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माँ की पीड़ा
राजीव कुमार एक ठंडी शाम थी। हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान में घने बादल छाए हुए थे। छत पर अकेली बैठी सुलोचना बुत बनी हुई थी, उसकी आँखें कहीं दूर टिकी थीं। बारिश कब से शुरू हो चुकी थी, पर उसे इसका कोई अहसास नहीं था। उसका बदन थर-थर काँप रहा था, मगर मानो वो खुद को महसूस ही नहीं कर रही थी। ठंडी हवाएँ उसे कंपा रही थीं, लेकिन वह अपने विचारों में गुम थी। अचानक उसे अपने नाम की पुकार सुनाई दी। "कहाँ हो सुलोचना? पूरा घर छान मारा, और तुम यहाँ छत पर भीग रही हो! जल्दी नीचे चलो, कपड़े ब
राजीव कुमार
Nov 252 min read