यादों और सौगातों में नीम
- Rachnakunj .
- Jan 3, 2024
- 1 min read
मधु मधुलिका
ऐ नीम कैसे करूँ
तुम्हारा वर्णन मैं
कैसे बताउँ तुम्हारी उपयोगिता
तुम्हारा सौन्दर्य अनुपम है
सूरज भी तुम्हारे दरख्तों से झांक
खुद सुशोभित होता है
औऱ पुरी दुनिया को
मनभावन करता
तुम औषधिय गुणों से
परिपूर्ण खजाना हो
शीतल पावन हवा हो
पथिकों का छाँव हो
बाबुल का गाँव हो
तुम्हारे सफेद गुच्छेदार फूल
मानो स्वर्ग लोक से आई
किसी अप्सरा के केस को
सुवासित करते हों
हठयोगी की तरह
अडिग खड़े रहते हो
किसी द्वार पर
खुद जलकर भी सकुन देते
न जाने कितने रोगों की औषधि बन
संजीवनी का काम करते हो
तुम्हारे वो छोटे छोटे फल निबोली
बचपन में थोड़ा मीठा थोड़ा कड़वा
कितनी बार निगल जाते थे
दोस्तों की टोलियां
तुम्हारे ही छाँव तले खेलकर
बड़ी हुईं युगों युगों से
और सखियों की टोलियां
तुम्हारे मोटे मजबूत तने पर
उमंगो के झूले डालकर
किसी प्रिय के इंतजार का
और प्यार का गीत गाती रही हैं
कजरी के गीतों के तुम साक्षी हो
कितनी पीढ़ियों को आबाद किया
अपनी शीतल बयारों से
मौन होकर लुटाते रहे
अपना सर्वस्व
किसी गुणी महात्मा की तरह
तुम्हारे पते, तुम्हारे छाल, तुम्हारे फल
तुम्हारी लकड़ियां
सबकुछ मिलकर
रोगी काया को निरोगी काया करते रहे
तुममें संपुर्णता और सहजता दोनों है
ऐ नीम दिल की अनंत गहराइयों से
तुमको शत शत मेरा नमन है।
*****
Comments