सच्चा आशिर्वाद
- चन्द्र शेखर
- Apr 10
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चन्द्र शेखर
मोहन ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी और उसे एक सरकारी स्कूल में नौकरी भी मिल चुकी थी। बीते कुछ ही दिनों पहले एक बेहद सम्पन्न परिवार में उसकी शादी तय हुई थी। आज शाम जब वह अपने विद्यालय से लौटकर बच्चों की पेपर्स चेक करने में उलझा हुआ था कि अचानक उसके कमरे में उसके पिताजी और बड़े भाईसाहब के साथ उसके होने वाले ससुर ने भी एकसाथ प्रवेश किया।
आदतनुसार मोहन ने सबको प्रणाम किया। अभी कुछ ही देर वह कुर्सी पर बैठे थे कि उसके होने वाले ससुरजी ने कमरे में चारों तरफ नज़र दौड़ाते हुए कहा,“एसी लगाने के लिए ये दीवार ठीक रहेगी और इस दीवार पर एल ई डी, यहां अलमारी, ड्रेसिंग टेबल, दीवार पर इस रंग का पेंट, कमरे का पूरा साज-सज्जा तय कर पुनः ड्राइंग रूम में आ गए गहने, कपड़े, मिठाई, फ़्रिज, वाशिंग मशीन आदि-आदि का ब्रांड बताते हुए मोहन की तरफ मुखातिब होते हुए बोले - बेटा जिस ब्रांड की कार जिस कलर में चाहिए बता देना शोरूम चलकर वहीं ले दूंगा।”
होने वाले ससुर की ये बातें मोहन के स्वाभिमान को बड़ा ठेस पहुंचा रही थी। उसे लग रहा था जैसे उसकी खुद्दारी पर कोई हथौड़ा चला रहा हो।
अब तो उसके बर्दाश्त से बाहर हो गया। उसने एक कठोर निर्णय लिया और दो टूक कहा - आदरणीय मुझे ए सी, टी वी, कार लाने वाली दुल्हन नहीं चाहिए। मुझे मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली पत्नी चाहिए।
मेहनत की कमाई से मिलने वाली नून खिचड़ी में खुश रहने वाली सहधर्मिणी चाहिए। दामाद खरीदने वाला ससुराल नहीं चाहिए। यदि आपको और आपकी बेटी को अपने पति की कमाई और यही समान स्थिति में रहकर जीवन व्यतीत करना मंजूर हो तो आगे से अपना आशीर्वाद देने के लिए पधारिएगा, वरना आप किसी अन्य रिश्ते को देखिए। कहकर मोहन ने दोनों हाथों को जोड़कर ससुर जी को अपना निर्णय सुना दिया।
होनेवाले ससुरजी ने एकबारगी मोहन और फिर उसके पिताजी के साथ साथ बड़े भाईसाहब की ओर देखा। पिताजी ने भी मोहन की और देखकर मुस्कुरा कर कहा, “कहा था ना आपसे .... मेरे बच्चे स्वाभिमानी है और संस्कारी ...”
“मतलब ...”मोहन ने पिताजी की और देखकर पूछा।
बेटा जैसा कि तुम और हमारे परिवार में सभी दहेज विरोधी है। मगर भाईसाहब ने कहा ये उनका आशीर्वाद जो उपहार स्वरूप वो तुम्हे देना चाहते है। मुझे लगा जब तुम सामने से अपना निर्णय सुनाओगे तो भाईसाहब समझ पाएंगे। असल में आशिर्वाद क्या है और दहेज क्या है। भाईसाहब सच कहूं तो दुल्हन ही सबसे अनमोल उपहार होता है। एक पिता अपने कलेजे का टुकड़ा अपनी बेटी एक दूसरे परिवार को उनका वंश बढ़ाने, एक व्यक्ति को उसका जीवनसाथी, उसके सुख दुख की साथी देता है। ये अनमोल उपहार है जोकि एक कन्यादान करनेवाले पिता को ईश्वर की ओर से वरदान स्वरूप मिलता है। अब आप समझ ही गए होंगे कि आखिर हमें क्या आशिर्वाद और क्या दहेज चाहिए कयुं ... मुस्कुराते हुए मोहन के पिताजी बोले।
धन्य है भाईसाहब आप और आपके परिवार में ये संस्कार। ईश्वर करे ये स्वाभिमान और संस्कार ईश्वर हर लडके और उसके परिवार में सभी को दे। ताकि दुनिया में कभी किसी लड़की के जन्म पर एक पिता टेंशन में नहीं बल्कि खुशियों से झूमता हुआ कहे कि ईश्वर ने उसे कन्यादान करने का सौभाग्य दिया है। कहते हुए मोहन के पिताजी के गले लग गये और अपने हाथ आशिर्वाद स्वरूप मोहन के सिर पर रख दिए.....!!
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