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मोबाइल और बच्चे

डॉ राम शरण सेठ


मोबाइल आ गया है।
बचपन छीनता जा रहा है।।

परिवार में संवेदनाओ से।
नाता दूर हो गया है।।

रिश्तों की समझदारी।
कुछ न कुछ कम हो गई है।।

मानसिक और शारीरिक हीनता।
दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।।

सजीव से बात ना करके।
निर्जीव से बात करने की चलन बढ़ गई है।।

आंखों की रोशनी बचपन।
में कम हो रही है।।

जो वृद्धावस्था के रोग थे।
वह बचपन में लग रहे हैं।।

बात-बात पर चिढ़ना और गुस्साना।
यह लगातार बढ़ता जा रहा है।।

क्योंकि दोनों के बीच में।
कहीं न कहीं मोबाइल आ गया है।।

यह दोनों कहीं न कहीं।
एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं।।

जिसकी शुरुआत बचपन।
में ही हो गई है।।

हम सभी को संभालना होगा।
और बच्चो को समझाना होगा।।

मोबाइल और बच्चों के संबंध में।
सामंजस्य सरल तरीके से बनाना होगा।।

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