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तृप्त हो जाती

अशोक कुमार बाजपेई


बचपन में मां कहती थी
मघा के बरसे मां के परसे
धरती तृप्त हो जाती है
और पुत्र की भूख भी।
तब मां माघ नक्षत्र भादव मास में
बेटों को बिठाकर
खीर पूरी खिलाती थी
बेटों को सरपोट सरपोट खाते देख
मां बलि बलि जाती थी
तृप्त हो जाती थी।

तब कई दिन लगातार पानी बरसने से
ताल तलैया खेत सब भर जाते थे
नदी बलखाती उफनाती थी
तब धरती की प्यास बुझ जाती थी।

अब मघा में, न धरती तृप्त होती है ना भूख
क्योंकि मघा नक्षत्र में अब दिखती है धूप,
और आज की मम्मी ये जानती या नहीं जानती?
मघा के बरसे अम्मा के परसे का मतलब क्या होता।।

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