top of page
OUR BLOGS


रसीद का आखिरी नाम
रेखा जौहरी दिल्ली की गलियों में सुबह की हल्की रोशनी फैली थी। सड़क किनारे रसीद का छोले कुलचे वाला ठेला था, जिस पर टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखा था – “रसीद का छोले कुलचे”। रसीद के पास अपनी मां का दिया ताबीज, बाप की पुरानी साइकिल और ठेले का जंग लगा चम्मच ही उसकी पूरी दुनिया थी। रसीद कम बोलता था, लेकिन उसकी आँखों में अनगिनत कहानियाँ छिपी थीं। गली के बच्चे उसे ‘रसीद भाई’ कहते, कभी वो उन्हें मुफ्त में कुलचे देता, कभी कहानी सुनाता। हर रोज दोपहर को एक बूढ़ा आदमी वहाँ से गुजरता, साफ
रेखा जौहरी
Dec 53 min read
bottom of page