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अकेली लड़की

सूरजभान

पिछले शनिवार की रात थी, करीब 11:30 बज रहे थे। मैं ऑफिस से निकला और पार्किंग से अपनी बाइक लेकर अपने घर की ओर जा रहा था।
जाड़े का मौसम था, सड़कें बिल्कुल सुनसान थीं। मैं तेजी से अपने घर की तरफ जा रहा था परंतु कुछ दूर जाने के बाद मैंने देखा कि एक सुन्दर लड़की सड़क के किनारे खड़ी है और मदद के लिए हाथ दे रही है। मैंने तुरंत बाइक रोकी, लेकिन मेरे रुकने से एक रिक्शा जो उसी तरफ आ रहा था, वह आगे बढ़ गया।
मैंने कहा, "जी कहिए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"
लड़की ने ऊँचे स्वर में बोली, "मैंने ऑटो को हाथ दिया था, और आपके रुकने की वजह से वह चला गया। बड़ी मुश्किल से एक ऑटो आया था।"
उनकी यह बात सुनकर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। इतनी रात को एक अकेली महिला को मेरे कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। मैंने उनसे अपनी गलती के लिए उनसे माफी मांगी और पूछा कि अगर आप बुरा न माने तो "मैं आपको  छोड़ देता हूँ" लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया।
मैंने फिर कहा, देखिए रात बहुत हो चुकी है, सड़कें सुनसान हैं। आपको अकेला छोड़ना सही नहीं है। मैं आपको छोड़ देता हूं "लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं थी। मैंने मन में सोचा, "क्या करूं? यहां रुकना बेकार है। लेकिन अगर इसे कुछ हो गया, तो मैं खुद को कभी भी माफ नहीं कर पाऊंगा।"
मैंने उनसे कहा, "आप ऑटो का इंतजार करें। मैं यहीं दूर खड़ा रहूंगा। अगर मदद की जरूरत हो, तो मुझे बता दीजिए।" इतना कहने के बाद मैं कुछ दूरी पर खडा था।
करीब आधा घंटा बीत गया। ठंड बढ़ती जा रही थी, और कोई ऑटो नहीं आया। मैंने फिर से उनसे लिफ्ट के लिए पूछा, लेकिन उन्होंने फिर से मना कर दिया।
उनकी हिचकिचाहट देखकर मैंने सोचा कि उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा है। मैंने पर्स से अपना आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस निकालते हुए कहा, "देखिए, यह मेरा पहचान पत्र है। इसे आप अपने पास रख सकती हैं। मैं आपको सीधे आपके घर तक छोड़ दूंगा। मेरे लिए आप मेरी बहन जैसी हैं।"
मेरे इन शब्दों ने शायद उन्हें कुछ राहत दी। उन्होंने थोड़ी मुस्कान के साथ कहा, "ठीक है, लेकिन मैं सिर्फ वहाँ तक चलूँगी, जहां तक मुझे सुरक्षित लगे।"
वह मेरी बाइक पर बैठ गई और हम चल पड़े। रास्ते में उन्होंने कुछ नहीं कहा। करीब 40 किलोमीटर चलने के बाद उन्होंने अचानक कहा, "बस, यहीं रोक दीजिए।"
वह उतरकर एक गली की ओर दौड़ पड़ी और चंद पलों में मेरी आंखों से ओझल हो गई। मन को तसल्ली हुई कि वह सुरक्षित घर पहुंच गई। और मैं घर की ओर निकला
जब मैं घर पहुंचा, तो रात के तीन बज चुके थे। पापा गुस्से में थे, मम्मी और बहन भी जाग रही थी। मैंने बिना कुछ बताए सीधे अपने कमरे की ओर चल दिया और फिर सुबह 11 बजे बहन ने आकर मुझे जगाया, "भैया, नीचे कोई लड़की आई है। मैंने देखा एक ल़डकी है साथ में उसके मम्मी-पापा भी हैं। क्या कुछ गड़बड़ कर दी क्या मैंने ?"
आधे सोते हुए मैं नीचे गया। वहां वही लड़की खड़ी थी, जिनकी मैंने कल रात में मदद की थी। उनके साथ उनके माता-पिता भी थे।
लड़की मुस्कुराई और बोली, "भैया, आपने मेरी इतनी मदद की, लेकिन मैं आपको धन्यवाद भी नहीं कह सकी। यह रहा आपका आधार कार्ड और पर्स। आप जैसे लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं।" फिर उन्होंने मुझे thank you बोला उसके माता-पिता ने भी मुझे ढेरों आशीर्वाद दिए और अपने घर आने का निमंत्रण देकर चले गए। उनके जाते ही पापा ने मुझे सीने से लगा लिया और कहा, "मुझे गर्व है कि तुम मेरे बेटे हो। लेकिन रात को यह बात बता दी होती, तो बेवजह चिंता नहीं होती। "मैंने कहा, "पापा, आपकी चिंता हमेशा मेरी भलाई के लिए ही होती है।"पापा, मम्मी और बहन ने मुझे फिर गले लगा लिया।
उस दिन पापा की एक बात ने मेरी सोच बदल दी "अकेली लड़की मौका नहीं, जिम्मेदारी होती है।"

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