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मां का घर

सविता देवी

एक दिन मैंने अपने पति के साथ झगड़े वाली सारी बातें अपने भाई को बता दी तो भाई ने कहा कि एक काम करो तुम कुछ दिनों के लिए हमारे घर आ जाओ...!!

जब तुम दोंनो कुछ दिन एक दूसरे से अलग रहोगे तो तुम दोंनो को एक दूसरे की कमी का एहसास होगा...!!

फिर मैं कुछ दिनों के लिए पति का घर छोड़कर भाई के घर आ गई... हालांकि मेरा भाई बहुत अच्छा है मुझे बहुत प्यार भी करता है पर कहते हैं न कि भाई चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो परन्तू...!!

अगर कोई काम भाभी की मर्जी के हो तो घर का माहौल, खराब होने में देर नहीं लगती...!!

कुछ दिनों बाद ही भाभी को लगने लगा कि कहीं मैं हमेशा के लिए ही मायके में ना रह जाऊं,इसलिए वो दूसरों पर डालकर मुझे हर दिन कुछ ना कुछ ताना मारने लगी कि...!!

"ये घर छोड़ने वाली लड़कियों का ना कोई घर नहीं होता"ना घर की रहती है ना घाट की....!!

मैं भाभी के इसारे अच्छे से समझने लगी, कुछ ही दिनों में मुझे लगने लगा कि, यह अब मेरा मायका नहीं है बल्कि अब यह भाभी का घर है...!!

इधर मेरे पति को भी अकेला पन महसूस होने लगा तो वो मुझे लेने आ गये और मैं उनसे लिपट कर रोने लगी... फिर उन्होंने मेरे आंसू पोछे....!!

फिर मैं भाई का घर छोड़कर वापस ससुराल आ गयी... रास्ते भर मैं बस यही सोचती रही कि जब तक घर में मां होती है तब तक ही मायका अपना घर लगता है उसके बाद तो सिर्फ भाभी का घर बन जाता है...!!

शायद तभी तो कहते हैं कि "मायका माँ से होता है....!!

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