर थे, अतः अपने पुत्र को पूरा समय दे पाते थे। पाठय-पुस्तकों के अतिरिक्त नरेंद्र ने इतिहास, दर्शन तथा साहित्य संबंधी पुस्तकों को भी पढ़ना शुरू कर दिया था। उनकी स्मरणशक्ति तो तीव्र थी ही, उन्होंने शीघ ही बँगला साहित्य भी पढ़ लिया था। विश्वनाथ अपने पुत्र की इस विशेषता पर बड़े अचंभित होते थे।
उनके घर नित्य रायपुर के ज्ञानी-गुणी व्यक्तियों का ताँता लगा रहता था, जिनके साथ विश्वनाथ साहित्य, दर्शन आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहते थे। उस समय अधिकांशत: नरेंद्र भी पिता के साथ उपस्थित रहते थे और वाद-विवाद ध्यान से सुनते थे। कभी-कभी पिता के प्रोत्साहन पर नरेंद्र भी इस चर्चाओं में भाग लेते थे। उनके विचार सुनकर उपस्थित जन मुग्ध हो उठते थे।
विश्वनाथ के एक मित्र बंग साहित्य के प्रसिदृध लेखक थे। एक दिन वे साहित्य पर वाद-विवाद करने लगे, तो उन्होंने नरेंद्र को भी इस चर्चा में बुला लिया। नरेंद्र ने जब बंग साहित्य पर उनसे चर्चा आरंभ की और प्रसिद्ध लेखकों की तर्कसंगत आलोचना की, तो वे चकित रह गए और बोले, “तुम अवश्य ही बंग भाषा को गौरवान्वित करोगे।”
उनकी यह भविष्यवाणी आगे चलकर सत्य सिद्ध हुई।
नरेंद्र के किशोर मन पर अपने पिता के व्यक्तित्व का गंभीर प्रभाव पड़ा। विश्वनाथ नरेंद्र की उद्डंता पर उन्हें कभी डाँटते नहीं थे, बल्कि प्रेम से समझाकर उन्हें सुधारने का प्रयास करते थे।
नरेंद्र के पिता की इच्छा थी कि नरेंद्र की प्रतिभा का पूर्ण विकास हो और वह मात्र शिक्षा सदन के अध्ययन तक ही सीमित न रहे। विश्वनाथ की ज्ञान-गरिमा, उदारता तथा दूसरों के दुख में दुखी हो उठना, इन सभी बातों ने नरेंद्र पर गहरा प्रभाव डाला था।
दो वर्ष रायपुर में रहकर नरेंद्र जब वापस आए, तो उनमें शारीरिक तथा मानसिक रूप से बहुत परिवर्तन आ चुका था। उनका पुनः मेट्रोपोलिटन में दाखिला हुआ, तब उन्होंने नौवीं और दसवीं कक्षा की एक वर्ष में ही तैयारी की। यही नहीं, दोनों कक्षाओं की परीक्षा में उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त की। इससे न सिर्फ उनके कुटुंबीजन बल्कि अध्यापक भी बहुत प्रसन्न हुए।
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