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मैं कवि हूं …

डॉ. जहान सिंह ‘जहान’

हां मैं कवि हूं।
बिल्कुल नया हूं।
अभी-अभी आया हूं।
आपकी खुशी, अपना गम,
प्रकृति का दर्द, जन्म का उल्लास,
मृत्यु का विलाप, भूख का एहसास,
वैभव की लालसा, जीवन की जिज्ञासा।
ऐसा जहान अपने साथ लाया हूं।
हां मैं कवि हूं।
अभी-अभी आया हूं।
चंद किताबों के बस्ते।
कागज के लिखे कुछ दस्ते।
टेबल, कुर्सी, लैंप, कलम।
एक पुराने चित्रों का एल्बम।
बस इतनी है मेरी पूंजी,
सब पीछे छोड़ आया हूं।
हां मैं कवि हूं।
अभी-अभी आया हूं।
प्रकृति की गोद, पहाड़ों का सफर
रेत की तपती धूप, दरिया का संगीत,
परिंदों की उछल कूद
बस इनको साथ लाया हूं।
हां मैं कवि हूं।
अभी-अभी आया हूं।
कभी मेरी तरह तुम भी निकलो सफर में।
इस अनसुलझी जिंदगी की डगर में।
चांद बनकर चांदनी, ढूंढो तारों सजी रातों में।
दरिया की लहरों में खो जाओ बातों-बातों में।
कभी घायल चिड़िया को पानी पिला कर देखो।
उड़ते ही लौट कर तेरे पास आएगी।
प्यार के उस स्पर्श को पहचान जाएगी।
तपती रेत में तलासो, वो कैक्टस का फूल।
जिसने तेरे इंतजार में सदियां गुजार दीं।
सुनो कभी कोयल, मोर, सारस के गीत।
झरनें का संगीत।
पकड़ो कभी महकती हवाओं से, झूमती तितलियां।
छू कर तो देखो कितनी मासूम हैं।
शर्म से नजरें झुका गले लग जाएंगी।
प्यार करके देखो, सभी से
जीने का मकसद मिल जाएगा।
बांट सको तो प्यार ही बांटो,
जीवन जीना आ जाएगा।
हां मैं कवि हूं।
अभी-अभी आया हूं।
बस यही बताने आया हूं।
फिर मिलेंगे बात करेंगे। कितना बड़ा जहान है।
वक्त आज इतना ही मेहरबान है।
हां मैं कवि हूं।
बिल्कुल नया हूं।
अभी-अभी आया हूं।
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