top of page

स्वार्थी लोग

महेश कुमार केशरी

सिस्टर मरियम बच्चों को पढ़ा रही थीं -"बच्चों हमारे अलग-अलग धर्मों में जितने भी लार्ड हुए हैं। उन सबमें एक समानता रही है। कि उन्होंने हमेशा त्याग की भावना को अपनाया। दूसरों के लिये अपना जीवन तक दाँव पर लगा दिया। जैसे हमारे लार्ड शिवा हैं। आपने पढ़ा भी होगा। शिव जी ने खुद विष का पान किया। ताकि हमारी धरती बची रहे। राम जी ने भाई के लिये चौदह साल का वनवास कबूल लिया। प्रभु यीशू दूसरों की भलाई के लिये सलीब पर टँगे। पैगंबर साहब ने अपने सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दी। आप लोग जानते हैं। भगवान ऐसा क्यों करते हैं। ताकि, दुनिया में शाँति कायम रहे। लोग धरती पर आपसी भाईचारे और मेल मुहब्बत से रहें। शिव जी का हलाहल पी जाना। राम जी का बनवास चले जाना। जीसस का सलीब पर टँग जाना। पैगंबर साहब का अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देना। हमें सिखाता है कि हम भी त्याग करें। दूसरे को अगर हमारे होने से तकलीफ हो तो हम  भी वनवास चले जायें। ताकि अशाँति ना फैले। दूसरों का यदि भला हो तो हम सलीब पर भी टँग जायें। इसलिये हम इन्हें अपना आदर्श मानते हैं। इनके व्यक्तित्व के गुणों को हम अपने जीवन में उतारे। तभी हमारा उद्धार होगा। समाज का कल्याण होगा। विश्व का कल्याण होगा। "
जोसेफ अपने क्लास का सबसे होनहार बच्चा था। उसने सिस्टर मरियम से एक सवाल पूछा - "सिस्टर मरियम आप एक बात बतायें। जब इनका जीवन चरित्र इतना उत्कृष्ट है। तो फिर, देश में दँगें क्यों होते हैं? देश भर में जो आज हालात हैं। हमारा आधा देश आज जल रहा है। ये किसके कारण हो रहा है। क्या हमारे राजनेताओं ने लार्ड शिवा, लार्ड राम, या जीसस या पैगंबर साहब से कुछ नहीं सिखा। जो आज देश में इतनी अशाँति फैली हई है। क्या उन्होंने इनको नहीं पढ़ा? क्या उनके अंदर त्याग की भावना नहीं है? ये क्यों नहीं सीखते हमारे लार्ड से।"
सिस्टर मरियम ने जोसेफ के सिर पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहा - "बेटा हर कोई लार्ड शिवा, राम या जीसस, या पैगंबर नहीं हो सकता। इसके लिये त्याग की भावना आदमी के अंदर होनी चाहिये। राजनेताओं के अंदर अपना स्वार्थ है। लिप्सा है। भोग की वृति है। त्याग नहीं है। लालसा है। इनसे अच्छा जीवन तो मजदूरों का है। किसानों का है। जो दो रोटी अपनी मेहनत से कमाकर खाते हैं। अपना परिवार ही नहीं अपने देश के निर्माण में भी योगदान करते हैं। लार्ड शिवा, लार्ड राम या जीसस और पैगंबर के ये बहुत ही करीब के लोग हैं। इसका कारण ये है कि इनमें भी त्याग की  बहुत बड़ी इच्छा शक्ति होती है। ये परिवार से पहले देश के बारे में सोचते हैं। देश और समाज निर्माण में इनका योगदान बहुत बड़ा होता है। लेकिन हम इन्हें कभी सम्मानित नहीं करतें हैं। अपने समाज के किसी बड़े राजनेता को किसी आकेजन पर हम बुलाते हैं। और इसमें अपनी बड़ी शान समझते हैं।  दरअसल असली सम्मान इन मजदूरों और किसानों को मिलना चाहिये। जो कि हमारे युग निर्माता हैं। स्वार्थियों को हमें कभी सम्मानित नहीं करना चाहिये। जो हमें जात-पात, धर्म और मजहब में बाँटकर,  हममें फूट डालकर अपनी राजनीतिक महत्वकाँक्षाओं की पूर्ति में लगे रहते हैं। "

*****

Comments


bottom of page