चौथा मित्र
- डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव
- Nov 4
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डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव
एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन पढ़े-लिखे व विद्वान थे परंतु चौथा इतना विद्वान नहीं था, पर हर बात की सामान्य जानकारी रखता था। वह काफी व्यावहारिक था और अपने अच्छे-बुरे की समझ रखता था।
एक दिन तीनों मित्रों ने तय किया कि उन्हें अपने ज्ञान के बल पर धन कमाना चाहिए। वे अपनी किस्मत आजमाने के लिए दूसरे देश के लिए चल पड़े। वे चौथे दोस्त को साथ नहीं ले जाना चाहते थे क्योंकि वह अधिक पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन बचपन का दोस्त होने के नाते उसे भी साथ ले लिया।
चारों ने यात्रा आरंभ की। रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। एक जगह पेड़ के नीचे हड्डियों का ढेर दिखाई दिया। एक मित्र बोला- विज्ञान की जानकारी को परखने का अच्छा अवसर है। ये तो किसी मरे हुए जानवर की हड्डियाँ लगती हैं चलो इसे फिर से जिंदा करने की कोशिश करते हैं। पहले मित्र ने कहा-‘मुझे हड्डियाँ जोड़ कर ढाँचा बनाना आता है। उसने कुछ मंत्र पढ़े और हड्डियों का कंकाल बन गया। दूसरे मित्र ने कुछ मंत्र पढ़े तो कंकाल पर खाल आ गई और शरीर में खून दौड़ने लगा। अब वह एक निर्जीव शेर दिखता था। अपनी उपलब्धि पर प्रसन्न होते हुए तीसरा मित्र बोला कि वह उस बेजान शरीर में प्राण डाल देगा। चौथा मित्र चिल्लाया रुको! ये तो शेर लगता है। जिंदा होते ही हम सबको मार कर खा जाएगा। तीनों मित्रों ने चौथे मित्र की बात पर ध्यान नहीं दिया और उसको मुर्ख बताकर उस शेर को जिंदा करने लगे।
तब चौथा मित्र बोला- बस एक क्षण रुकना- कह कर वह पास के ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया।
अपने मित्र की बात अनसुनी कर तीसरे मित्र ने ज्यों ही मंत्र पढ़े शेर के प्राण लौट आए। वह भयंकर शेर उन्हें देख कर दहाड़ने लगा।
उसने पल भर में झपट्टा मारा और सभी मित्रों को मार दिया। जब शेर चला गया तो चौथा मित्र पेड़ से उतरा। उसे अपने मृत मित्रों को देख बहुत अफसोस हुआ। उदास व दुखी मन से वहअकेला घर लौट गया।
दोस्तों व्यक्ति के भीतर विशेष योग्यता के साथ साथ कुछ सामान्य जानकारीयों का होना भी आवश्यक है।
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