हीरे का शिलबट्टा
- डॉ. जहान सिंह “जहान”
- Mar 17, 2024
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Updated: Mar 18, 2024
डॉ. जहांन सिंह ‘जहांन’
शोभाराम पन्ना जिले के किशनपुर गांव निवासी गणेश पठानी का एक बड़ा बेटा, जो पढ़ाई लिखाई में तो सामान्य पर खेलकूद में बहुत आगे था। लम्बा डील डौल, मजबूत कद काठी, कुश्ती लड़ने का शौकीन। उसका पहलवानी में बड़ा मन लगता था। कार्तिक पूर्णिमा को उजियारी देवी मंदिर के पास एक बड़ा मेला लगता था। शोभाराम जरूर हिस्सा लेता था। इस बार दंगल का उद्घाटन बड़े दरोगा मोहम्मद इसमाईल ने किया। कुश्ती के दौरान उसकी निगाह शोभाराम पर पड़ी। कुश्ती जीतने के बाद शोभाराम अपना इनाम लेने दरोगा जी के पास गया। दरोगा जी ने पूछा पुलिस में नौकरी करोगे। शोभाराम को जैसे अंधे को दो आंखें मिल गई। उसने तुरंत हां कर दिया। पुलिस में भर्ती कर उसे ट्रेनिंग पर भेज दिया।
उसने बड़े अच्छे ढंग से नौकरी की। शोभाराम हेड कांस्टेबल के पद से सेवानिवृत हो गए। काफी पैसा मिला। अंग्रेजी हुकूमत थी, बड़ा मान सम्मान होता था। शहर में मकान बनाकर अपने परिवार के साथ बड़े आराम से रह रहा था। वह इतने पैसा का क्या करें? लोगों की सलाह के सिलसिले चालू हो गए। किसी ने मकान, दुकान, खेत, होटल खोलने की सलाह दी। पर शोभाराम को हीरे तलाशने का बड़ा शौकीन था। पन्ना स्टेंट में यह काम काफी प्रचलित था। उसने एक खदान खरीदी ली। और अपने मजदूर लगवा कर काम चालू कर दिया। 15 दिन 3 महीने 1 साल बीत गया। शोभाराम के हाथ कुछ न लगा। पैसा खत्म हो रहा था। घर चलाना मुश्किल होने लगा। तंगहाली में मजदूर बन कर खदानों में काम करने लगा। उसकी पत्नी झुमकी बाई को गाने बजाने का शौक था। ठलती उम्र में भी खूबसूरती ने साथ नहीं छोड़ा। अच्छा नाक नक्सा छरहेरा बदन। चाल ढाल में नई युवतियां उसके सामने फीकी लगती थी। गाने की महफिल लगती थी। क्षेत्र के बड़े अधिकारी को पता चला तो उसने गाना सुनने की इच्छा जाहिर की। शाम को झुमकी ठेकेदारिन की महफिल में आने लगा। और धीरे-धीरे उसे पसंद करने लगा। घर के सदस्य जैसा हो गया। एक दिन शोभाराम ने अंग्रेज़ अधिकारी को खाने की दावत दी। सोचा अगर प्रसन्न हो गया तो कई काम दे देगा या कहीं नौकरी लगवा देगा।
एक रात जब खाने की दावत पर झुमकी शिलबट्टे पर मसाला पीस रही थी। अंग्रेज उसका बदन निहारते निहारते अचानक उसकी निगाह शिलबट्टे पर पड़ी। जिसमें कहीं-कहीं जुगनू सी चमक दिख रही थी। उसे यह मसाला पीसने का तरीका बहुत अच्छा लगा और शिलबट्टा तो उसे पसंद आ गया। वह सोचने लगा। इसे विलायत ले जाएंगे और अपनी पत्नी को भेंट करेगा। बतायेगा कि भारत में खाने का मसाला कैसे बनता है। उसने शोभाराम से अपनी इच्छा जाहिर की और खरीदने के लिए कहां। पहले कीमत ₹2 फिर ₹5 और फिर ₹10। शोभाराम का माथा ठनका। उस समय ₹10 पूरे 1 महीने का वेतन होता था। ऐसा क्या है इस शिलबट्टे में। नहीं साहब यह झुमकी को बहुत प्यारा है। अपने से जुदा नहीं करेगी। साहब ने उसकी कीमत ₹100 लगा दी। तो शोभाराम का शक और मजबूत हो गया।
कोई तो खास बात है इस शिलबट्टे में। भोजन करने के बाद साहब ने कहा कि जब तुम्हारा मन बेचने का हो तो बताना। झुमकी और शोभाराम रात भर सो न सके। भोर पहर में झुमकी ठेकेदारिन को सपने में रौबीला, गठीला बदन मुस्कुराता हुआ अंग्रेज कुछ मांग रहा था। जैसे वो उससे प्यार करने लगा हो। झुमकी भी कुछ बेचैन सी रहने लगी। शोभाराम सुबह होते ही पन्ना की सबसे बड़ी हीरा खदान के दफ्तर गया और उस शिलबट्टे की जांच करवाई। पता चला कि उसमें एक बहुत बड़ा हीरा है। जो छोटे-छोटे सुराखों से चमक फैकता है। यह बहुत कीमती है। दोनों परेशान थे कि अब इसका क्या किया जाए। अंग्रेज साहब अच्छा आदमी था। उसने कंपनी द्वारा शोभाराम को उचित मूल्य दिलवाया। शोभाराम फिर संपन्न हो गया। अपनी खदान वापस ले ली।
पर एक हीरा मिला तो एक हीरा खो गया। हीरा रखना जुर्म था और बहुत बड़ी सजा मिलती। ठेकेदारिन, शोभाराम को बहुत प्यार करती थी। उसे दुखी नहीं देख सकती थी। झुमकी ठेकेदारिन अंग्रेजी साहब के साथ विलायत चली गई।
एक पत्र छोड़ गई।
मेरे प्रिय शोभाराम,
मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं। तुम्हें गरीब और दुखी नहीं देख सकती थी। तुम्हारे लिए मैंने यह कुर्बानी दी है। वरना वह हीरा भी छिन जाता और सजा भी मिलती। हो सके तो मुझे माफ कर देना।
मैं जब तक जिंदा हूं। दिल से, तुम्हारी ही रहूंगी।
तुम्हारी झुमकी
ठेकेदारिन
प्यार तेरा अनमोल पिया,
सब कुछ तुझ पर बारी।
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