बरगद का पेड़
- Rachnakunj .
- Jul 4, 2023
- 2 min read
Updated: Jul 4, 2023
अनजान
मैं उस हरकारे के बच्चों को भी उसी
समय से देख रहा था
जिस समय से मैं उस बरगद
के पेड़ को देखा करता था
पेड़ के आसपास और भी लत्तरें थींl
पेड़ की फुनगियों के बीच से
कई कोंपलें फूटीं और
पेड़ की कोपलों ने धीरे-धीरे
बड़ा होना शुरू कियाl
हरकारे के चार बच्चे थेंl
हरकारे के बच्चे जमींदारों
के यहाँ काम करते थें
मैं देख रहा था पेड़ को और
उसके साथ खिले कोंपलों को बढ़तेl
हरकारे के बच्चों और
पेंड़ को मैनें इंच-इंच बढ़ते देखा ..
इस बीच पेड़ के आसपास
का समय भी बीतता रहाl
कोंपलें भी धीरे-धीरे लत्तरों में बदलीं
फिर लतरें तना बन गईं..!
और, पेड़ के आस-पास खड़े
हो गये वो पेंड़ के रक्षार्थ..!
साथ-साथ जन्मी और भी कोंपलें
पहले लत्तर बनीं फिर तना
और फिर हरकारे के बच्चों की तरह
वो भी फैल गईं अनंत दिशाओं में ..!
लत्तरों ने बारिश झेला, धूप भी
लत्तरें, ठिठुरती रहीं ठंड में
तब भी साथ-साथ थींl
सुख-दु:ख साथ-साथ महसूसा!
लत्तरों ने वसंत देखा पतझड़ भी!
बड़े होने के बाद हरकारे के बच्चों
ने कभी नहीं पूछा अपने सगे भाइयों से उनका हाल !
भाईयों ने फिर कभी आँगन
में साथ बैठकर घूप या गर्मी पर बात नहीं की ..
समय बीतता रहा
ऋतुएँ, बदलती रहीं
लेकिन, हरकारे के लड़के दु:ख भी अकेले
पी गये ..दु:ख भी नहीं बाँटा किसी से ..!
सालों से कभी साथ बैठकर
किसी समस्या का सामाधान
वो खोज नहीं पायेl
फिर, साथ बैठकर कभी नहीं देख पाये
भोर होने के बाद ओस में नहाई हुई फसल!
या सुबह की कोई उजास ..
पता नहीं कितने साल बीत गयेl
जब गाँव में काम मिलना बँद हो गया
फिर, वो कहीं कमाने चले गये दिल्ली या पँजाब ..
बूढ़ा हरकारा जब मरा तो दाह संस्कार
भी गाँव के लोगों ने किया!
हरकारे के लड़कों ने फिर कभी
पलटकर नहीं देखा गाँव!
हरकारे की मौत से दु:खी होकर
बूढ़ा होता मकान भी एक दिन
ढह कर गिर गयाl
लेकिन, तब भी हरकारे के लड़के नहीं लौटे .. !
लेकिन, बूढ़े पेंड़ की हिफाजत में
आज भी खड़े थें युवा पेंड़..!
पेंड़ अब अपनी दहलीज की
झिलंगी खाट पर पड़ा रहताl
बूढ़ा, पेंड चिलम भरकर
पीता .. और, शेखी बघारता गाँव में
कि उसकी डयोढ़ी ..बहुत मजबूत हैं ..!
और कि, वो युवा पेंड़ों की हिफाजत में है ..!
तब से आदमी भी पेंड़ होना चाहता है!
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