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गाली पास ही रह गयी

रमेश द्विवेदी

एक लड़का बड़ा दुष्ट था। वह चाहे जिसे गाली देकर भाग खड़ा होता। एक दिन एक साधु बाबा एक बरगद के नीचे बैठे थे। लड़का आया और गाली देकर भागा। उसने सोचा कि गाली देने से साधु चिढ़ेगा और मारने दौड़ेगा, तब बड़ा मजा आयेगा; लेकिन साधु चुपचाप बैठे रहे। उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं।
लड़का और निकट आ गया और खूब जोर-जोर से गाली बकने लगा। साधु अपने भजन में लगे थे। उन्होंने समझ लिया कि कोई कुत्ता या कौवा चिल्ला रहा है। एक दूसरे लड़के ने कहा – ‘बाबा जी! यह आपको गालियाँ देता है?’
बाबा जी ने कहा – ‘हाँ भैया, देता तो है, पर मैं लेता कहाँ हूँ। जब मैं लेता नहीं तो सब वापस लौटकर इसी के पास रह जाती हैं।
लड़का – ‘लेकिन यह बहुत खराब गालियाँ देता है।’
साधु – ‘यह तो और खराब बात है। पर मेरे तो वे कहीं चिपकी हैं नहीं, सब-की-सब इसी के मुख में भरी हैं। इसका मुख गंदा हो रहा है।’
गाली देनेवाला लड़का सुन रहा था साधु की बात। उसने सोचा, ‘यह साधु ठीक कह रहा है। मैं दूसरों को गाली देता हूँ तो वे ले लेते हैं। इसी से वे तिलमिलाते हैं, मारने दौड़ते हैं और दु:खी होते हैं। यह गाली नहीं लेता तो सब मेरे पास ही तो रह गयीं।’ लड़के को बड़ा बुरा लगा, ‘छि:! मेरे पास कितनी गंदी गालियाँ हैं।’
अन्त में वह साधु के पास गया और बोला – ‘बाबाजी! मेरा अपराध कैसे छूटे और मुख कैसे शुद्ध हो?’
साधु-‘पश्चात्ताप करने तथा फिर ऐसा न करने की प्रतिज्ञा करने से अपराध दूर हो जायगा। और ‘राम-राम’ कहने से मुख शुद्ध हो जायगा।’

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