समर्पण
- स्नेह लता अग्रवाल
- Sep 6
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स्नेह लता अग्रवाल
ये कहानी है सुरभि की, जो भोपाल की रहने वाली थी। सुरभि की शादी के बाद वो अपने ससुराल ग्वालियर पहुंची। शादी की रौनक खत्म हो चुकी थी, और धीरे-धीरे सभी मेहमान विदा ले चुके थे। लेकिन उसकी जेठानी, अनिता, अपने दो बच्चों के साथ दो दिन और रुक गई थीं।
सुरभि के सास-ससुर का पहले ही देहांत हो चुका था, और अनिता ने ही शादी के सारे इंतजामों में खूब मेहनत की थी। अनिता ने सुरभि को बहुत स्नेह दिया ताकि उसे सास की कमी न खले। उन दो दिनों में, सुरभि ने धीरे-धीरे घर के कामकाज संभालना शुरू कर दिया। अपनी शांत और सौम्य स्वभाव से उसने हर किसी का दिल जीत लिया। अनिता ने भी मन ही मन सोच लिया कि उनके भाई को एक बेहतरीन जीवनसंगिनी मिल गई है।
फिर वह समय आया जब अनिता को लौटना था। विदा लेते समय, अनिता ने सुरभि को गले लगाकर कहा, "सुरभि, मेरा भाई बहुत अच्छा इंसान है, वो तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं देगा। तुम उसका ख्याल रखना। और हाँ, कभी भी कोई परेशानी हो तो मुझसे बेझिझक बात करना। ग्वालियर से भोपाल ज्यादा दूर नहीं है। मैं आती रहूंगी।"
सुरभि ने नम्रता से उनके पैर छुए और मुस्कुराकर कहा, "दीदी, आप निश्चिंत रहें। मैं इनका और इस घर का पूरा ध्यान रखूंगी।"
अनिता तो कार में बैठ गईं, लेकिन उनके बच्चे वहीं खड़े रहे। सुरभि ने हैरानी से कहा, "अरे, जाओ ममा के साथ बैठो।"
अनिता मुस्कुराई और बोली, "अब तुम आ गई हो, तो ये यहीं रहेंगे..." इतना कहकर वह अचानक चुप हो गईं।
सुरभि के दिल में एक हलचल सी मच गई। क्या दीदी अपने बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़कर जा रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि भोपाल में उनके बच्चों की पढ़ाई में कोई दिक्कत आ रही है? उसने ये बातें अपने मन में ही रखीं और पति अमन का ऑफिस से लौटने का इंतजार करने लगी।
जैसे ही अमन घर आया, सुरभि ने उसे चाय दी और धीरे-धीरे बातों में पूछ ही लिया, "अमन, दीदी के बच्चे यहीं हमारे साथ रहेंगे?"
अमन ने शांत स्वर में जवाब दिया, "ये दीदी के बच्चे नहीं, मेरे अपने बच्चे हैं। मेरी पहली पत्नी के निधन के बाद दीदी ने ही इन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया है।"
सुरभि का चेहरा फक हो गया। उसे समझ ही नहीं आया कि क्या बोले। गुस्से और नाराजगी में वो बोली, "आपने ये बात मुझसे क्यों छिपाई? क्या आप मुझसे झूठ बोले?"
अमन ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "सुरभि, मैंने तुम्हारे भाई को सब कुछ बता दिया था। उन्होंने तुम्हें नहीं बताया? मैंने तुमसे कोई बात नहीं छिपाई। फिर भी, अगर तुम्हें ये रिश्ता निभाना मुश्किल लगे तो तुम चाहो तो इस रिश्ते से आज़ाद हो सकती हो।"
सुरभि के लिए ये शब्द चौंकाने वाले थे। उसे एक पल के लिए लगा जैसे जमीन खिसक गई हो। अब उसके सवाल और उलझ गए थे। क्या उसका अपना भाई उससे ये बात छिपा सकता है? वह चुपचाप सोफे पर बैठ गई, और मानो सारे सपने बिखरते हुए देख रही थी।
अगली सुबह सुरभि की जेठानी, अनिता, का फोन आया। उन्होंने प्यार से कहा, "बेटा, हमने तुम्हारे भाई से कुछ भी नहीं छिपाया था। लेकिन अगर तुम्हें बच्चों से कोई परेशानी हो तो मैं इन्हें अपने पास ही रखूंगी। बस अपने भाई को मत छोड़ना, वो तुम्हें बहुत चाहता है।"
सुरभि की आँखें भर आईं। उसने दिल पर हाथ रखकर सोचा कि अमन की कोई गलती नहीं है। अगर मेरे भाई ने ये बात मुझसे छिपाई, तो ये उसकी जिम्मेदारी थी, अमन की नहीं। धीरे-धीरे उसके मन में एक समझदारी का भाव आ गया। उसने सोच लिया कि प्यार और समझदारी से जिंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है।
सुरभि ने तुरंत फोन उठाया और अनिता को कहा, "दीदी, आप चिंता मत करें। मैं यहीं रहूंगी, और बच्चे भी मेरे साथ ही रहेंगे।"
उसकी बात सुनकर अनिता ने राहत की साँस ली। सुरभि ने जैसे ही फोन रखा, देखा कि अमन दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसकी आंखों में राहत और स्नेह दोनों थे। उनकी नजरें मिलीं और सुरभि शरमा कर मुस्कुरा दी। उस दिन दोनों ने समझ लिया था कि उनके रिश्ते में विश्वास और समर्पण ही सबसे बड़ा आधार है।
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