मित्र की मदद
- मुकेश ‘नादान’
- Dec 14, 2024
- 3 min read
मुकेश ‘नादान’
बी.ए. की परीक्षा के लिए फीस जमा करने का समय आ गया था। सबके रुपयों की व्यवस्था हो गई थी। केवल चोरबागान के गरीब मित्र हरिदास की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। वह फीस जमा नहीं कर सका। इसके अतिरिक्त एक वर्ष का शुल्क भी बाकी थी। निश्चय ही इस प्रकार की विशेष अवस्था में रुपए माफ कर देने की भी व्यवस्था थी, और उसका भार राजकुमार नामक कॉलेज के एक वृद्ध किरानी पर था। हरिदास चट्टोपाध्याय ने देखा कि किसी भाँति परीक्षा-शुल्क तो दिया जा सकता है, किंतु कॉलेज का मासिक शुल्क देना असंभव है। लेकिन राजकुमार बाबू दयाशील के रूप में जाने जाते थे, भले ही नशाखोर के रूप में उनकी थोड़ी बदनामी थी। सब सुनकर नरेंद्र ने हरिदास को भरोसा दिलाया कि सब ठीक हो जाएगा।
दो-एक दिन के बाद जब राजकुमार बाबू की मेज पर काफी भीड़ लग गई और एक के बाद एक लड़के रुपए जमा कर रहे थे, तब नरेंद्रनाथ ने भीड़ को ठेलते हुए आगे जाकर राजकुमार बाबू से कहा, “महाशय, लगता है, हरिदास मासिक शुल्क दे नहीं सकेगा। आप थोड़ी कृपा कर उसे माफ कर दें। उसे परीक्षा देने के लिए भेजने पर वह अच्छी तरह पास करेगा, और नहीं भेजने पर सब बेकार हो जाएगा।”
राजकुमार ने मुँह बनाकर कहा, “तुझे धृष्टतापूर्वक पैरवी करने की जरूरत नहीं है। तू जा, अपने चरखे में तेल देने जा। मासिक शुल्क नहीं देने पर मैं उसे परीक्षा नहीं देने दूँगा।”
धमकी खाकर नरेंद्र वापस आए। मित्र भी हताश हुए। तथापि नरेंद्र ने भरोसा देकर कहा, “तू हताश क्यों होता है?
वह बुड्ढा यूँ ही धमकी देता है। मैं कहता हूँ, तेरा उपाय अवश्य कर दूँगा, तू निशंचित रह।”
इधर नरेंद्र घर न जाकर एक अफीम के अड्डे पर गए। पता लगाया कि राजकुमार अभी भी नहीं आए हैं। नरेंद्र तब अपने शरीर को ढककर एक गली में हेदो की ओर स्थिर दृष्टि से देखने लगे। शाम का अँधेरा जब और घना हो गया, तब राजकुमार को अफीम सेवन करने वालों के अड्डे की ओर चोरी-चोरी आते देखा। अकस्मात् नरेंद्र गली के मुँह पर आकर राजकुमार के रास्ते के आगे खड़ा हो गया। नरेंद्र को देखते ही बूढ़े को लगा कि विपदा आ गई। तथापि सहजभाव से उन्होंने पूछा, “क्या रे दत्त, यहाँ क्यों? ” नरेंद्र ने हरिदास की प्रार्थना फिर दुहराई और साथ-साथ यह भय भी दिखाया कि प्रार्थना मंजूर नहीं होने पर अफीम की गोली के अड्डे की बात कॉलेज में प्रचारित कर दूँगा।
बूढ़े ने तब कहा, “बच्चा, क्रोध क्यों करता है? तू जो कहता है, वही होगा। तू जो कहता है तो क्या मैं उसे नहीं करूँगा? ”
नरेंद्र ने तब जानना चाहा कि यदि यह उनका वास्तविक मनोभाव है तो सुबह ही यह कहने में क्या आपत्ति थी?
बूढ़े ने समझा दिया कि उस समय माफ करने से उसका उदाहरण देकर दूसरे लड़के भी ऐसा ही करने लगते। किंतु कॉलेज का मासिक शुल्क माफ होने पर भी परीक्षा शुल्क माफ नहीं होगा, वह देना ही होगा। नरेंद्र ने भी सहमति प्रकट कर विदा ली।
इधर नरेंद्र की आँख से ओझल होते ही राजकुमार थोड़ा इधर-उधर देखकर अफीम की गोली के अड्डे में घुस गए।
हरिदास का निवास-स्थान चोरबागान के भुवनमोहन सरकार की गली में था। सूर्योदय के पहले ही नरेंद्र ने अपने मित्र के घर आकर दरवाजे को थपथपाया और गाना शुरू किया-
भावार्थ-निर्मल-- पावन उषाकाल में आओ तन्मय ध्यान करो
पूर्ण ब्रह्म का, जो है अनुपम चिर अनंत महिमा आगार।
'उदयाचल के शुभ भाल पर जिनकी प्रेमानन-छाया
बालारुण बनकर शोभित है देखो ज्योतिर्मय साकार।
इस शुभ दिन में मधु समीर बहता है कर उनका गुणगान
और ढालता रहता अहरह वह मधुर अमृत की धार।
सब मिल-जुलकर चलो चलें भगवत् के दिव्य निकेतन में
हृदय-थाल में आज सजाकर अपने अमित प्रेम-उपहार।
इसके बाद हरिदास को कहा, “ओ रे, खूब आनंद करो, तुम्हारा कार्य सिदूध हो गया है। मासिक शुल्क के रुपए अब तुम्हें नहीं देने होंगे।”
इसके बाद उस शाम की कथा सुनाकर सबको हँसने पर विवश कर दिया।
******
Commentaires