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सच्चे रिश्ते

कर्माकर गुप्ता

पूनम की डोली जब ससुराल पहुँची, तो उसके मन में अनगिनत सपने और खुशियाँ थीं। उसका पति, आदित्य, एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता था और घर में उसके ससुर, सुदर्शन और ननद, माया, के अलावा कोई और सदस्य नहीं था। आदित्य का स्वभाव शांत और समझदार था, और जल्दी ही पूनम का परिवार के हर सदस्य के साथ अच्छा तालमेल हो गया। ससुर उसे बेटी की तरह मानते, और आदित्य उसे बेहद चाहते। इस तरह, पूनम सबकी प्यारी बहु बन गई।
सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन उसकी ननद माया उससे ज्यादा घुलमिल नहीं पाती थी। माया को पूनम की सुंदरता और पढ़ाई-लिखाई से हमेशा एक अजीब-सी जलन होती। माया जब भी मौका पाती, किसी न किसी बात पर पूनम को ताने देती। पूनम यह सब सुनकर भी मुस्कुरा देती और कभी जवाब नहीं देती। वह समझती थी कि सच्चे रिश्ते सहनशीलता और प्रेम से ही बनते हैं।
समय बीतता गया और माया की भी शादी हो गई। वह अपने ससुराल चली गई और वहां खुद का परिवार बसा लिया। इधर, पूनम के ससुर सुदर्शन की उम्र भी बढ़ रही थी और अब उन्हें अक्सर बीमारियाँ घेरने लगीं। उनकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ती जा रही थी। एक दिन सुदर्शन ने आदित्य को बुलाकर कहा, "बेटा, मैं सोचता हूँ कि गांव की ज़मीन बेच देते हैं। वहाँ तो अब कोई जाता नहीं, और इसे बेचने से मिलने वाले पैसे हमारे लिए काम आएँगे।" आदित्य ने सहमति जताते हुए कहा, "जैसा आप ठीक समझें, पिताजी।"
अगले ही दिन, सुदर्शन ने एक ब्रोकर से संपर्क किया और ज़मीन बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी। कुछ दिनों बाद ब्रोकर ने फोन करके बताया कि डील फाइनल हो चुकी है और जल्द ही पैसा मिल जाएगा। इस बात से परिवार में थोड़ी राहत महसूस हुई, क्योंकि अब पैसों की कमी का हल निकलने वाला था।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद, अचानक माया ने अपनी भाभी पूनम को ताने देते हुए कहा, "तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारे जैसी पढ़ी-लिखी और खूबसूरत बहू को इस परिवार में सब कुछ मिल जाएगा? ससुराल में कभी-कभी कुछ चीजें सहनी पड़ती हैं।" पूनम ने शांत स्वभाव से जवाब दिया, "माया, हर इंसान की अलग सोच होती है। मैं मानती हूँ कि हमें एक-दूसरे की आदतों और खामियों को समझकर स्वीकार करना चाहिए।"
समय का पहिया और तेजी से घूमने लगा। सुदर्शन की तबीयत अब इतनी बिगड़ चुकी थी कि डॉक्टरों ने कह दिया कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इस खबर से परिवार में उदासी छा गई, और पूनम ने अपने पति से कहा, "हमें जल्दी से ज़मीन का सौदा पूरा करवा लेना चाहिए, ताकि पिताजी के इलाज के लिए पैसों की कोई कमी न हो।"
आदित्य को यह विचार समझ में आया और उसने ब्रोकर से संपर्क किया, ताकि सौदा शीघ्रता से पूरा हो सके। इधर, जब माया को इस बारे में पता चला, तो उसने सोचा कि ज़मीन बेचने के बाद आदित्य और पूनम अधिक संपत्ति के मालिक बन जाएंगे, और हो सकता है कि वे परिवार की देखभाल में पीछे हट जाएं। यह सोच माया के मन में एक बार फिर ईर्ष्या का कारण बनी।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, माया को पूनम की सच्चाई का एहसास होने लगा। पूनम ने कभी भी दिखावे या कोई स्वार्थपूर्ण उद्देश्य नहीं रखा था। वह हमेशा सच्चे दिल से सबकी भलाई चाहती थी। धीरे-धीरे माया का नज़रिया बदलने लगा। उसे यह भी समझ में आया कि पूनम ने हर कठिनाई में इस परिवार का साथ दिया है और सच्ची रिश्तों की कद्र करती है।
कुछ समय बाद, पूनम और माया के बीच की कड़वाहट दूर हो गई। माया ने अपने पिछले व्यवहार के लिए पूनम से माफी माँगी। पूनम ने माया को गले लगाते हुए कहा, "असली रिश्ते तब ही मजबूत होते हैं जब हम एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं।"
इस तरह, परिवार में पुनः प्रेम, समझदारी और सामंजस्य का माहौल बन गया। पूनम की सहनशीलता और सच्चे प्रेम ने माया के दिल में भी उसके प्रति आदर भर दिया। सुदर्शन भी अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपनी बहू और बेटी को एक-दूसरे के प्रति इस प्रेम से संतुष्ट महसूस करने लगे।

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