top of page

विश्वास की मूर्ति

शिव शंकर

सुजीत मार्केट में चलते चलते अचानक से दौड़ने लगता है और दौड़ते हुए जाकर एक महिला के आगे रूक जाता है। और दौड़ने की वजह से हाफ रहा होता है।

महिला - बड़े आश्चर्य से देखते हुए बोली, अरे सुजीत तुम, मुझे तो यकीन ही नही हो रहा है कि, इतने दिनों बाद आज हम दोनों फिर से मिले हैं। सुजीत ने हांफते हुए कहा कि, मैं बड़ी देर से तुम्हें देख रहा था लेकिन ठीक से पहचान नहीं पा रहा था इसलिए बोल नहीं पाया लेकिन जब देखा कि तुम अब चली जाओगी तो मुझे दौड़ना पड़ा, तुम्हारा परिचय पूछने के लिए, लेकिन यह अच्छा हुआ कि तुम मुझे देखते ही पहचान ली।

महिला - और तुम मुझे क्यों नहीं पहचान पा रहे थे।

सुजीत - अरे! हाई स्कूल में जब थे तभी के मिले थे तब से लेकर कितने वर्ष बीत गए। वैसे भी लड़कियों में ज्यादा परिवर्तन हो जाता है, खास कर शादी होने के बाद तो चाल ढाल पहनावा मेकअप सबकुछ ही बदल जाता है।

महिला - ओ.. हो.. लेकिन तुम नही बदले जैसे पहले हंसी मजाक करते थे वैसे आज भी।

रत्ना, अच्छा यह बताओ कि तुम इधर कहा जा रही थी ?

रत्ना - मैं अपने कमरे पर जा रही थी मेरे पति का तबादला हो गया इसी शहर में इसलिए यही पास में किराए का मकान ले रखा है ।

सुजीत - अरे इसी रास्ते से तो मैं रोज अपने आफिस जाता हूं अब तुम मेरा नम्बर लिख लो फिर मिलेंगे।

रत्ना - अरे इतनी भी क्या जल्दी है इस शहर में भला कोई अपना तो मिला। अब चलो मेरे साथ मेरे पति आफिस से आते ही होंगे उनसे मिलवा दूं और मेरे हाथ की एक कप चाय भी पी लेना।

रत्ना के जिद करने पर सुजीत उसके साथ उसके कमरे पर जाता है और रत्ना ने अपने पति से सुजीत का परिचय कराती है, चाय पिलाती है।

सुजीत - अच्छा मेरी पत्नी मेरा इन्तजार कर रही होगी। मै चलता हूं।

रत्ना और उसके पति - अच्छा ठीक है मिलते रहिएगा।

सुजीत का अब बार बार आना जाना हंस हंस कर बतलाना एक दूसरे की बातें शेयर करना। रत्ना के पति के दिल में ठेस पहुचा रहीं थी वह सोचने लगा कि कहीं यह दोनों मुझे धोखा तो नहीं दें रहे हैं या फिर कही इन लोगो का पुराना अफेयर तो नहीं है अब उसे उन लोगो का मिलना बात करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। किन्तु रत्ना और सुजीत ऐसे घुल मिल गए थे जैसे दोनों एकही घर के हो।

एक दिन रत्ना के पति घर नहीं थे और सुजीत और रत्ना शापिंग कर रहे थे कपड़े चूज कर रहे थे कि न जाने कहां से रत्ना के पति देख रहे थे लेकिन वे उस समय वहां कुछ नहीं कहे और सीधे घर पहुंच गए। और रत्ना के घर पहुंचते ही।

पति - कहा से मुंह उठाए चली आ रही हो?

रत्ना - शापिंग कर के, मगर आप ऐसे क्यों बोल रहे है?

पति - और नहीं तो कैसे बोलूं, अरे शुकर मना, नहीं तो मेरी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक तुम्हें धक्के मारकर घर से बाहर निकाल चुका होता।

रत्ना - मगर क्यों? मेरी ग़लती क्या है?

पति - अच्छा तो अब यह भी बताना पड़ेगा कि तुमने किया क्या है, ग़ैर मर्द के साथ शापिंग कर रही हो, गुलछर्रे उड़ा रही हो और हमसे पूछती हो कि मेरी ग़लती क्या है?

रत्ना - क्या बकते हो! सुजीत ऐसा वैसा नहीं है। एसी घिनौनी बातें करने से पहले तुम्हें सोचना चाहिए। 

पति - अच्छा तो अब तुम उसका पक्ष भी लेने लगी,कि ऐसा वैसा नहीं है। अरे मैं भी आदमी पहचानता हूं। वह जबसे तेरी सूरत देखा है तूं पतंग की तरह उसकी तरफ खिंची जा रही हो।

रत्ना - मै आपको कैसे समझाऊं मैं उसे बचपन से जानती हूं वह बेहद शरीफ और नेक इन्सान है और अगर तुम्हें उस पर विश्वास नहीं है तो ठीक है लेकिन मैं तुम्हारी पत्नी हूं मुझ पर तो तुम्हें भरोसा होना चाहिए।

पति - कैसा विश्वास किसका भरोसा ऐ भरोसा का ही तो नतीजा है। अब आज से उसका मिलना जुलना बंद।

रत्ना - मिलना जुलना बंद तो क्या मैं उसकी तरफ देखती भी नहीं यदि तुम मुझे पहले ही बता देते कि तुम्हें बुरा लग रहा है। लेकिन एक बात याद रखना कि हर इंसान बुरा नहीं होता। और अगर मैं बुरी नही हूं तो कोई और बुरा रहकर भी मेरा क्या कर सकता है। रत्ना रोते हुए घर के अन्दर चली जाती है। अगले एक दिन बाद रविवार था।

सुजीत सुबह रत्ना के घर पहुंच कर दरवाजा नांक करता है। अन्दर से रत्ना के पति ने दरवाजा खोला, सामने सुजीत को देखकर बोले, आ गये सुबह सुबह मिलने, मेरी पत्नी है वो। क्यों हम लोगों का जीना हराम कर रखा है तुमने, अगर तुमको पसंद थी तो इसी से शादी क्यों नहीं कर ली कम से कम मैं तो परेशानी से बच जाता।

सुजीत - भाई साहब आप गलत इल्जाम लगा रहे है ।

रत्ना के पति - दूर हो जाओ मेरे सामने से और आज से कभी दिखाई मत देना। सुजीत सोचता हुआ अपने घर वापस आ गया।

सुजीत की पत्नी - आप शान्त क्यों बैठे हैं? क्या रत्ना आज नहीं मिली या रत्ना किसी परेशानी में हैं।

सुजीत - कुछ नहीं।

सुजीत की पत्नी - आप मुझसे कभी झूठ नहीं बोलते फिर आज क्यों? सच बताओं मुझे! क्या हुआ है? सुजीत सब बातें अपनी पत्नी को बता देता है।

सुजीत की पत्नी रत्ना के घर आ जाती है और दरवाजा नाक करती है और रत्ना के पति दरवाजा खोलते है। मै सुजीत की पत्नी आप से बात करने आई हूं।

रत्ना के पति - जी बताइए क्या बात है।

सुजीत की पत्नी - आप ने हमारे पति को क्या कहा और क्यों कहा?

रत्ना के पति - जी मेरी आड़ में मेरी पत्नी के साथ शापिंग कर रहे थे।

सुजीत की पत्नी - तो क्या हो गया अरे आप के लिए वह जूता ले रही थी और मेरे लिए वो साड़ी ले रहे थे। और एक बात बता दूं प्यार विश्वास का होता है। आप न जाने कैसे पति है जो अपनी पत्नी को न पहचान पाए वो दूसरे को क्या पहचान पाएगा। फिलहाल वो आपकी पत्नी है मुझे कोई लेना देना नहीं। लेकिन एक बात ध्यान से सुन लीजिए कि आपको हमारे पति पर इस तरह से इल्जाम लगाने का कोई हक नहीं। लेकिन वो प्यार भी केवल मुझसे ही करते है। इसलिए ध्यान रखिएगा आगे से हमारे पति को ऐसी तकलीफ मत दीजिएगा ।

सुजीत की पत्नी वापस चली जाती है लेकिन रत्ना के पति सोच में डूब जाते है। एक औरत को अपने पति पर इतना गुमान, इतना विश्वास, इतना प्रेम और एक मैं?

******

Comments


bottom of page