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मन बच्चा

वीना उदय


मन फिर-फिर बच्चा हो जाता है।
जब 80 साल की बुजुर्ग पिता को
अपनी चिंता करता पाता है।
बूढ़ी सशक्त हड्डियां सारी ताकत समेट
जब पूरे आत्मविश्वास से कहती हैं।
मैं हूं ना, मैं हूं ना।
बेटा किसी बात की चिंता ना करना
मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं ना।

दुनिया की हर खुशियां
मुझ पर लुटाने को आतुर पिता
और मेरी नजर उतार हर बला को
दूर भगाने की कोशिश में जुटी मां
जब पूछती है बेटा खाना खाया
तो भूख ना होने पर भी
मां के हाथों की गरमागरम रोटियों
का लालच भूख जगा जाता है।

तुम्हारा ध्यान करने की उम्र में
जब तुम दोनों मेरे ख्याल रखते हो
तो मन फिर-फिर बच्चा हो जाता है।
तुम्हारा साया हर पल मेरे सिर पर
यूं ही बना रहे और मेरा मन यूं ही
बच्चा बन कर जिए।

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