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नफ़रत

डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव

एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनों की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।
इस बीच एक दिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसके साथ दुर्घटना हो गयी। दुर्घटना में उसने अपनी दोनों आँखें खो दी। लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनों की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही।
समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। वह बदसूरत हो गई। लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा।
एक दिन उस लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था। वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था। उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा। तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा, “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? इतने साल तो तुम्हारी पत्नी तुम्हारी मदद किया करती थी।”
पति ने जवाब दिया, “दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ। मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। क्योंकि यदि मेरी पत्नी को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता।
इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया। वह बहुत अच्छी पत्नी थी। मैं बस उसे खुश रखना चाहता था।”
सीख : सुखी जीवन का यही सूत्र है कि हमें एक दूसरे की कमियो के प्रति आखें बंद कर लेनी चाहिए और उन कमियों को नजरन्दाज कर देना चाहिए।

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